3 दिसंबर 2015 को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने ग्रीन बौंड जारी करने के लिए अवधारणा पत्र जारी किया.
इस पृष्ठभूमि में सेबी ने इसकी परिभाषा, वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावना से संबंधित कुछ प्रासंगिक प्रश्नों की व्याख्या की है.
ग्रीन बौंड क्या है?
ग्रीन बौंड किसी भी अन्य बौंड की ही तरह है जहां एक निकाय धन जुटाने के लिए निवेशकों के लिए ऋण साधन जारी करते हैं. हालांकि ग्रीन बौंड की पेशकश का लाभ 'हरित' परियोजनाओं के वित्त पोषण में उपयोग के लिए होता है और यही है जो इसे अन्य बौंड से अलग बनाता है.
इसलिए 'ग्रीन' बौंड और एक नियमित बौंड के बीच का मुख्य अंतर यह है कि जारीकर्ता सार्वजनिक रूप से यह कहता है कि वह पर्यावरणीय लाभ जैसे अक्षय ऊर्जा, कम कार्बन परिवहन आदि जैसी 'हरित' परियोजनाओं, परिसंपत्तियों या व्यापारिक गतिविधियों के लिए पूंजी की उगाही कर रहा है.
हालांकि अभी तक ग्रीन बौंड की कोई मानक परिभाषा नहीं दी गयी है और अभी जो इसकी परिभाषा चल रही है वह बाजार में इस्तेमाल की जाने वाली परिभाषा पर आधारित है.
ग्रीन बौंड की क्या जरूरत है?
परंपरागत उपकरणों की अपर्याप्तताः बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में भारी निवेश की आवश्यकताओं को देखते हुए, क्षमता में बढ़ोतरी के लिए वर्तमान परियोजना वित्त पोषण स्रोतों को बड़े पैमाने पर अपर्याप्त पाया गया है.
इसलिए, वित्त पोषण और नए वित्तीय उपकरणों को पेश करने की जरूरत है जो पेंशन कोष, सार्वभौम वेल्थ फंड, बीमा कंपनियां आदि जैसे व्यापक निवेशक आधार प्रदान कर सकें और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश कर सकें.
भारत की वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिएः एक अनुमान के मुताबिक भारत के ऐच्छिक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान ( आईएनडीसी) लक्ष्य के लिए, 2015 और 2030 के बीच, कम– से– कम 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर ( 2014–15 के मूल्य पर) की जरूरत होगी.
इस संबंध में वर्ष 2015– 16 के दौरान अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए 794 मिलियन अमेरिकी डॉलर के कर मुक्त संरचनात्मक बौंड शुरु करने की बात आईएनडीसी दस्तावेज कहता है.
भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य तक पहुंचने के लिएः 2022 तक भारत 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता निर्माण की महत्वकांक्षी लक्ष्य पर काम कर रहा है और अनुमान के अनुसार इसके लिए 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर धन की आवश्यकता है.
इसलिए अक्षय ऊर्जा के वित्त पोषण के लिए ऐसे नए स्रोतों को खोजने की जररूत है जो न सिर्फ अपेक्षित वित्त पोषण करें बल्कि पूंजीगत लागत को कम करने में भी मदद करें. कॉरपोरेट बौंड के हिस्से के तौर पर ग्रीन बौंड इस समस्या का एक हल हो सकता है.
ग्रीन बौंड जारी करने के क्या लाभ हैं?
सकारात्मक जनसंपर्कः ग्रीन बौंड जारीकर्ता की साख को बढ़ाने में मदद कर सकता है क्योंकि यह जारीकर्ता के हरित साख प्रदर्शित करने का प्राभावी तरीका है. यह पर्यावरण के विकास और स्थिरता की दिशा में जारीकर्ता की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इसके अलावा यह जारीकर्ता का कुछ सकारात्मक प्रचार भी कर सकता है.
निवेशक विविधीकरणः ग्रीन वेंचर्स (हरित कार्य) में निवेश के लिए निर्धारित पूंजी के विशेष वैश्विक पूल हैं. पूंजी का यह स्रोत जिन परियोजनाओं में इनके निवेश का इरादा है, उसमें मुख्य रूप से पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन (ईएसजी) से संबंधित पहलुओं पर फोकस करता है. ग्रीन बौंड जारीकर्ता को ऐसे निवेशकों तक पहुंचाने में मदद करता है जो अन्यथा नियमित बांड का दोहन करने में सक्षम न हो.
मूल्य निर्धारण लाभ की संभावनाः ग्रीन बौंड जारी करना व्यापक निवेश आधार को आकर्षित करता है और यह जारीकर्ता को नियमित बौंड की तुलना में उनके बौंड की बेहतर मूल्य निर्धारण के मामले में लाभ पहुंचा सकता है. इसके अलावा हरित निवेशों की दिशा में वैश्विक निवेशक समुदाय पर बढ़ते फोकस के साथ संभावना है कि निवेशकों का नया सेट इस क्षेत्र में आएगा जिससे हरित परियोजनाओं के वित्त पोषण की लागत कम होगी.
अंतरराष्ट्रीय अनुभवः वर्ष 2007 से ग्रीन बौंड को जारी करना शुरु किया गया था और अपने आरंभिक वर्षों में ग्रीन बौंड एक अव्वल उत्पाद था तथा कई विकास बैंकों ने इसके संचालन का बीड़ा उठाया था. साल 2007 से 2012 के बीच की अवधि यूरोपीयन इंवेस्टमेंट बैंक,विश्व बैंक आदि जैसे बहुपक्षीय संगठनों और कुछ सरकारों द्वारा ग्रीन बौंड जारी किए गए. साल 2013 और 2014 के बीच ग्रीन बौंड बाजार करीब– करीब तीनगुना बड़ा हो गया. साल 2014 में इसके माध्यम से करीब 37 बिलियन अमेरिकी डॉलर जारी किए गए.
भारत में ग्रीन बौंड बाजार की स्थिति क्या है?
भारत में ग्रीन बौंड बाजार अभी भी प्रारंभिक अवस्था में ही है. अभी तक सिर्फ चार संस्था–यस बैंक, सीएलपी इंडिया, आईडीबीआई बैंक और एक्जिम बैंक ऑफ इंडिया ने देश में ग्रीन बौंड जारी किए हैं.
यस बैंक और सीपीएल इंडिया ने क्रमशः 1315 और 600 करोड़ रुपयों का बौंड जारी किया है. एक्जिम बैंक ऑफ इंडिया ने मार्च 2015 में बांग्लादेश और श्रीलंका समेत देश में उपयुक्त हरित परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए हैं.
बांड के हरित (ग्रीन) का दर्जा देने के लिए ऐसे पैसे को अक्षय और संवहनीय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन आदि में निवेश किया जाना चाहिए.
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