महाशिवरात्रि 2020: भगवान शिव से जुड़े 15 प्रतीक और उनका महत्व

हर त्योहारों का अपना ही महत्व होता है, इसी प्रकार महाशिवरात्रि का भी अपना ही एक महत्व है। एसी मान्यता है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन भक्त सच्चे मन से शिव जी की अराधना करते हैं, शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। शिवलिंग पर दूध, जल और बेल पत्र चढ़ाकर शिव शंकर की पूजा करते हैं।
भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना गया है। यह इकलौते ऐसे भगवान हैं, जो स्वर्ग से दूर हिमालय की सर्द चट्टानों पर अपना घर बनाये हुए हैं| क्या अपने कभी सोचा है कि आखिर भगवान शिव गले में नाग, हाथ में त्रिशूल, सिर पर गंगा, शेर की खाल क्यों पहनते हैं, इन सबके पीछे कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है| आइए जानते हैं कि ये कहानियां क्या हैं और क्यों ये सब भगवान शिव के प्रतीक या आभूषण हैं|
हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव हुआ हैं। यू कहे तो भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं और तो और हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना गया है। यह इकलौते ऐसे भगवान हैं, जो स्वर्ग से दूर हिमालय की सर्द चट्टानों पर अपना घर बनाये हुए हैं| भगवान शिव अजन्मे माने जानते हैं, ऐसा कहा जाता है कि उनका न तो कोई आरम्भ हुआ है और न ही अंत होगा। इसीलिए वे अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। क्या अपने कभी सोचा है कि आखिर भगवान शिव गले में नाग, हाथ में त्रिशूल, सिर पर गंगा, शेर की खाल क्यों पहनते हैं, इन सबके पीछे कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है|
1. गले में सर्प
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भगवान शिव अपने गले में सर्प धारण करते हैं| यह सर्प उनके गले में तीन बार लिपटे रहता है जो भूत, वर्तमान एवं भविष्य का सूचक है| सर्पों को भगवान शंकर के अधीन होना यही संकेत है कि भगवान शंकर तमोगुण, दोष, विकारों के नियंत्रक व संहारक हैं, जो कलह का कारण ही नहीं बल्कि जीवन के लिये घातक भी होते हैं। इसलिए उन्हें कालों का काल भी कहा जाता है| सर्प को कुंडलिनी शक्ति भी कहा गया है जोकि एक निष्क्रिय ऊर्जा है और हर एक के भीतर होती है|
2. तीसरी आंख
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भगवान शिव के प्रतीकों में से एक उनका तीसरा नेत्र है जोकि उनके माथे के बीच में है| ऐसा माना जाता है कि जब वह बहुत गुस्से मे होते हैं तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है और फिर प्रलय का आगमन होता है| इसीलिए तीसरे नेत्र को ज्ञान और सर्व-भूत का प्रतीक कहा जाता है। वस्तुत: शिव का तीसरा नेत्र सांसारिक वस्तुओं से परे संसार को देखने का बोध कराता है। यह एक ऐसी दृष्टि का बोध कराती है जो पाँचों इंद्रियों से परे है। इसलिये शिव को त्र्यम्बक कहा गया है।
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3. त्रिशूल
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भगवान शिव अपने हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं| शिव का त्रिशूल मानव शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों बायीं, दाहिनी और मध्य का सूचक है| इसके अलावा त्रिशूल इच्छा, लड़ाई और ज्ञान का भी प्रतिनिधित्व करता है| ऐसा कहा जाता है कि इन नाड़ियों से होकर ही उर्जा की गति निर्धारित होती है और गुजरती है|
4. अर्धचन्द्र
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भगवान शिव अर्धचन्द्र को आभूषण की तरह अपनी जटा के एक हिस्से में धारण करते है। इसलिए उन्हें “चंद्रशेखर” या “सोम” कहा गया है| वास्तव में अर्धचन्द्र अपने पांचवें दिन के चरण में चंद्रमा बनता है और समय के चक्र के निर्माण में शुरू से अंत तक विकसित रहने का प्रतीक है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्र का होना समय को नियंत्रण करने का प्रतीक है क्योंकि चन्द्र समय को बताने का एक माध्यम है|
5. जटा (उलझे हुए बाल)
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उनके उलझे हुए बाल पवन या वायु का प्रवाह, जो सभी जीवित प्राणियों में मौजूद सांस का सूक्ष्म रूप है, का प्रतिनिधित्व करता है। इससे पता चलता है कि शिव पशुपतिनाथ, सभी जीवित प्राणियों के प्रभु हैं।
6. नीला गला या कंठ
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शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है| समुद्र मंथन के दौरान जो जहर आया था उसको उन्होंने निगल लिया था| देवी पार्वती इस जहर को उनके गले में ही रोक दिया था और इस प्रकार यह नीले रंग में बदल गया। तब से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा|
7. रूद्राक्ष
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भगवान शिव अपने गले में रूद्राक्ष की माला पहनते है जोकि रूद्राक्ष पेड़ के 108 बीजों से मिलकर बनी है| 'रूद्राक्ष' शब्द, 'रूद्र' (जो शिव का दूसरा नाम है) और 'अक्श' (अर्थात आँसू) से बना है। इसके पीछे कहानी यह है कि जब भगवान शिव ने गहरे ध्यान के बाद अपनी आँखें खोली, तो उनकी आँख से आंसू की बूंद पृथ्वी पर गिर गयी और पवित्र रूद्राक्ष के पेड़ में बदल गया। रूद्राक्ष के मोती दुनिया के निर्माण में इस्तेमाल हुए तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं| यह भी सच है कि भगवान शिव अपने ब्रह्मांडीय कानूनों के बारे में दृढ रहते है और सख्ती से ब्रह्मांड में कानून और व्यवस्था बनाए रखते है।
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8. डमरू
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यह एक छोटे से आकार का ड्रम है जोकि भगवान शिव के हाथ में रहता है और इसीलिए भगवान शिव को “डमरू-हस्त” कहा जाता है| डमरू के दो अलग-अलग भाग एक पतले गले जैसी संरचना से जुड़े होते हैं| डमरू के अलग-अलग भाग अस्तित्व की दो भिन्न परिस्थिति “अव्यक्त” और “प्रकट” का प्रतिनिधित्व करता है| जब डमरू हिलता है तो इससे ब्रह्मांडीय ध्वनि “नाद” उत्पन्न होता है जो गहरे ध्यान के दौरान सुना जा सकता है| हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, “नाद” सृजन का स्रोत है। डमरू भगवान शिव के प्रसिद्ध नृत्य “नटराज” का अभिन्न भाग है, जो शिव की प्रमुख विशेषताओं में से एक है।
9. कमंडल
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पानी का बर्तन (कमंडल) अक्सर भगवान से सटे हुए दिखाया जाता है| ऐसा कहा गया है कि यह एक सूखे कद्दू और अमृत से बना हुआ है। कमंडल को भारतीय योगियों और संतों की बुनियादी जरूरत की एक प्रमुख वस्तु के रूप में दिखाया जाता है। इसका एक गहरा महत्व है। जिस प्रकार से पके हुए कद्दू को पेड़ से तोड़ने के बाद उसके छिलके को हटाकर शरबत के लिए प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को भौतिक दुनिया से अपने लगाव को समाप्त कर अपने भीतर की अहंकारी इच्छाओं का त्याग करना चाहिए ताकि वह स्वयं के आनंद का अनुभव करने कर सके| अतः कमंडल अमृत का प्रतीक है|
10. विभूति
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भगवान के माथे पर राख की तीन लाइन विभूति के रूप में जानी जाती है। यह भगवान और उसके प्रकट होने की महिमा की अमरता का प्रतीक है।
11. कुंडल
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दो कान के छल्ले, जिन्हें “अलक्ष्य” (जिसका अर्थ है "जो किसी भी माध्यम के द्वारा दिखाया नहीं जा सकता") और निरंजन (जिसका अर्थ है 'जो नश्वर आंखों से नहीं देखा जा सकता है"), भगवान द्वारा पहनें गए है| प्रभु के कानों में सुशोभित गहने दर्शाते हैं कि भगवान शिव साधारण धारणा से परे है। उल्लेखनीय है कि प्रभु के बाएं कान का कुंडल महिला स्वरूप द्वारा इस्तेमाल किया गया है और उनके दाएं कान का कुंडल पुरूष स्वरूप द्वारा इस्तेमाल किया गया है। दोनों कानों में विभूषित कुंडल शिव और शक्ति (पुरुष और महिला) के रूप में सृष्टि के सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
12. बाघ की खाल
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हिन्दू पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि बाघ शक्ति और सत्ता का प्रतीक है तथा शक्ति की देवी का वाहन है। भगवान शिव अक्सर इस पर बैठते हैं या इस खाल को पहनते है, जोकि यह दर्शाता है कि वह शक्ति के मालिक हैं और सभी शक्तियों से ऊपर हैं| बाघ ऊर्जा का भी प्रतिनिधित्व करता है| वह इस ऊर्जा का उपयोग कर इस अंतहीन सांसारिक चक्र में ब्रह्मांड परियोजना सक्रिय से चलाते है।
13. पवित्र गंगा
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गंगा नदी (या गंगा) हिन्दूओं के लिए सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, गंगा नदी का स्रोत शिव है और उनकी जटाओं से बहती है। भगवान पृथ्वी पर और इंसान के लिए शुद्ध पानी लाने के लिए गंगा को अपनी जटाओं में धारण करते है। इसलिए, भगवान शिव अक्सर गंगाधर या " गंगा नदी के वाहक" के रूप में जाने जाते है। गंगा नदी रूद्र के रचनात्मक पहलुओं को दर्शाती है। भगवान शिव द्वारा गंगा को धारण करना यह भी इंगित करता है कि शिव न केवल विनाश के भगवान है लेकिन वह ज्ञान, पवित्रता और भक्तों को शांति भी प्रदान करते है।
14. शिव लिंग
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सभी मंदिरों में आपको भगवान शिव की मूर्ति नहीं दिखती होगी। इसके बजाय वहाँ एक काले या भूरे रंग का शिव लिंग होता है। यह एक पत्थर है जोकि भगवान शिव के अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है|
15. सांड (नंदी)
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नंदी बैल भगवान शिव के करीबी विश्वासपात्रों में से एक है। यही कारण है कि बैल नंदी सभी शिव मंदिरों के बाहर रखा जाता है। भगवान शिव के भक्त बैल के कान में अपनी इच्छाओं को कहते है ताकि यह महादेव तक पहुँच सके।
उम्मीद है कि इस लेख से भगवान शिव और उनके प्रतीकों के बारे में ज्ञात हुआ होगा।
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