वर्तमान दौर महिला सशक्तिकरण का दौर है आज महिलाएं आँगन से लेकर अंतरिक्ष तक पहुँच गयी हैं लेकिन फिर भी कुछ क्षेत्रों में महिलाओं की हालत दयनीय बनी हुई है| इसलिए महिलाओं को समाज में और भी सशक्त बनाने के लिए सरकार ने घरेलू हिंसा अधिनियम (2005), दहेज निषेध अधिनियम (1961), हिंदू विवाह अधिनियम (1955) और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948) जैसे कानून बनाये हैं | इस लेख में ऐसे ही कुछ महिला सशक्तिकरण के लिए बनाये गए कानूनों के बारे में बताया गया है.
भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई अधिनियम बनाये गये हैं जिनमे कुछ इस प्रकार हैं:
1. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948):- यह अधिनियम पुरुष और महिला श्रमिकों के बीच मजदूरी में भेदभाव या उनको मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी में भेदभाव की अनुमति नहीं देता है।
2. खान अधिनियम (1952) और कारखाना अधिनियम (1948):- इन दोनों अधिनियम में यह प्रावधान है कि महिलाओं को 7 P.M. से 6 A.M. के बीच में काम पर नही लगाया जा सकता है और इसके साथ ही काम के दौरान उनकी सुरक्षा और कल्याण का भी ध्यान रखना भी अनिवार्य है |
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3. हिंदू विवाह अधिनियम (1955) के द्वारा एक समय में एक ही पति या पत्नी रखने का प्रावधान है l इसमें महिला और पुरुष दोनों को तलाक और विवाह के सम्बन्ध में सामान अधिकार दिए गए हैं l
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4. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) में माता-पिता की संपत्ति में पुरुषों के साथ महिलाओं को भी सामान अधिकार दिए हैंl अर्थात यदि लड़की चाहे तो अपने पिता की संपत्ति में हक़ बंटा सकती है |
5. अनैतिक देह व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (1956) के द्वारा महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण के लिए उनकी तस्करी की रोकथाम के प्रावधान हैं| दूसरे शब्दों में यह अधिनियम वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से महिलाओं और लड़कियों की तस्करी की रोकथाम के लिए बनाया गया है |
6. दहेज निषेध अधिनियम (1961):- इस अधिनियम के द्वारा शादी के पहले या बाद में महिलाओं से दहेज़ और देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आता है |
7. मातृत्व लाभ अधिनियम (1961):- यह अधिनियम महिलाओं को बच्चे के जन्म से पहले 13 सप्ताह और जन्म के बाद के 13 सप्ताह तक वैतनिक अवकाश (paid leave) प्रदान करता है ताकि वह बच्चे की पर्याप्त देखभाल कर सके | इस गर्भावस्था के दौरान महिला को रोजगार से बाहर निकालना कानूनन जुर्म है |
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8. गर्भावस्था अधिनियम (1971) के द्वारा कुछ विशेष परिस्थितियों (जैसे बलात्कार की पीड़ित महिला या लड़की या किसी बीमारी की हालत में) में मानवीय और चिकित्सीय आधार पर 24 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी जा सकती है| सामान्य परिस्थितियों में 20 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दी गयी है |
9. समान पारिश्रमिक अधिनियम (1976):- यह अधिनियम कहता है कि किसी समान कार्य या समान प्रकृति के काम के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों श्रमिकों को समान पारिश्रमिक का भुगतान प्रदान किया जायेगा। साथ ही भर्ती प्रक्रिया में महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकता है |
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10.महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (प्रतिषेध) अधिनियम,1986:- यह अधिनियम महिलाओं को विज्ञापनों के माध्यम से या प्रकाशन, लेखन, पेंटिंग या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अभद्र प्रदर्शन को प्रतिबंधित करता है।
11. सती (रोकथाम) अधिनियम (1987): यह अधिनियम सती प्रथा (पति की मृत्यु के बाद पत्नी को जबरन चिता में जलाना) का देश के किसी भी भाग में प्रचलन या उसके महिमामंडन को अपराध घोषित करता है | किसी भी महिला को सती होने के लिए बाध्य नही किया जा सकता है|
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12. राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम (1990):- सरकार ने इस आयोग का गठन महिलाओं के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों और अन्य सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों का अध्ययन और निगरानी करने के लिए किया था |
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13. घरेलू हिंसा अधिनियम (2005) के द्वारा महिलाओं को सभी प्रकार की घरेलू हिंसा (शारीरिक, यौन, मानसिक, मौखिक या भावनात्मक हिंसा) से संरक्षण का प्रावधान किया गया है l इसमें उन महिलाओं को भी शामिल किया गया है जो दुर्व्यवहार की शिकार हो चुकी हैं या दुर्व्यवहार करने वाले के साथ रह रहीं हैं |
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14. कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम (2013):- इस अधिनियम में सार्वजनिक और निजी, संगठित या असंगठित दोनों ही क्षेत्रों में सभी कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है l
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15. निम्नलिखित अन्य कानूनों में महिलाओं के लिए कुछ अधिकार और सुरक्षा उपायों भी शामिल हैं:
I. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम (1948)
II. बागान श्रम अधिनियम (1951)
III. बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम (1976)
IV. कानूनी चिकित्सक (महिला) अधिनियम (1923)
V. भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (1925)
VI. भारतीय तलाक अधिनियम (1896)
VII. पारसी विवाह और तलाक अधिनियम (1936)
VIII. विशेष विवाह अधिनियम (1954)
IX. विदेशी विवाह अधिनियम (1969)
X. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)
XI. हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम (1956)
भारत में इतने सब कानूनों के बावजूद भी महिलाओं की स्थिति विकसित देशों की तुलना में बहुत ही दयनीय है | ग्रामीण इलाकों में तो आज भी महिलाओं को पुरुषों की पैरों की जूती के बराबर माना जाता है इसका मुख्य कारण महिला अशिक्षा, आर्थिक परतंत्रता और महिला अधिकारों के बारे में जानकारी का अभाव है |
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