रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को होने वाले फायदे और नुकसान

Oct 12, 2018, 18:15 IST

1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है. इस लेख में हम यह बताने जा रहे हैं कि रुपये की इस गिरावट का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

Falling Indian Currency
Falling Indian Currency

भारत में इस समय सबसे अधिक चर्चा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत के गिरते रुपये के मूल्य की हो रही है. अक्टूबर 12, 2018 को जब बाजार खुला तो भारत में एक डॉलर का मूल्य 73.64 रुपये हो गया था. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है.

लेकिन ऐसा नही है कि डॉलर के सापेक्ष केवल रुपया कमजोर हो रहा है, विश्व के अन्य देशों की मुद्रा जैसे ब्राजीली रियाल, चीनी युआन और अफ़्रीकी रैंड भी कमजोर हो रहे हैं. रुपया, एशिया में सबसे ज्यादा कमजोर होने वाली करेंसी बन गया है लेकिन ब्राजीली रियाल 14 फीसदी और दक्षिण अफ्रीकी रैंड 11 फीसदी तक टूट चुके हैं.

जैसा कि हम सबको पता है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. उसी प्रकार रुपये के कमजोर होने के भी दो पहलू हैं. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि रुपये के कमजोर होने के भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं.

डॉलर दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?

रूपये के कमजोर होने के निम्न कारण हैं;

1. कच्चे तेल के दामों में वृद्धि

2. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध

3. भारत का बढ़ता व्यापार घाटा

4. भारत से पूँजी का बहिर्गमन

5. देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल

6. अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि

डॉलर के कमजोर होने के सकारात्मक प्रभाव

1. भारत के निर्यातकों को लाभ

किसी मुल्क की करेंसी में गिरावट उसके लिए बुरी खबर है लेकिन एक्सपोर्ट आधारित सेक्टर्स को इस गिरावट से लाभ होता है. अमेरिकी डॉलर को पूरे विश्व में हर देश द्वारा स्वीकार किया जाता है इसलिए विश्व का 80% व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है.

जब विदेशी आयातक, भारत से सामान आयात करते हैं तो उन्हें एक डॉलर के बदले ज्यादा रुपये मिलते हैं जिससे वे और अधिक आयात करते हैं और भारत का निर्यात बढ़ता है जिससे देश का भुगतान संतुलन सुधरता है.

ऐसे में डॉलर को रुपया में एक्सचेंज करने पर उसकी वैल्यू बढ़ जा रही है. साथ ही एक्सपोर्ट्स जो नई डील कर रहे हैं वो नए रेट पर हो रही है, डॉलर मजबूत होने से एक्सपोर्टर्स को ज्यादा रकम मिल रही है.

यही वजह है कि भारत समेत कई एशियाई देश अपने करेंसी को गिरने दे रहे हैं क्योंकि उन्हें पेमेंट जो मिलता है वो डॉलर में होता है. ये देश चाहते हैं कि ट्रेड वॉर के चलते इनका एक्सपोर्ट कम न हो.

2. पर्यटन क्षेत्र को फायदा

जिन देशों की करेंसी का मूल्य डॉलर के सापेक्ष मूल्य घट रहा है वहां यात्रियों की संख्या में जोरदार वृद्धि हो रही है. विदेशी पर्यटकों को कम कीमत में अधिक घरेलू करेंसी मिलेगी और यात्रा का खर्च कम हो जाएगा.

रुपया कमजोर होने से विदेशी पर्यटक भारत की ओर खिंचे चले आ रहे हैं. क्योंकि भारत के लिए टूर पैकेज सस्ते हो गए हैं. टूर ऑपरेटर्स की मानें तो गिरते रुपये के चलते टूरिस्ट कारोबार इस साल बेहतर रिजल्ट दे सकता है. शुरुआती रिजल्ट अच्छे मिल भी रहे हैं, पिछले कुछ महीनों में होटल की बुकिंग में करीब 10 फीसदी की वृद्धि हुई है. हालांकि डॉलर के मजबूत होने से भारतीय लोग विदेश घूमने से कतरा रहे हैं क्य़ोंकि विदेश घूमने का पैकेज दिनों दिन महंगा होता जा रहा है.

3. आईटी-ऑटो सेक्टर के लिए अच्छे दिन

रूपये में गिरावट का फायदा आईटी-ऑटो सेक्टर को हो रहा है. सॉफ्टवेयर सर्विसेज एक्सपोर्ट से आईटी इंडस्ट्री को फायदा होगा क्योंकि उन्हें अब निर्यात करने पर जो डॉलर मिल रहे हैं उनकी वैल्यू दिनों दिन बढती जा रही है.

इसके अलावा विदेश में गाड़ियों का निर्यात करने वाली कंपनियों का रेवेन्यू भी बढ़ेगा. गौरतलब है कि इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी बड़ी आईटी कंपनियां का मुख्यालय अमेरिका में है और वो वहां बड़े पैमाने पर कारोबार करती है.

डॉलर के कमजोर होने के नकारात्मक प्रभाव

1. चालू खाता घाटा और विपरीत भुगतान संतुलन में वृद्धि;

जैसा कि हम सभी को पता है कि भारत अपनी जरुरत का केवल 17% तेल ही पैदा करता है और बकाया का 83% आयात करता है और यही कारण है कि भारत के आयात बिल में सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के मूल्यों का होता है.

यदि रुपया कमजोर होता है तो भारत की कच्चा तेल आयात करने वाली कंपनियों को डॉलर के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ता है. इसलिए जब देश में डॉलर कम आता है और बाहर ज्यादा जाता है तो देश का भुगतान संतुलन विपरीत और चालू खाता घाटा बढ़ जाता है.

2. विदेशी मुद्रा भंडार में कमी:

देश के अंदर जब देश के रूपये का मूल्य घट जाता है तो इसका बड़ा कारण डॉलर की मांग की तुलना में पूर्ती कम होना होता है. ऐसी स्थिति में देश का केन्द्रीय बैंक पूँजी बाजार में डॉलर की पूर्ती बढ़ाने के लिए देश के विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालता है जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी हो जाती है. इससे भविष्य में देश के लिए आयात संकट पैदा हो सकता है और यदि भारत ने विदेशों को डॉलर में भुगतान नही किया तो वे भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डिफाल्टर भी घोषित किया करा सकते हैं जिससे कोई भी देश भारत को सामान नहीं बेचेगा.

3. देश में महंगाई का बढ़ना:

भारत अपनी जरूरत का करीब 83% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं. जो कि आगे चलकर माल धुलाई की लागत को बढ़ा देता है जिससे फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ जाते.

एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

सारांश में यह कहना ठीक है कि डॉलर की तुलना में रूपए का गिरना अंततः अर्थव्यवस्था के लिए कई सकरात्मक बदलाव के साथ साथ नकारात्मक बदलाव भी लाता है. लेकिन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के लिए उस देश की मुद्रा का मजबूत होना बहुत जरूरी होता है. इसलिए सरकार और रिज़र्व बैंक को मिलकर रुपये की गिरावट को रोकने के प्रयास करने चाहिए.

जानें भारत की करेंसी कमजोर होने के क्या मुख्य कारण हैं?

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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