बड़े नाभिकों में दो प्रोटॉनों के बीच में दूरी इतनी कम हो जाती है कि प्रोटॉनों के मध्य उनके समान विद्युत-आवेश के कारण लगने वाला प्रतिकर्षण बल, उनके मध्य लगने वाले नीभिकीय बल (nuclear force) जो एक आकर्षण बल होता है, से अधिक हो जाता है.
यह पाया गया है कि जिन नाभिकों में प्रोटॉनों की संख्या 83 या उससे अधिक होती है, वे अस्थायी होते हैं. स्थायित्व प्राप्त करने के लिए ये नाभिक स्वत: ही अल्फा (α), बीटा (β) तथा गामा (४) किरणों का उत्सर्जन करने लगते हैं.
ऐसे नाभिक जिन तत्वों के परमाणुओं में होते हैं उन्हें रेडियोऐक्टिव तत्व कहते हैं तथा उपर्युक्त किरणों के उत्सर्जन की घटना को रेडियोऐक्टिवता कहते हैं.
आइये अल्फा (α), बीटा (β) तथा गामा (४) किरणों के बारे में अध्ययन करते हैं
यहां पर अल्फा (α) किरणें वास्तव में धनावेशित हीलियम नाभिकों से बनी होती हैं तथा बीटा किरणें केवल तीव्र गति से गमन करने वाले ऋणावेश युक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं. गामा (४) किरणें आवेश रहित फोटॉन कणों से बनती हैं. जब किसी नाभिक से अल्फा किरणें या बीटा किरणें उत्सर्जित हो जाती हैं तो वह नाभिक एक नये तत्व के नाभिक में बदल जाता है. यदि यह नाभिक उत्तेजित अवस्था में होता है तो वह अपनी उत्तेजन उर्जा को गामा किरणों के रूप में उत्सर्जित करके अपनी मूल अवस्था (ground state) में आ जाता है. इस प्रकार गामा किरणें, अल्फा या बीटा किरणों के बाद ही उत्सर्जित होती हैं.
1. अर्ध-आयु (Half-Life) – किसी रेडियोऐक्टिव तत्व में किसी क्षण पर उपस्थित परमाणुओं के आधे परमाणु जितने समय में विघटित (disintegrate) हो जाते हैं, उस समय को उस तत्व की अर्ध-आयु कहते हैं. हम आपको बता दें कि प्रत्येक रेडियोऐक्टिव तत्व की अर्ध-आयु निश्चित होती है. विभिन्न तत्वों की अर्ध-आयु 10-7 सेकंड से 1010 वर्ष तक पाई जाती है.
2. तत्वान्तरण (Transmutation) – एक रेडियोऐक्टिव तत्व का दूसरे तत्व में परिवर्तित हो जाना तत्वान्तरण कहलाता है. प्राकृतिक रेडियोऐक्टिव तत्व तो अल्फा या बीटा कण का उत्सर्जन करके दूसरे तत्वों में बदलते रहते ही हैं. इनके अतिरिक्त कृत्रिम रूप से भी नये तत्व बनाए जा सकते हैं. इसके लिए परमाणु क्रमांक 92 (युरेनियम) से ऊपर कर तत्वों को चुना जाता है और उन पर उच्च उर्जा के इलेक्ट्रॉन या प्रोटॉन की बमबारी (bombarding) की जाती है. इस प्रकार के क्रत्रिम तत्वान्तरण द्वारा अब प्राय: सभी तत्वों को रेडियोऐक्टिव भी बनाया जा सकता है.
क्या आप जानते हैं कि रेडियोऐक्टिवता की खोज हेनरी बेकरल ने की थी.
3. रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (Radioactive isotopes) - रेडियोऐक्टिव समस्थानिक बनाने के लिए पदार्थों को नाभिकीय रिएक्टर में न्यूट्रॉनों द्वारा किरणित (irradiated) किया जाता है अथवा उन पर त्वरक (accelerator) से प्राप्त उच्च उर्जा कणों द्वारा बमबारी की जाती है. आजकल रेडियोऐक्टिव समस्थानिकों का उपयोग वैज्ञानिक शोध कार्य, चिकित्सा, क्रषि एवं उद्योगों में लगातार बढ़ता जा रहा है. क्या आप जानते हैं कि एक तत्व के सभी समस्थानिकों के रासायनिक गुण एक समान होते हैं, परन्तु नाभिकीय गुण बहुत भिन्न होते हैं.
Source: www.tes.com
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रेडियोएक्टिविटी का कहाँ-कहाँ उपयोग किया जाता है
1. चिकित्सा में उपयोग: कोबाल्ट-60 एक रेडियोऐक्टिव समस्थानिक है जो उच्च उर्जा की गामा किरणें उत्सर्जित करता है. इन गामा किरणों का उपयोग कैंसर के इलाज में किया जाता है. यहां तक कि थायराइड ग्रंथि के कैंसर की चिकित्सा के लिए शरीर में रेडियोऐक्टिव आयोडीन समस्थानिक की पर्याप्त मात्रा प्रवष्टि कराई जाती है.
क्या आप जानते हैं कि Geiger-Miller काउन्टर एक ऐसी युक्ति डिवाइस (device) है जो रेडियोऐक्टिव पदार्थ की उपस्थिति को पहचान लेती है तथा उसकी सक्रियता (activity) को माप भी सकती है.
2. रेडियोऐक्टिव समस्थानिकों का उपयोग मानव शरीर में संचरित होने वाले कुल रक्त का आयतन ज्ञात करने में भी किया जाता है. उदाहरण के लिए, थायराइड ग्रंथि के कैंसर के उपचार के लिए I-131, ट्यूमर की खोज में As-74 तथा परिसंचरण तंत्र में रक्त के थक्के का पता लगाने के लिए Na-24 समस्थानिक का उपयोग किया जाता है.
3. कृषि में उपयोग होता हैं: पौधे ने कितना उर्वरक (fertilizer) ग्रहण किया है, इसका पता रेडियोऐक्टिव समस्थानिकों की विधि से लगाया जाता है. इसे ट्रेसर विधि (tracer technique) कहते हैं.
4. उद्योग में उपयोग किया जाता हैं: ऑटोमोबाइल के इंजन के क्षयन (wear) का पता लगाने के लिए ट्रेसर विधि का उपयोग किया जाता है. इसके लिए इंजन के पिस्टन को रेडियोऐक्टिव बना कर पुन: इंजन में फिट कर दिया जाता है फिर उसके स्नेहन तेल (lubricating oil) में रेडियोऐक्टिविटी के बढ़ने की दर को माप करके पिस्टन के क्षयन या घिसाव को ज्ञात किया जाता है.
5. कार्बन काल निर्धारण (Carbon dating): इस विधि द्वारा जीव के अवशेषों की आयु का पता लगाया जाता है. जीवित अवस्था में प्रत्येक जीव (पौधे या जन्तु) कार्बन-14 जो कि एक रेडियोऐक्टिव समस्थानिक तत्व को ग्रहण करता रहता है और मृत्यु के बाद उसका ग्रहण करना बंद हो जाता है. अत: मृत्यु के बाद जीव के शरीर में प्रकृतिक रूप से कार्बन-14 के क्षय (decay) द्वारा उसकी मात्रा कम होती रहती है. अत: किसी मृत जीव में कार्बन-14 की सक्रियता को माप करके उसकी मृत्यु से वर्तमान तक के समय की गणना की जा सकती है.
6. युरेनियम काल-निर्धारण: चट्टान आदि प्राचीन निर्जीव पदार्थों की आयु को उनमें उपस्थित रेडियोऐक्टिव खनिजों, जैसे युरेनियम, द्वारा ज्ञात किया जाता है. इस विधि द्वारा चंद्रमा से लाइ गई चट्टानों की आयु 4.6 x 109 यानी 4.6 अरब वर्ष पाई गई है जो लगभग उतनी ही है जितनी पृथ्वी की है.
स्वाभाविक रूप से होने वाले पदार्थों, तत्वों और इसके यौगिकों द्वारा कुछ अदृश्य किरणों को उत्सर्जित करके स्वयं विघटन की घटना को रेडियोऐक्टिवता कहा जाता है. रेडियोएक्टिव पदार्थों से मुक्त होने वाली अदृश्य किरणों को रेडियोएक्टिव किरण कहा जाता है और यह केवल परमाणुओं की अस्थिरता के कारण ही होता है.
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