ज्वालामुखी विस्फोट के कारण

Dec 27, 2017, 15:57 IST

ज्वालामुखी विस्फोट की प्रक्रिया दो रूपों में होती है. पहली प्रक्रिया भूपृष्ठ के नीचे होती है तथा दूसरी प्रक्रिया भूपृष्ठ के ऊपर होती है. इस लेख में हम ज्वालामुखी विस्फोट के विभिन्न कारण तथा ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बाहर निकलने वाले विभिन्न पदार्थों का विवरण दे रहे हैं.

Causes of Volcanic Eruptions
Causes of Volcanic Eruptions

ज्वालामुखी पृथ्वी पर घटित होने वाली एक आकस्मिक घटना है. इससे भू-पटल पर अचानक विस्फोट होता है, जिसके माध्यम से लावा, गैस, धुँआ, राख, कंकड़, पत्थर आदि बाहर निकलते हैं. इन सभी वस्तुओं का निकास एक प्राकृतिक नली द्वारा होता है, जिसे निकास नलिका (Vent or Neck) कहते हैं. लावा धरातल पर आने के लिए एक छिद्र बनाता है, जिसे विवर या क्रेटर (Crater) कहते हैं. लावा अपने विवर के आस-पास जम जाता है और एक शंक्वाकार पर्वत बनाता है, जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं.
ज्वालामुखी विस्फोट की प्रक्रिया दो रूपों में होती है. पहली प्रक्रिया भूपृष्ठ के नीचे होती है तथा दूसरी प्रक्रिया भूपृष्ठ के ऊपर होती है. प्रथम प्रक्रिया में लावा धरातल के नीचे पृथ्वी के आन्तरिक भाग में विभिन्न गहराइयों पर ठंडा होकर जम जाता है और बैथोलिथ, लैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल, शीट, डाइक आदि रूपों को जन्म देता है. द्वितीय प्रक्रिया में लावा भूतल पर आकर ठंडा होने से जमता है और उससे विभिन्न प्रकार की भूआकृतियां बनती है.

ज्वालामुखी विस्फोट के कारण

ज्वालामुखियों का जन्म पृथ्वी के आन्तरिक भागों में होता है जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से नहीं देख पाते हैं. अतः जवालामुखी विस्फोट के विभिन्न चरणों को ढूंढने के लिए हमें बाहरी तथ्यों का सहारा लेना पड़ता है. इन बाहरी तथ्यों के आधार पर ज्वालामुखी विस्फोट के लिए उत्तरदायी जिन कारणों का पता चलता है, वे निम्नलिखित हैं:
1. भू-गर्भ में अत्यधिक ताप का होना
पृथ्वी के भू-गर्भ में अत्यधिक तापमान होता है. यह उच्च तापमान वहां पर पाए जाने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों के विघटन, रासायनिक प्रक्रमों तथा ऊपरी दबाव के कारण होता है. साधारणतया 32 मीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है. इस प्रकार अधिक गहराई पर पदार्थ पिघलने लगता है और भू-तल के कमजोर भागों को तोड़कर बाहर निकल आता है, जिसके कारण ज्वालामुखी विस्फोट होता है.
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2. कमजोर भू-भाग का होना
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए कमजोर भू-भागों का होना अति आवश्यक है. ज्वालामुखी पर्वतों का विश्व-वितरण देखने से स्पष्ट हो जाता है कि संसार के कमजोर भू-भागों से ज्वालामुखी का निकट संबंध है. प्रशांत महासागर के तटीय भाग, पश्चिमी द्वीप समूह और एण्डीज पर्वत क्षेत्र इस तथ्य का प्रमाण देते हैं.
3. गैसों की उपस्थिति
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए गैसों की उपस्थिति, खासकर जलवाष्प की उपस्थिति महत्वपूर्ण है. वर्षा का जल भू-पटल की दरारों तथा रन्ध्रों द्वारा प्रिथ्वी के आन्तरिक भागों में पहुंच जाता है और वहां पर अधिक तापमान के कारण जलवाष्प में बदल जाता है. समुद्र तट के नजदीक समुद्री जल भी रिसकर नीचे की ओर चला जाता है और जलवाष्प बन जाता है. जब जल से जलवाष्प बनता है तो उसका आयतन एवं दबाव काफी बढ़ जाता है. अतः वह भू-तल पर कोई कमजोर स्थान पाकर विस्फोट के साथ बाहर निकल आता है, जिसे ज्वालामुखी कहते हैं.
4. भूकंप
भूकंप से भू-पृष्ठ में विकार उत्पन्न होता है और भ्रंश पड़ जाते हैं. इन भ्रंशों से पृथ्वी के आन्तरिक भाग में उपस्थित मैग्मा धरातल पर आ जाता है और ज्वालामुखी विस्फोट होता है.

ज्वालामुखी विस्फोट के माध्यम से बाहर निकलने वाले पदार्थ

ज्वालामुखी विस्फोट के कारण ठोस, तरल और गैस तीनों प्रकार के पदार्थ बाहर निकलते हैं:
1. ठोस पदार्थ
ज्वालामुखी विस्फोट के माध्यम से बारीक धूल-कणों तथा राख से लेकर कई तन भर वाले शिलाखंड भी बाहर निकलते हैं. इन शिलाखंडों में मटर के दाने के आकार वाले शिलाखंडों को लैपिली (Lapillus) तथा छह-सात सेंटीमीटर से लेकर एक मीटर व्यास वाले शिलाखंडों को ज्वालामुखी बम (Volcanic Bomb) कहते हैं. कभी-कभी बहुत छोटे-छोटे नुकीले शिलाखंड लावा से चिपककर संगठित हो जाते हैं, जिन्हें ज्वालामुखी संकोणाश्म (Volcanic Breecia) कहते हैं.
2. तरल पदार्थ
ज्वालामुखी से निकलने वाले तरल पदार्थ को लावा कहते हैं. यह बहुत ही गर्म होता है. ताजा निकले लावे का तापमान 600 से 1200 डिग्री सेल्सियस तक होता है. लावा की बाहर निकलने की गति उसकी रासायनिक संरचना तथा भूमि की ढाल पर निर्भर करती है. इसकी गति अधिकतर धीमी होती है परन्तु कभी-कभी यह 15 किमी. प्रति घंटा की गति से भी बाहर निकलता है. जब लावा अधिक तरल हो तथा भूमि की ढाल अत्यधिक तीव्र हो तो यह 80 किमी. प्रति घंटा की गति से भी बाहर निकलता है.
3. गैसीय पदार्थ
ज्वालामुखी विस्फोट के समय कई प्रकार की गैसें निकलती हैं जिनमें हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन-डाई-सल्फाइड, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं अमोनिया क्लोराइड प्रमुख हैं. गैसों में जलवाष्प का महत्व सबसे अधिक है. ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाली गैसों में 60 से 90% भाग जलवाष्प का ही होता है.
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