Lok Sabha elections 2024: भारत में इस समय लोकतंत्र का महापर्व कहे जाने वाले लोकसभा चुनाव 2024 का आयोजन किया जा रहा है. इस बार सात चरणों में मतदान कराये जा रहे है. पहले दो चरण के मतदान 19 अप्रैल और 26 अप्रैल को आयोजित किये गए जिसमें 190 लोकसभा सीटों पर वोटिंग करायी गयी थी. इस चुनावी महापर्व में सत्ताधारी एनडीए सहित विपक्षी दल के नेताओं ने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंख दी है. पीएम मोदी हर चरण में चुनावी रैली कर रहे है साथ ही कांग्रेस ने भी अपने गठबंधन के साथियों को जीत दिलाने के लिए मैदान में डटी हुई है.
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इस चुनाव में आपने देखा होगा कि एक प्रत्याशी एक से अधिक सीटों में चुनाव लड़ रहे है, यह पहला मौका नहीं है जब कोई प्रत्याशी एक से अधिक सीट से चुनाव मैदान में है. आपको बता दें कि एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने का चलन कोई नया नहीं है, देश में इससे पहले कराये गए चुनावों में भी लोग एक से अधिक सीटों से नामांकन करते रहे है.
हाल ही में, दोहरी उम्मीदवारी को लेकर सवाल तब उठा जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दूसरे चरण में केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने के बाद उत्तर प्रदेश के रायबरेली से अपना नामांकन दाखिल किया. राहुल गांधी के अलावा ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी ओडिशा विधानसभा की दो सीटों - कांताबांजी और हिन्जिली विधानसभा सीटों से नामांकन दाखिल किया है. चलिये अब जानते है इसको लेकर क्या नियम बनाये गए है.
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अधिकतम कितनी सीटों से लड़ सकता है एक प्रत्याशी:
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33 के तहत कोई भी एक प्रत्याशी अधिकतम दो सीटों से चुनावी मैदान में उतर सकता है जिसे लोकतंत्र की बदलती गतिशीलता के रूप में भी परिभाषित किया जाता है. अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ावा देने के लिए अक्सर नेता दो सेटों में चुनाव लड़ते है.
दोनों सीटों पर जीत के बाद क्या होगा:
यदि उम्मीदवार दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से जीत दर्ज करता है तो, उन्हें चौदह दिनों के भीतर एक सीट खाली करनी होगी, जिसके बाद उस सीट पर उपचुनाव कराया जायेगा.
पहले था अलग नियम:
देश में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पहले किसी प्रत्याशी के चुनाव लड़ने की कोई निर्धारित सीमा नहीं थी उम्मीदवार कई सीटों से चुनाव लड़ सकता था, लेकिन बाद में इस नियम में बदलाव कर दिया गया और इसे 2 सीटों तक सिमित कर दिया गया.
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दो सीटों से चुनाव लड़ने का क्या है इतिहास:
अटल बिहारी वाजपेयी: दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की प्रथा पुरानी है, एक बड़ा उदाहरण पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं, जिन्होंने 1996 के आम चुनावों में लखनऊ और गांधीनगर निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था और दोनों सीटों से जीत दर्ज की थी.
सोनिया गांधी: साल 1999 में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कर्नाटक के बेल्लारी और उत्तर प्रदेश के अमेठी से चुनाव लड़ा था.
पीएम नरेंद्र मोदी: साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के वडोदरा और उत्तर प्रदेश के वाराणसी से आम चुनाव लड़ा था. उन्होंने दोनों सीटें जीत लीं थी लेकिन बाद में उन्होंने वाराणसी सीट बरकरार रखी थी.
राहुल गांधी: साल 2019 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दो निर्वाचन क्षेत्रों - उत्तर प्रदेश के अमेठी और केरल के वायनाड से चुनाव लड़ा था हालांकि, उन्हें सिर्फ वायनाड सीट पर ही जीत मिली थी और अमेठी से वह हार गए थे.
क्या दो सीटों पर चुनाव लड़ना उचित?
कई जानकारों का इसे लेकर अलग मत है उनका कहना है कि राजनीतिक लाभ के लिए नेता ऐसा करते है लेकिन बाद में उपचुनाव कराये जाते है जिसकी कीमत करदाताओं को चुकानी पड़ती है. साथ कई लोगों का यह भी मनना है कि जब नागरिक को एक वोट का अधिकार है तो उसी तरह किसी भी प्रत्याशी को एक ही चुनावी क्षेत्र से चुनाव लड़ने का अधिकार होना चाहिए.
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