भारतीय रूपये का अवमूल्यन: कारण और इतिहास (1947 से अब तक)

1947 में भारत की आजादी के बाद से भारतीय रूपये का 3 बार अवमूल्यन हुआ है| आजादी के समय 1 डॉलर की कीमत 1 भारतीय रूपये थी, लेकिन आज एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 66 रुपये खर्च करने पड़ते हैं| मुद्रा अवमूल्यन का अर्थ किसी देश की मुद्रा के बाह्य मूल्य में कमी होना है जबकि आंतरिक मूल्य में कोई कमी नही होती है |

Oct 6, 2016, 15:14 IST

1947 में भारत की आजादी के बाद से भारतीय रूपये का 3 बार अवमूल्यन हुआ है| 1947 में विनिमय दर 1USD = 1INR था, लेकिन आज आपको एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 66 रुपये खर्च करने पड़ते हैं| मुद्रा के अवमूल्यन का अर्थ “घरेलू मुद्रा के बाह्य मूल्य में कमी होना, जबकि आंतरिक मूल्य का स्थिर रहना” है। कोई भी देश अपने प्रतिकूल भुगतान संतुलन (BOP) को सही करने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है। यदि कोई देश प्रतिकूल भुगतान संतुलन (BOP) का सामना कर रहा है, तो इस स्थिति में वह अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है जिससे उसका निर्यात सस्ता हो जाता है और आयात महंगा हो जाता है।

विनिमय दर का अर्थ: विनिमय दर का अर्थ दो अलग अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत है, अर्थात “ एक मुद्रा के सापेक्ष दूसरी मुद्रा का मूल्य”। वह बाजार जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं का विनिमय होता है उसे विदेशी मुद्रा बाजार कहा जाता है|

विनिमय दर तीन प्रकार के होते हैं:

1. अस्थायी विनिमय दर (Floating Exchange Rate)

2. स्थिर विनिमय दर (Fixed Exchange Rate)

3. प्रबंधित विनिमय दर (Managed Exchange Rate)

अस्थाई विनिमय दर: यह विनिमय दर की वह प्रणाली है जिसमें एक मुद्रा के मूल्य को स्वतंत्र रूप से निर्धारित होने की अनुमति होती है या मुद्रा के मूल्य को किसी मुद्रा की मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित किया जाता है, अस्थाई विनिमय दर कहलाती है|

स्थिर विनिमय दर: विनिमय दर की वह प्रणाली जिसमें विनिमय दर मांग और आपूर्ति के आधार पर नहीं बल्कि सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है उसे स्थिर विनिमय दर कहते हैं|

प्रबंधित विनिमय दर: यह विनिमय दर की वह प्रणाली है जिसमें सरकार द्वारा विनिमय दर में 1 से 3 प्रतिशत की उतार-चढ़ाव की अनुमति दी जाती है उसे प्रबंधित विनिमय दर कहते हैं| इस प्रणाली में विनिमय दर न तो स्थिर होता है और न ही स्वतंत्र होता है। इस विनिमय दर के निर्धारण में  अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का पूरा दखल होता है |

सममूल्य प्रणाली (Par Value System): इस प्रणाली के तहत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के प्रत्येक सदस्य देश 1947-1971 तक अपनी मुद्रा का मूल्य सोने या अमेरिकी डॉलर के रूप में व्यक्त करते थे|

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने भी आईएमएफ की सममूल्य प्रणाली का पालन किया। 15 अगस्त 1947 को भारतीय रुपये और अमेरिकी डॉलर के बीच विनिमय दर एक-दूसरे के बराबर थी (अर्थात 1USD = 1INR)|

सितम्बर 1949 में भारतीय रूपये की विनिमय दर 13.33 रूपये/पाउंड स्टर्लिंग एवं 4.75 रूपये/ डॉलर आंकी गई थी| यह विनमय दर जून 1966 तक अपरिवर्तित था, जब रूपये के मूल्य में 36.5% का अवमूल्यन किया गया था एवं भारतीय रूपये की विनिमय दर 21 रूपये/पाउंड स्टर्लिंग या 7.10 रूपये/डॉलर हो गई थी| यह विनिमय प्रणाली 1971 तक जारी रही|  जब अमेरिका के पास मौजूद सोने के भंडार में कमी होने लगी तो उसने डॉलर की सोने में परिवर्तनीयता को निलंबित कर दिया था, जिसके कारण ब्रेटनवुड्स प्रणाली समाप्त हो गयी थी|

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा के अवमूल्यन के कारण:

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के ऊपर कोई बाहरी ऋण नहीं था| लेकिन भारत से अंग्रेजों के जाने के बाद पूंजी निर्माण और अच्छी योजनाओं के अभाव में भारतीय अर्थव्यवस्था पंगु हो गई थी|

1. सरकार के पास धन का अभाव: देश में खस्ताहाल हालातों की स्थिति में प्रधानमंत्री नेहरू ने रूस की पंचवर्षीय योजना के मॉडल को अपनाया| इसके अलावा 1950 और 1960 के दशक में भारत सरकार लगातार ऋण के रूप में विदेशी मुद्रा लेती रही, जिसके कारण विनिमय दर 4.75 रूपये/अमेरिकी डॉलर हो गयी |

2. चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध: 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1966 के भयंकर सूखे के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता में कमी आई जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई| इस समय भारत सरकार को बजट घाटे का सामना करना पड़ रहा था और बचत की नकारात्मक दर के कारण उसे विदेशों से अतिरिक्त ऋण नहीं मिल सकता था|

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इसके अलावा अपनी  घरेलू उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के लिए भारत सरकार को प्रौद्योगिकी की जरूरत थी| अतः प्रौद्योगिकी की प्राप्ति और उच्च मुद्रास्फीति से निपटने के लिए और विदेशी व्यापार के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए सरकार ने रूपये के बाह्य मूल्य में अवमूल्यन किया जिसके कारण विनिमय दर 7 रूपये/अमेरिकी डॉलर हो गयी थी |

3. राजनीतिक अस्थिरता और 1973 की तेल त्रासदी: 1973 की तेल त्रासदी का कारण , अरब पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OAPEC) द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती थी जिसके कारण तेल के आयात मूल्य में वृद्धि हुई| अतः इस आयात मूल्य का भुगतान करने के लिए भारत को विदेशी मुद्रा के रूप में ऋण लेना पड़ा जिससे भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन हुआ| इसके अलावा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशियों का विश्वास कम हुआ| अतः इन सभी घटनाओं के परिणामस्वरूप विनिमय दर में कमी हुई और यह 1985 में 12.34 रूपये/अमेरिकी डॉलर जबकि 1990 में 17.50 रूपये/अमेरिकी डॉलर हो गया|

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4. 1991 का आर्थिक संकट: ऐसा माना जाता है कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे कठिन दौर था| इस दौर में राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का 7.8%, ब्याज भुगतान सरकार के कुल राजस्व संग्रह का 39%, चालू खाता घाटा (CAD) सकल घरेलू उत्पाद का 3.69% और थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति लगभग 14% थी | इन सब परिस्तिथियों में भारत विदेशियों को भुगतान नही कर पा रहा था जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भारत को दिवालिया घोषित किया जा सकता था| अतः इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए सरकार ने फिर से भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन किया और विनिमय दर 24.58 रूपये/अमेरिकी डॉलर हो गयी|

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5. अन्य कारण: विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय रूपये का अवमूल्यन नहीं हुआ है बल्कि अमेरिकी डॉलर का अधिमूल्यन हुआ है जिसके कारण विनिमय दर में यह अंतर आया है|  इसके अलावा भारतीय रूपये के अवमूल्यन के निम्न कारण हैं:

  • तेल आयात पर खर्च का कम न होना  
  • भारी मात्रा में सोने का आयात
  • विलासिता वाली वस्तुओं का आयात
  • पोखरण परमाणु परीक्षण-II
  • 1997 का एशियाई वित्तीय संकट
  • वर्ष 2007-08 में वैश्विक आर्थिक मंदी
  • यूरोपीय सार्वभौम ऋण संकट (2011)

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इन सभी कारकों के कारण भारतीय मुद्रा का मूल्य 2016 में 66 रूपये/अमेरिकी डॉलर के आसपास घूम रहा है|

नीचे दी गई तालिका में 1947 से अब तक भारतीय रूपये एवं अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर को दर्शाया गया है:

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भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास बताता है कि भारतीय रूपये के अवमूल्यन ने हर बार संकट की घड़ी में भारतीय अर्थव्यवस्था की मदद की है (भले ही भारतीय मुद्रा का मूल्य कम हुआ हो)| मुद्रा के अवमूल्यन से निर्यात सस्ता और आयात महंगा होता है जिससे अंततः घरेलू देश के भुगतान संतुलन में सुधार होता है |

The History of the Indian Currency Notes and its Evolution

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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