Indian Railways: भारतीय रेलवे ने दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज यानि चेनाब रेलवे ब्रिज को बनाकर तैयार कर लिया है। यह ब्रिज जम्मू-कश्मीर में बक्कल और कौरी के बीच में रियासी से 42 किलोमीटर की दूरी पर बनाया गया है। यह श्री माता वैष्णो देवी कटरा से बनिहाल की बीच लाइन पर पड़ने वाला ब्रिज है। इस पर रेलवे ट्रैक को भी बिछा दिया गया है। हालांकि, रेलवे की ओर से यहां पर सिर्फ सिंगल रेलवे ट्रैक को बिछाया गया है, जिसके बाद से लोगों के बीच में यह चर्चा है कि दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे ब्रिज पर अधिक मात्रा में रुपया खर्च करने के बाद भी सिर्फ सिंगल ट्रैक को ही क्यों बिछाया गया है, जबकि इसकी चौड़ाई को देखते हुए इस पर दो रेलवे ट्रैक को बिछाया जा सकता था। हम आपको इस लेख के माध्यम से इससे जुड़े सवालों का जवाब देंगे।
एफिल टॉवर से भी ऊंचा है ब्रिज
चेनाब नदी पर बना यह ब्रिज वास्तव में एफिल टॉवर से भी ऊंचा है। एफिल टॉवर की ऊंचाई 324 मीटर है, जबकि यह ब्रिज 359 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है, यानि एफिल टॉवर से भी इसकी ऊंचाई 35 मीटर अधिक है।
रूट के हिसाब से तय होता है ट्रैक
जब भी रेलवे में ट्रैक बिछाया जाता है, तो अप और डाउन के लिए रूट की आवश्यकता देखी जाती है। यह अंग्रेज भी अपने समय में किया करते थे। अंग्रेज माल ढुलाई वाले रूट पर दो ट्रैकों को बिछाया करते थे, जिससे समय पर सामान पहुंच सके। इसी तरह रेलवे भी रूट के हिसाब से ट्रैक को बिछाता है।
पर्यटन और रखरखाव का रखा है ध्यान
भारतीय रेलवे ने इस ब्रिज को बनाने में इस बात का ध्यान रखा है कि भविष्य में यहां पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। क्योंकि, यह ब्रिज दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज है। ऐसे में इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आ सकते हैं। इसके साथ ही इस ब्रिज की मरम्मत के लिए भी रेलवे को जगह की जरूरत है। ऐसे में यह ब्रिज इतना चौड़ा बनाया गया है रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ आराम से लोग खड़े हो सकते हैं और मरम्मत का सामान भी लाया जा सकता है। वहीं, यदि रेलवे की ओर से इस पर दो ट्रैक बिछाए जाते, तो पर्यटन और मरम्मत के लिए इस ब्रिज पर जगह नहीं बचती। वहीं, अधिक ऊंचाई पर होने की वजह से इस ब्रिज को अधिक चौड़ा भी नहीं बनाया जा सकता था।
टनल में निकालना पड़ता रास्ता
चेनाब नदी के ऊपर बने इस ब्रिज के बाद एक टनल भी है, जिसमें से सिंगल ट्रैक निकाला गया है। वहीं, यदि ब्रिज पर दो ट्रैक बनाए जाते, तो टनल में से भी दूसरा ट्रैक निकालना पड़ता, जिसका अधिक खर्चा आता। वहीं, इस रूट को देखते हुए इस पर अधिक आवाजाही नहीं है। ऐसे में यहां पर दो ट्रैक नहीं बिछाए गए।
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