जानें भारतीय संविधान अनुच्छेद 32 के बारे में

Nov 19, 2020, 11:18 IST

अनुच्छेद 32 एक मौलिक अधिकार है, जो प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने का अधिकार देता है. आइये अनुच्छेद 32 के बारे में विस्तार से अध्ययन करते हैं.

Article 32 of the Indian Constitution
Article 32 of the Indian Constitution

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे (S A Bobde) की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिकाओं को 'हतोत्साहित' करने का प्रयास कर रहे हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने यह बात केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा पत्रकार सिद्दीक कप्पन की रिहाई के लिए अनुच्छेद 32 के तहत दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण  (Habeas Corpus) याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा. केरल स्थित कप्पन को 5 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था, जब वह 20 वर्षीय दलित महिला से कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या की रिपोर्ट करने के लिए हाथरस जा रहा था.

मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे के अनुसार अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिकाओं की सर्वोच्च न्यायालय में भरमार है. जब लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो लोग उच्च न्यायालय के पास जाने की बजाय सीधे सर्वोच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रहे हैं. और तो और ऐसे मामलों में रिट जारी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को भी प्रदान किया गया है.

अनुच्छेद 32 के बारे में 

- अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार से संबंधित है. यह एक मौलिक अधिकार है. इस अनुच्छेद के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है कि वह अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिये सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सकता है .

ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि संवैधानिक उपचारों का अधिकार अपने या स्वयं में कोई अधिकार नहीं है बल्कि अन्य मौलिक अधिकारों का रक्षोपाय है. अगर किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो इसके अंतर्गत इस स्थिति में न्यायालय की शरण ले सकता है. इसलिये डॉ. अंबेडकर ने संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद 32 को बताया था और कहा थे कि इस अनुच्छेद के बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है.

किसी भी मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिये सर्वोच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के पास  निर्देश, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निम्नलिखित रिट जारी की जा सकती हैं: बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट, परमादेश (Mandamus) रिट, प्रतिषेध (Prohibition) रिट, उत्प्रेषण (Certiorari) रिट और अधिकार पृच्छा (Qua Warranto)  रिट.

याचिका (रिट) और उनका विषय क्षेत्र

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति, संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये किसी भी न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने के अधिकार को निलंबित कर सकता है.यहीं आपको बता दें कि इसके अलावा अन्य किसी भी स्थिति में इस अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता है.

सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के मामले में मूल क्षेत्राधिकार तो है लेकिन यह न्यायालय का विशेषाधिकार नहीं है.

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में कहा है कि जब उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के तहत राहत प्रदान कि जा सकती है तो पीड़ित पक्ष को सबसे पहले उच्च न्यायालय के पास ही जाना चाहिए.

ऐसा भी अतीत में कई बार देखा गया है जब सर्वोच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के मामलों को अपने पास स्थानांतरित कर दिया था. उदाहरण के तौर पर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लिए भूमि उपयोग से जुड़े एक मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय से स्वयं को स्थानांतरित किया था लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इस तरह के हस्तांतरण की मांग नहीं की थी.

अनुच्छेद 226 के बारे में 

अनुच्छेद 226 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन अथवा ‘किसी अन्य उद्देश्य’ के लिए उच्च न्यायालयों को सभी प्रकार की रिट जारी करने का अधिकार प्रदान करता है.

 ‘किसी अन्य उद्देश्य’ का अर्थ है किसी सामान्य कानूनी अधिकार के प्रवर्तन से है. इसलिए उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र रिट को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में काफी व्यापक है.

अंत में आपको बता दें कि केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही सर्वोच्च न्यायालय रिट जारी कर सकता है लेकिन उच्च न्यायालय को अन्य किसी उद्देश्य के लिए भी रिट जारी करने का अधिकार है.

तो आपको ज्ञात हो गया होगा कि अनुच्छेद 32 एक मौलिक अधिकार है जो सर्वोच्च न्यायालय को निर्देश, आदेश, और रिट जारी करने का अधिकार देता है. वहीं अनुच्छेद 226 एक संवैधानिक अधिकार है जो मौलिक अधिकारों और अन्य अधिकारों के अधिकारों के प्रवर्तन के लिए एक निर्देश, आदेश और रिट जारी करने के लिए उच्च न्यायालय को अधिकार देता है.

संवैधानिक अधिकार के बारे में 

संवैधानिक अधिकार वे अधिकार हैं जो भारत के सभी नागरिकों को प्रदान किए गए हैं और भारतीय संविधान में निहित हैं लेकिन भारतीय संविधान के भाग III के तहत सूचीबद्ध नहीं हैं.

एक संवैधानिक अधिकार भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त एक सर्वोच्च अधिकार है और यदि इसके साथ कुछ कॉण्ट्राडिक्ट हो तो कानून या लॉ को नल (null) और वोयड (void) घोषित किया जाएगा.

संवैधानिक अधिकार मूल अधिकार (Basic Rights) नहीं होते हैं और मौलिक अधिकारों के विपरीत, सभी भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होते हैं. 

 

मौलिक अधिकार के बारे में 

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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