जानें पहाड़ों को कैसे मापा जाता है?

Dec 17, 2020, 18:19 IST

हाल ही में, चीन और नेपाल ने मिलकर किये सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी 'माउंट एवरेस्ट' की ऊंचाई 8,848.86 मीटर बताई है. यह माउंट एवरेस्ट की पुरानी मान्य ऊंचाई से 86 सेंटीमीटर ज्यादा है. क्या आप जानते हैं कि मूल ऊंचाई की गणना कैसे की जाती है और इस संशोधन का क्या अर्थ है? आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.

How to measure a mountain?
How to measure a mountain?

हाल ही में, चीन और नेपाल ने मिलकर किये सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी 'माउंट एवरेस्ट' की ऊंचाई 8,848.86 मीटर बताई है. यह माउंट एवरेस्ट की पुरानी मान्य ऊंचाई से 86 सेंटीमीटर ज्यादा है. 

आइये अब जानते हैं कि किसी भी पहाड़ की ऊंचाई को कैसे मापा जाता है?

पहले पहाड़ की ऊंचाई को मापने के लिए जो मूल सिद्धांत इस्तेमाल किया गया था वह बहुत सरल है और केवल त्रिकोणमिति का उपयोग करता है जो हम में से अधिकांश लोग परिचित हैं और इसे आसानी से याद भी किया जा सकता हैं. जैसा की हम जानते हैं कि किसी भी त्रिभुज में तीन भुजाएँ और तीन कोण (Angle) होते हैं. यदि हम इन तीन मात्राओं (Quantities) को जानते हैं, जिसमें से एक साइड हो तो अन्य सभी की गणना की जा सकती है. समकोण त्रिभुज (Right-Angled Triangle) में, कोणों (Angles) में से एक पहले से ही ज्ञात हो और यदि हम किसी अन्य कोण और किसी भी साइड को जानते हों तो तो बाकी का पता लगाया जा सकता है. यह सिद्धांत किसी भी वस्तु की ऊंचाई को मापने के लिए लागू किया जा सकता है.

आइये इसे और अच्छे से समझते हैं.

ऐसे मान लेते हैं कि हमें एक पोल या एक इमारत की ऊंचाई मापनी है. हम इमारत से कुछ दूरी पर जमीन पर किसी भी मनमाने बिंदु को चिह्नित कर सकते हैं. यह हमारे अवलोकन का बिंदु (Point of Observation) हो सकता है. 

हमें अब दो चीजों की आवश्यकता है - अवलोकन के बिंदु से इमारत की दूरी, और ऊँचाई का कोण (Angle of Elevation) जो इमारत के शीर्ष भूमि पर अवलोकन के बिंदु के साथ बनाता है. यह दूरी मिलना मुश्किल नहीं है. 

Mountain

Source: IE

ऊँचाई का कोण (Angle of Elevation) क्या होता है?

यह वह एंगल है जो एक काल्पनिक रेखा बनाता है यदि यह इमारत के शीर्ष पर जमीन के अवलोकन के बिंदु में शामिल हो रहा है. ऐसे सरल उपकरण हैं जिनकी सहायता से इस कोण या एंगल को मापा जा सकता है.

इसलिए, यदि अवलोकन के बिंदु (Point of Observation) से इमारत तक की दूरी d है और ऊँचाई का कोण (Angle of Elevation) E है, तो भवन की ऊँचाई d × tan (E) होगी.

क्या पहाड़ को मापना इतना सरल हो सकता है? इसके लिए क्या कोई इंस्ट्रूमेंट की भी आवश्यकता पडती है? आइये जानते हैं.

सिद्धांत समान ही है, और अंततः, हम एक ही मेथड (Method) का उपयोग करते हैं, लेकिन कुछ जटिलताएं भी होती हैं. मुख्य समस्या यह है कि यद्यपि आप शीर्ष तो जानते हैं परन्तु पहाड़ का आधार यानी बेस (Base) ज्ञात नहीं है. सवाल यह उठता है कि आप किस सतह से ऊँचाई को नाप रहे हैं. आमतौर पर, व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए ऊंचाइयों को समुद्र तल (Mean Sea Level, MSL) से ऊपर मापा जाता है. इसके अलावा, हमें पहाड़ से दूरी (Distance) खोजने की जरूरत है.

आज यह आसान लगता है, लेकिन 1950 के दशक में कोई GPS या सॅटॅलाइट (Satellite) चित्र या इमेजेज नहीं थे. तो, पहाड़ की दूरी या डिस्टेंस कैसे ढूंढे जहाँ आप शारीरिक रूप से नहीं जा सकते हैं? उस समय तक किसी ने भी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई भी नहीं की थी.

हम एक ही same line में अवलोकन के दो अलग-अलग बिंदुओं से ऊंचाई के कोणों (Angles of Elevation) को मापकर इस समस्या को सोल्व कर सकते हैं. अवलोकन (Observation) के इन विभिन्न बिंदुओं के बीच की दूरी को मापा जा सकता है. अब हम दो अलग-अलग त्रिकोणों (Triangles) के साथ काम करेंगे, लेकिन एक Common Arm और दो अलग-अलग Angles of Elevation के साथ.

हाई-स्कूल त्रिकोणमिति (Trigonometry) के सरल नियमों का पालन करके, पहाड़ की ऊंचाई की गणना की जा सकती है वो भी काफी सटीक रूप से.  ऐसा GPS, सॅटॅलाइट और अन्य आधुनिक तकनीकों के आगमन से पहले किया जाता था.

अब सवाल यह है कि इस प्रकार से मापना कितना सही है?

छोटी पहाड़ियों और पहाड़ों के लिए, जिनके शीर्ष को अपेक्षाकृत निकट दूरी से देखा जा सकता है, यह काफी सटीक माप दे सकता है. लेकिन माउंट एवरेस्ट और अन्य ऊंचे पहाड़ों के लिए, कुछ अन्य जटिलताएं हैं और वे वहीं हैं कि हम नहीं जानते कि पहाड़ का आधार (Base) कहां है. दूसरे शब्दों में, पहाड़ बिल्कुल सपाट जमीन की सतह से कहां मिलता है. और या फिर अवलोकन का बिंदु (Point of Observation) और पहाड़ का आधार (Base)  एक ही horizontal level पर हो.

पृथ्वी की सतह हर स्थान पर समान रूप से नहीं होती है. इसी कारण से हम समुद्र तल से ऊँचाई नापते हैं. यह एक श्रमसाध्य प्रक्रिया (Painstaking Process) के माध्यम से किया जाता है जिसे उच्च परिशुद्धता लेवलिंग (High-Precision Levelling) कहा जाता है. समुद्र तट से शुरू करके, हम विशेष उपकरणों का उपयोग करके ऊंचाई में अंतर को चरण दर चरण गणना करते हैं. इस तरह से हम समुद्र के स्तर से किसी भी शहर की ऊंचाई जान पाते हैं.

लेकिन गुरुत्वाकर्षण (Gravity) के साथ एक अतिरिक्त समस्या है. गुरुत्वाकर्षण विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग होता है. इसका मतलब यह है कि सभी स्थानों पर समुद्र तल को एक समान नहीं माना जा सकता है. उदाहरण के लिए, माउंट एवरेस्ट के मामले में, इतने विशाल द्रव्यमान की सांद्रता का मतलब होगा कि समुद्र का स्तर गुरुत्वाकर्षण के कारण ऊपर की ओर खिंच जाएगा. इसलिए, स्थानीय समुद्री स्तर की गणना करने के लिए स्थानीय गुरुत्वाकर्षण को भी मापा जाता है. आजकल परिष्कृत पोर्टेबल ग्रेविटोमीटर (Sophisticated Portable Gravitometers) उपलब्ध हैं जिन्हें पर्वत चोटियों तक भी ले जाया जा सकता है.

लेकिन लेवलिंग को उच्च चोटियों तक नहीं बढ़ाया जा सकता है. इसलिए हमें ऊंचाइयों को मापने के लिए उसी त्रिकोणासन तकनीक पर वापस आना होगा. लेकिन एक और समस्या है. जैसे-जैसे हम ऊपर जाते हैं हवा का घनत्व (Density of Air) भी तो कम होता जाता है.

वायु घनत्व में यह भिन्नता प्रकाश किरणों के झुकने का कारण बनती है, एक घटना जिसे अपवर्तन (Refraction) के रूप में जाना जाता है. अवलोकन बिंदु और पर्वत शिखर की ऊंचाइयों में अंतर के कारण, ऊर्ध्वाधर कोण (Vertical Angle) को मापने में गलती हो सकती है. इसे दुरुस्त करने की जरूरत है. अपवर्तन सुधार (Refraction Correction) का अनुमान लगाना अपने आप में ही एक चुनौती है.

क्या ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिससे ये आसान हो जाए?

इन दिनों GPS व्यापक रूप से निर्देशांक (Coordinates) और ऊंचाइयों, यहां तक कि पहाड़ों का निर्धारण करने के लिए उपयोग किया जाता है. लेकिन, GPS एक दीर्घवृत्ताभ (Ellipsoid) के सापेक्ष एक पर्वत के शीर्ष का सटीक निर्देशांक देता है जो कि पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने के लिए गणितीय रूप से निर्मित एक काल्पनिक सतह है. यह सतह मीन समुद्र तल (Mean Sea Level) से अलग है. इसी तरह, लेजर बीम (LiDAR) से लैस ओवरहेड फ्लाइंग विमानों का भी निर्देशांक (Coordinates) प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

लेकिन GPS सहित ये तरीके गुरुत्वाकर्षण को ध्यान में नहीं रखते हैं. तो, GPS या लेजर बीम के माध्यम से प्राप्त जानकारी फिर गणना को पूरा करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के लिए एक और मॉडल की और इशारा करती है ताकि कैलकुलेशन पूरी हो सके.

नेपाल और चीन के मिलकर माउंट एवरेस्ट को 8,848 मीटर की तुलना में जो कि पहले ज्ञात थी 86 सेंटीमीटर अधिक मापा है? इसका क्या अर्थ है?

8,848 मीटर (या 29,028 फुट) का माप 1954 में सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा किया गया था और तब से इसे विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है. माप उन दिनों में किया गया था जब कोई GPS या अन्य आधुनिक परिष्कृत उपकरण नहीं थे. इससे पता चलता है कि उस दौरान भी वे कितने सही थे.

ऐसा बताया जाता है कि चीनी और नेपाली सर्वेक्षकों द्वारा नियोजित प्रमुख उपकरण एक GPS रिसीवर था, जिसे एवरेस्ट के शीर्ष पर ले जाया गया था. रिसीवर से कई उपग्रहों (Satellites) तक यात्रा करने के संकेतों के लिए लगने वाले समय का कारक और निश्चित वस्तुओं से इन उपग्रहों (Satellites) की दूरी स्थान और शिखर की ऊंचाई का सटीक अनुमान प्रदान करती है.

हाल के वर्षों में, एवरेस्ट को फिर से मापने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, और उनमें से कुछ ऐसे परिणाम उत्पन्न किए गए हैं जो स्वीकृत ऊंचाई से कुछ फीट तक भिन्न होते हैं. लेकिन इन्हें भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के संदर्भ में समझाया गया है जो एवरेस्ट की ऊंचाई को बदल सकते हैं. 1954 के परिणाम की सटीकता पर कभी सवाल नहीं उठाया गया.

अधिकांश वैज्ञानिकों के अनुसार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बहुत धीमी दर से बढ़ रही है. इसका कारण भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के उत्तर की ओर गति है जो सतह को ऊपर की और धकेल रही है. हिमालयी पहाड़ों का निर्माण भी तभी हुआ. इसी प्रक्रिया के कारण यह क्षेत्र भूकंप का खतरा पैदा करता है. ऐसा कहा जाता है कि, नेपाल में 2015 में आया बड़ा भूकंप, पहाड़ों की ऊंचाइयों को बदल सकता है. इस तरह की घटनाएं अतीत में भी हुई हैं. वास्तव में, यह भूकंप था जिसने एवरेस्ट को फिर से मापने के फैसले को देखने के लिए प्रेरित किया था कि क्या कोई प्रभाव पड़ा है या नहीं.

अंत में सर्वे ऑफ इंडिया (Survey of India) के बारे में 

सर्वे ऑफ इंडिया की जिम्मेदारी आधिकारिक मानचित्र तैयार करना है, और इसके काम में व्यापक भूमि सर्वेक्षण करना और स्थलाकृतिक विशेषताओं (Topographical Features) का मानचित्रण करना शामिल है.1952 में शुरू, भारत के सर्वेक्षण ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को मापने के लिए एक अभ्यास किया गया था. इस अभ्यास से माउंट एवेरेस्ट की ऊंचाई को 8,848 मीटर (29,028 फीट) मापा गया जो अब तक विश्व स्तर पर स्वीकृत मानक है.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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