अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316)
अलाउद्दीन खिलजी का मूल नाम अली गुर्शप्प था. उसने अपने चाचा और ओहदे में ससुर जलाल-उद-दीन फिरोज खिलजी की हत्या करने के बाद 1296 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठ गया. अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में जाना जाता था. यद्यपि अलाउद्दीन खिलज़ी एक अनपढ़ शासक था लेकिन इस तथ्य के बावजूद, वह एक सक्षम सैनिक था. उसने सेना की कमान में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. उसने दिल्ली सल्तनत का उत्तर के अलावा दक्षिण के क्षेत्र में भी विस्तार किया. उसके शासन काल के दौरान दिल्ली साम्राज्य सिंधु से बंगाल तक और हिमालय से विन्ध्य क्षेत्र तक विस्तृत हुआ. उसने राजा रामचंद्र को पराजित किया और उसे पहाड़ी क्षेत्रो में पलायन करने के लिए मजबूर किया.
मंगोलों का आक्रमण
अलाउद्दीन खिलजी ने सफलतापूर्वक मंगोलों के आक्रमण का सामना किया. मंगोलों ने कुतलुग ख्वाजा जोकि कुबलाई खान का पोता था ने करीब 200000 लाख की सेना के साथ दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया. अलाउद्दीन खिलज़ी मंगोलों से सीरी दुर्ग के पास मिला और युद्ध के मैदान में मंगोलों से मुलाकात की और आसानी से उन्हें हरा दिया.
इसके अलावा मंगोलों के और भी आक्रमण तर्घी के नेतृत्व में हुए. हालांकि, मंगोलों को प्रत्येक बार पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने हमले को जारी रखा. अन्य मंगोल आक्रमण मंगोल सेनापति किबाक, इक़बाल मंद खान और तार्ताक के नेतृत्व में हुए लेकिन अलाउद्दीन खिलज़ी के लौह नीति ने उनकी प्रत्येक इच्छा को नेस्तनाबूत कर दिया.
अलाउद्दीन खिलजी के मंगोलों के प्रति कठोर नीति ने उनके उत्साह और हिम्मत को नष्ट कर दिया. अलाउद्दीन ने अपने शासन के दौरान कुछ बिंदुओ पर, हज़रत मुहम्मद की नकल करने का प्रयास किया था और एक नए धर्म की स्थापना की भी कोशिश की थी. उसने अपने विजय अभियानों के माध्यम से दूसरा सिकंदर बनने का भी प्रयास किया था और प्रत्येक मुशलमानो से नमाज़ में अपने नाम को शामिल करने का निर्देश भी दिया था.
अलाउद्दीन एक महान युद्ध विजेता था. इसलिए, उसके विजय अभियानो पर एक नजर डालनी अत्यावश्यक है.
रणथंभौर की विजय
अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भोर के राजा हम्मीर देव के किले की घेराबंदी का नेतृत्व किया था. चूँकि रजा हम्मीर देव ने मोहम्मद शाह को आश्रय दिया था अतः अलाउद्दीन खिलज़ी को यह कदम उठाना पड़ा. यह कार्य 1299 ईस्वी में हुआ था. प्रारंभिक असफलताओं के बाद, अलाउद्दीन ने राजपूत धोखेबाज रणमल के विश्वासघात से किले पर अधिकार कर लिया और हम्मीर देव की हत्या कर दी.
चित्तौड़ की विजय
दिल्ली सल्तनत की सेना ने रावल रतन सिंह के साम्राज्य में 1303 ईस्वी में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था. ऐसा विश्वास किया जाता हैं की अलाउद्दीन खिलज़ी चित्तौड़ की रानी पद्मिनी को बहुत पसंद करता था. आठ महीने के घेरे के बाद अंततः चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया गया. चित्तौड़ पर अधिकार के पश्चात् खिज्र खान को वहां का राज्यपाल बना दिया गया और चित्तौड़ का नाम बदलकर खिजराबाद कर दिया गया.
दक्कन में विजित अभियान
चित्तौड़ और रणथंभौर के दो महत्वपूर्ण किलों को जीतने के बाद अलाउद्दीन खिलज़ी दक्कन की विजय यात्रा पर निकल पड़ा. उसने मालिक काफूर के नेतृत्व में दिल्ली सल्तनत की बड़ी सेना के साथ देवगिरी पर आक्रमण करने की आज्ञा दी. चूँकि देवगिरी के शासक ने दिल्ली सल्तनत के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने से मनाही की थी अतः अलाउद्दीन को यह कदम उठाना पड़ा. अंततः देवगिरी को पराजय का सामना करना पड़ा और देवगिरी के शासक को कैदी बना लिया गया.
देवगिरी की विजय के बाद मलिक काफूर दक्कन में और आगे बढ़ता चला गया वारंगल क्षेत्र पर आक्रमण किया. उसने होयसल राजा वीर बल्लाल तृतीय, के खिलाफ भी अभियान किया और सभी को पराजित करते हुए अकूत सम्पत्ति के साथ दिल्ली लौटा.
अलाउद्दीन खिलजी के शासन की मुख्य विशेषताएं
• उसने अपने शासन काल के दौरान दाग और चेहरा प्रथा को लागू किया. दाग प्रथा में घोड़ो और चेहरा प्रथा में सैनिको के बारे में जानकारी रहती थी.
• उसने अपने अमीरों के साथ लौह नीति का प्रतिपादन किया और आपस में विवाह की परम्परा को प्रतिबंधित किया.
• उसने दीवान-ए-मुश्तकराज़ के पद का सृजन किया जिसका प्रमुख कार्य राज्य के राजस्व को एकत्रित करना और उसमे विद्यमान कमियों को समाप्त करना.
• उसने खाद्यान और कपड़ा बाज़ार की भी स्थापना की. उसने दीवान-ए-रियासत और शाहना-ए-मंडी नामक विभागों की भी स्थापन की जोकि बाजार को नियंत्रित करने से सम्बंधित थे.
• उसने अपने शासन काल में शासन व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जासूसी प्रणाली को मजबूत बनाया. अलाउद्दीन दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने एक बड़ी सेना का निर्माण किया.
• उसने इल्तुतमिश द्वारा शुरू की इक्ता प्रणाली को समाप्त कर दिया गया था और सैनिको को वेतन के रूप में नकद का भुगतान किया.
• अलाउद्दीन खिलज़ी का 1316 ईस्वी में निंधन हो गया जबकि साम्राज्य के भीतर चारो तरफ अराजकता का माहौल था. उसके उत्तराधिकारी उसकी विरासत को बरक़रार नहीं रख सके और अंततः खिलज़ी साम्राज्य पतन की तरफ अग्रसर हुआ. अलाउद्दीन भारत का एक मजबूत और सक्षम शासक था.