भारत का एक ऐसा गांव जहां लोग सिर्फ संस्कृत बोलते हैं

Nov 7, 2017, 18:08 IST

क्या आप जानते है कि भारत में एक ऐसा गाँव है जहाँ पर लोग आमतौर पर संस्कृत में बात करते हैं. इस गाँव में संस्कृत भाषा प्राचीन काल से ही बोली जा रही है, चाहे 5 या 6 साल का बच्चा हो या फिर 85 साल का वृद्ध सभी संस्कृत में बात करते है. इस लेख में ऐसे ही गाँव के बारें में जानेंगे जहां बात करने में सिर्फ संस्कृत भाषा का ही प्रयोग किया जाता हैं.

A village in India where people speak only Sanskrit
A village in India where people speak only Sanskrit

संस्कृत भारत की एक प्राचीन और शास्त्रीय भाषा है जिसमें विश्व की पहली पुस्तक ऋग्वेद संकलित की गई थी. संस्कृत भाषा भारतीय-आर्यन समूह से है और यह कई भारतीय भाषाओं की जड़ मानी जाती हैं. प्राचीन भारत में, यह विद्वानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य भाषा थी और कभी-कभी देवभाषा-देवताओं की भाषा के रूप में भी जानी जाती है.
क्या आप जानते है कि भारत में एक ऐसा गाँव है जहाँ पर लोग आमतौर पर संस्कृत में बात करते हैं. इस गाँव का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो कोई भी धर्म का हो, सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के समुदायों द्वारा भी संस्कृत भाषा ही बोली जाती है. इस गाँव में संस्कृत भाषा प्राचीन काल से ही बोली जा रही है और लोग अपनी रोजमर्रा ज़िन्दगी में भी संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं, चाहे 5 या 6 साल का बच्चा हो या 85 साल का वृद्ध.
अब आप सोच रहे होंगे की आखिर ये गाँव कौन सा है और कहाँ पर स्तिथ है. कर्नाटक राज्य के शिवामोगा जिले का एक छोटा सा गाँव मत्तूरु है, जहाँ की मातृभाषा कन्नड़ है, फिर भी यहाँ के लोग संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते संवाद करने के लिए.
आइये मत्तूरु गांव के बारे में जानते है जहाँ सिर्फ संस्कृत में लोग बोलते हैं

Mattur sanskrit speaking village in Karnataka
Source: www.thebetterindia.com
इस गांव के बच्चों को 10 साल पूरा हो जाने के बाद वेदों का शिक्षण दिया जाता है और सभी बच्चे यहाँ पर संस्कृत में बोलते हैं. मत्तूरु गांव को एक वर्ग के रूप में बनाया गया है, जिसमें एक agraharam, एक केंद्रीय मंदिर और एक पाठशाला है. पारंपरिक तरीके से पाठशाला में वेदों का उच्चारण होता है. गांव के बड़े लोग के पर्यवेक्षण के तहत छात्र अपने पांच साल के कोर्स को सावधानीपूर्वक सीखते हैं.
पाठशाला के छात्र पुराने संस्कृत ताड़ के पत्ते एकत्र करते हैं, कंप्यूटर पर पटकथा का विस्तार करते हैं और आज के संस्कृत में क्षतिग्रस्त पाठ को फिर से लिखते हैं ताकि आम आदमी को प्रकाशन के रूप में उपलब्ध कराया जा सके. पिछले कुछ सालों से, विदेश से कई छात्र भी भाषा सीखने के लिए इस पाठशाला में क्रैश कोर्स कर चुके हैं.

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एक और दिलचस्प बात यह कि मत्तूरु गांव के घरों की दीवारों पर संस्कृत ग्रैफीटी पाई जाती है. दीवारों पर पेंट किए गए प्राचीन स्लोगन्स जैसे मार्गे स्वाच्छताय विराजाते, ग्राम सुजानाह विराजन्ते पाए जाते है, जिसका अर्थ है: एक सड़क के लिए स्वच्छता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना की अच्छे लोग गाँव के लिए. कुछ घरों के परिवारों के दरवाजे पर "आप इस घर में संस्कृत बोल सकते हैं" काफी गर्व से लिखा होता हैं. यह गांव गमाका कहानी कहने की अनोखी और प्राचीन परंपरा का भी समर्थन करता है.
इतना ही नहीं मत्तूरु के विद्यालयों में जिले के सबसे अच्छे अकादमिक रिकॉर्ड हैं. शिक्षकों के अनुसार, संस्कृत सीखने में छात्रों को गणित और तर्क के लिए एक योग्यता भी विकसित करने में मदद मिलती है. मत्तूरु के कई युवा विदेशों में इंजीनियरिंग या चिकित्सा के अध्ययन के लिए गए हैं और इस गांव के हर परिवार में कम से कम एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बनता है.
अंत में मत्तूरु गाँव का इतिहास

In Mattur people speak only Sanskrit
Source: www.ichef.bbci.co.uk.com
मत्तूरु गाँव में मुख्य रूप से संकेती समुदाय (Sankethi), एक ब्राह्मण समुदाय जो कि केरल से लगभग 600 साल पहले इस गाँव में बस गए थे. 1980 के दशक के शुरुआती दिनों तक मत्तूरु के ग्रामीणों द्वारा कन्नड़ और तमिल बोली जाती थी. संस्कृत को उच्च जाति ब्राह्मणों की भाषा माना जाता था तब स्थानीय धार्मिक केंद्र के पुजारी ने निवासियों को संस्कृत को अपनी मूल भाषा के रूप में अपनाने के लिए कहा.
पूरे गांव ने इस पर ध्यान दिया और प्राचीन भाषा में बात करना शुरू कर दिया. तब से यह केवल संकेती समुदाय के सदस्य नहीं बल्कि गांव में रहने वाले सभी समुदायों के सदस्य, चाहे सामाजिक या आर्थिक स्थिति के बावजूद, उन्होंने संस्कृत में संवाद स्थापित करना शुरू कर दिया था.
मत्तूरु इतना खास गाँव क्यों है जब कि देश की आबादी का 1% से भी कम लोग संस्कृत भाषा में संवाद करते है, न केवल ग्रामीणों ने अपने दैनिक जीवन में भाषा का इस्तेमाल किया बल्कि वे लोगों को सिखाने में भी दिलचस्पी रखते है और पढ़ाने के लिए भी तैयार रहते हैं. आने वाले वर्षों में उनका प्रशंसनीय प्रयास लंबे समय तक इस प्राचीन भाषा को जीवित रखेगा.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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