Sanvidhan Diwas 2025: जानें परीक्षाओं में अक्सर पूंछे जानें वाले संविधान से जुड़ी महत्वपूर्ण केस

Nov 26, 2025, 13:53 IST

Sanvidhan Diwas 2025: देश आज संविधान दिवस की 76वीं वर्षगांठ मना रहा है, संविधान ने न केवल देश को एक नया रूप दिया है बल्कि देश के इतिहास को बदला और देश के कानून को और मजबूत किया है. संविधान से जुड़े प्रश्न लगभग सभी परीक्षाओं में पूंछे जाते हैं आज हम यहाँ परीक्षार्थियों के लिए उन महत्वपूर्ण केसों की लिस्ट लाये हैं जिन्होंने देश का इतिहास बदल दिया.आइये जानें वो महत्वपूर्ण केस कौन से हैं.

Sanvidhan Diwas 2025: जानें परीक्षाओं में अक्सर पूंछे जानें वाले संविधान से जुड़ी महत्वपूर्ण केस
Sanvidhan Diwas 2025: जानें परीक्षाओं में अक्सर पूंछे जानें वाले संविधान से जुड़ी महत्वपूर्ण केस

Sanvidhan Diwas 2025: आज 26 नवम्बर को देश 76वां संविधान दिवस मना रहा है. आज ही के दिन 26 नवंबर 1949  को देश ने संविधान को अपनाया था. संविधान ने देश की एकता में न केवल मजबूती प्रदान की है बल्कि देश को एक मजबूत कानून भी प्रदान किया है. संविधान के ऐसे बहुत से महत्वपूर्ण जजमेंट हैं जिन्होंने देश के कानून को एक नई रुपरेखा प्रदान की है.   

1. केशवानंद भारतीय केस (1973)बनाम केरल राज्य   (मूल संरचना सिद्धांत) 

केशवानंद भारती वाद में, सर्वोच्च न्यायालय ने मूल संरचना सिद्धांत को स्पष्ट किया। इस केस में ऐतिहासिक निर्णय दिया गया कि संसद संविधान में  इस तरह से संशोधन नहीं कर सकती है जिससे उसकी मूल संरचना में परिवर्तन हो जाये। इस केस में संविधान के मौलिक संरचना को स्पष्ट किया गया.  मौलिक विशेषताएं- लोकतंत्र, संघवाद और न्यायिक समीक्षा- को बदला नहीं जा सकता। UPSC सहित अन्य परीक्षाओं के लिए ये अत्यंत महत्वपूर्ण कानून है. 


2. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967)

गोलकनाथ वाद परीक्षा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण वाद है  इसमें सुप्रीमकोर्ट ने निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए संविधान में संशोधन नहीं कर सकती। न्यायालय ने इस वाद में कहा कि संसद के पास मौलिक अधिकारों में संशोधन की शक्ति असीमित नहीं है.  इस निर्णय के बाद से न्यायपालिका और विधायिका के बीच संवैधानिक शक्ति संतुलन बदल गया। यह एक ऐसा मामला है जिसे संवैधानिक संशोधनों और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के बीच संबंधों के अध्ययन में समझना महत्वपूर्ण है।

3. मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)

इस वाद में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया गया इसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 से संबंधित कानून के दायरे की व्याख्या की गई है. इसमें जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को स्पष्ट किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिकार के दायरे को व्यापक बनाया कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता से वंचित करने की प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित होनी चाहिए। इस मामले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने में मदद की।

 

4. इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992)

इंद्रा साहनी वाद में भारत में आरक्षण नीति से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया है।  इस वाद में न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए आरक्षण की नीति को अनुमति दी, लेकिन इसी निर्णय में  ओबीसी में "क्रीमी लेयर" के प्रावधान को विकसित किया। 

5. विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997)

ये निर्णय लैंगिक समानता के मुद्दे पर ऐतिहासिक निर्णय है। इसी वाद के परिणामस्वरूप सुप्रीमकोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए विशाखा दिशा-निर्देश जारी किए है। यौन उत्पीड़न को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना गया है और नियोक्ताओं को निवारक उपाय का निर्देश दिया गया है। इस मामले के कारण 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम को अधिनियमित किया गया। इस मामले में भारत में लैंगिक न्याय और कार्यस्थल अधिकारों को समझने के लिए व्यापक निहितार्थ हैं।

 

6. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)

मिनर्वा मिल्स वाद में, सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती के मूल संरचना सिद्धांत को दोहराया था, जिसमें कहा गया था कि संसद संविधान में इस तरह से संशोधन नहीं कर सकती जिससे उसके मूल ढांचे में संशोधन हो।


Sonal Mishra
Sonal Mishra

Senior Content Writer

Sonal Mishra is an education industry professional with 6+ years of experience. She has previously worked with Dhyeya IAS and BYJU'S as a state PCS and UPSC content creator. She participated UPPCS mains exam in 2018.and is a postgraduate in geography from CSJMU Kanpur. She can be reached at sonal.mishra@jagrannewmedia.com

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