Same Sex Marriage पर सरकार और कोर्ट आमने-सामने, देखें लेटेस्ट अपडेट, इन देशों में समलैंगिक विवाह है वैध

Apr 20, 2023, 12:06 IST

देश में इन दिनों सेम सेक्स मैरिज का विषय काफी चर्चा में है, जिसको लेकर पिछले दो दिनों से देश की शीर्ष अदालत में सुनवाई चल रही है. सुप्रीम कोर्ट आज तीसरे दिन भी इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. 

 सेम सेक्स मैरिज पर सरकार और कोर्ट आमने-सामने
सेम सेक्स मैरिज पर सरकार और कोर्ट आमने-सामने

देश में इन दिनों सेम सेक्स मैरिज का विषय काफी चर्चा में है, जिसको लेकर पिछले दो दिनों से देश की शीर्ष अदालत में सुनवाई चल रही है. जाने माने वकील मुकुल रोहतगी सेम सेक्स मैरिज का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे है.

इसके सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट ने पांच सदस्यों की संविधान पीठ का गठन किया है जो सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट आज तीसरे दिन भी इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. 

इन पांच सदस्यों में सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस संजय किशन कौल शामिल है.

क्या है लेटेस्ट अपडेट?

पिछले दो दिनों से इस पर बहस जारी है, मुकुल रोहतगी ने सेम सेक्स मैरिज के पक्ष में दलील पेश करते हुए कहा कि समाज को अब समलैंगिक शादी के अधिकार की इज्जत करनी चाहिए क्योंकि देश का संविधान भी यही कहता है. 

मुकुल रोहतगी ने सरकार की उस दलील का विरोध किया जिसमें कहा गया कि यह प्रकृति के खिलाफ है. उन्होंने आगे कहा कि इस विषय में कानून तो ऐसा नहीं कहता, यह तो बस एक माइंडसेट है. 

अपनी दलील में रोहतगी ने 1950 में लाये गए हिंदू कोड बिल का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय इस बिल को संसद मानने के लिए तैयार नहीं थी. लेकिन इसे फिर 1956 में पेश किया गया और संसद ने इसे स्वीकार किया और बाद में यह भी एक सामान्य बात हो गयी. 

रोहतगी ने कहा कि LGBTQIA के लिए शादी एक मौलिक अधिकार हो, क्योंकि यह उन पर लगने वाले लांछनों के संदर्भ में जरुरी है. अपने मुवक्किल की बात करते हुए रोहतगी ने कहा कि इनके माता-पिता ने उन्हें स्वीकार कर लिया है और वे चाहते है कि उनका परिवार हो और वो भी बच्चे रखे.  

केंद्र सरकार का क्या है पक्ष?

केंद्र सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है और कहा है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी समलैंगिक विवाह की मांग वाली याचिकाओं में पक्षकार बनाना चाहिए.  

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची का जिक्र करते हुए केंद्र सरकर ने कहा कि समवर्ती सूची में "विवाह" शामिल है, इसलिए इस मुद्दे पर निर्णय लेने से पहले राज्यों के साथ परामर्श करना आवश्यक है. गौरतलब है कि समवर्ती सूची के सेक्शन 5 में विवाह और तलाक शामिल हैं.    

केंद्र  इस हलफनामें के माध्यम से कहा कि सेक्शन 5 का प्रत्येक घटक आंतरिक रूप से परस्पर सम्बंधित है, इसलिए किसी एक में परिवर्तन निश्चित तौर पर दूसरे को प्रभावित करेगा.

सरकार ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर आने वाले फैसले के दूरगामी प्रभाव होंगे इसलिए सरकार आग्रह करती है कि इसमें राज्यों को भी पक्षकार बनाया जाना चाहिए. 

कानून बनाना संसद का काम:

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कानून बनाना संसद का काम, कोर्ट इससे दूर रहे. केंद्र ने इसके सम्बन्ध में 17 अप्रैल को हलफनामा दायर किया था साथ ही यह भी कहा था समलैंगिक विवाह को वैध ठहराए जाने मांग सिर्फ शहरी एलीट क्लास की है.      

केंद्र ने यह भी कहा कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से बच्चों को गोद लेने, तलाक, वसीयत, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी क्योंकि इन मामलों में सभी क़ानूनी पक्ष पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की टिप्पणी:

इस मामले में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई कपल गे या लेस्बियन रिलेशनशिप में है तो भी उसे बच्चा गोद लेने का अधिकार है. 
साथ ही उन्होंने सरकार की ''सिर्फ शहरी एलीट क्लास की मांग'' पर कहा कि यह कोई केवल शहरी विचार नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों में अपनी यौन पहचान बताने वाले ज्यादा लोग है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यह केवल शहरी विचार है.   

क्या है पूरा मामला?

समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गयी है. कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि, कोर्ट कहता है कि देश में कोई भी वयस्क व्यक्ति अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने और जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है.    

इन याचिकाओं में हैदराबाद के समलैंगिक कपल सुप्रियो और अभय की भी एक याचिका है. याचिकाकर्ता ने कहा कि वह एक दूसरे को एक दशक से ज्यादा समय से जानते है और रिलेशनशिप में हैं. कपल ने इस बात का भी जिक्र किया कि शादीशुदा लोगों को जो अधिकार मिले है उन्हें उन अधिकारों से वंचित रखा गया है. 

इन देशों में समलैंगिक विवाह है वैध:

यूरोपीय देश नीदरलैंड्स समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने वाला पहला देश था, एशिया की बात करें तो सबसे पहले ताइवान ने समलैंगिक विवाह को मंजूरी दी थी.

एचआरसी की मैरिज इक्वलिटी अराउंड द व‌र्ल्ड रिपोर्ट के अनुसार, अर्जेन्टीना, ऑस्ट्रेलिया, जेर्मनी, ब्राजील, न्यूजीलैंड, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, डेनमार्क, फ्रांस, फ़िनलैंड, क्यूबा, माल्टा, यूएसए, ग्रीनलैंड, आयरलैंड, स्काटलैंड और लक्जमगर्ब जैसे देशों में समलैंगिक विवाह वैध है.    

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