“नवाबों का शहर”, किसे कहते हैं? जानें यहां कि संस्कृति और इतिहास

Sep 5, 2025, 17:03 IST

नवाबों के शहर लखनऊ की संस्कृति और इतिहास को जानें। यह एक ऐसी जगह जहां शाही विरासत, परंपराएं और कला के चमत्कार अतीत और वर्तमान के मिश्रण में एक साथ दिखाई देते हैं।

City Of Nawab
City Of Nawab

City of Nawabs:  लखनऊ शहर, जिसे अक्सर "नवाबों का शहर" कहा जाता है, एक ऐसा स्थान है जो शाही विरासत, संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के साथ के लिए जाना जाता है। "नवाबों का शहर" यह उपाधि इसके शाही नवाबी युग को समर्पित है, वह समय जब यह शहर अवध के नवाबों के शासन में फला-फूला।

लखनऊ: नवाबों का शहर

आज, लखनऊ एक आधुनिक शहर के रूप में उभरा है, लेकिन आज भी इसने अपनी शाही विरासत को बचाए रखा है। नवाबी विरासत आज भी शहर में जिंदा है, इसके ऐतिहासिक स्मारकों से लेकर इसकी अनूठी संस्कृति तक। लखनऊ के लोगों का मेहमान नवाजी, जिसे "तहज़ीब" के रूप में जाना जाता है, दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता है।

यहां की नवाबी संस्कृति न केवल कायम रही है, बल्कि शहर के कला और मनोरंजन जगत में भी नई जान फूंकी है, जो आज भी फल-फूल रही है। शास्त्रीय संगीत और नृत्य प्रस्तुतियों वाले थिएटरों से लेकर लखनऊ की पाक विरासत का जश्न मनाने वाले खाद्य महोत्सवों तक, यह शहर सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का एक जीवंत केंद्र बना हुआ है।

नवाबों के शहर का इतिहास

अवध की राजधानी के रूप में लखनऊ का इतिहास 18वीं शताब्दी से शुरू होता है जब मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हुआ। मुगल सम्राट ने इस क्षेत्र पर शासन करने के लिए अवध के नवाबों को नियुक्त किया। नवाबों के नेतृत्व में लखनऊ राजधानी के रूप में उभरा और यह शहर जल्द ही संस्कृति और शासन का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

अवध के पहले नवाब, सआदत अली खान ने शहर की विरासत को सत्ता के एक प्रभावशाली केंद्र के रूप में स्थापित किया। हालांकि, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में नवाब आसफ-उद-दौला के शासनकाल में ही लखनऊ वास्तव में कला, संस्कृति और परिष्कार के केंद्र के रूप में विकसित हुआ। अवध के नवाब संगीत, कविता और नृत्य सहित कलाओं के संरक्षण के लिए जाने जाते थे, जिसके कारण विभिन्न सांस्कृतिक प्रथाएं प्रचलित हुईं जिन्हें आज भी मनाया जाता है।

नवाबों के शहर की वास्तुकला

लखनऊ की वास्तुकला नवाबों की संपत्ति और शक्ति का प्रमाण है। उन्होंने भव्य महल, भव्य मस्जिदें और विस्मयकारी स्मारक बनवाए, जिनमें से कई शहर के शाही अतीत के प्रतीक हैं।

बड़ा इमामबाड़ा: लखनऊ की सबसे प्रतिष्ठित संरचनाओं में से एक, बड़ा इमामबाड़ा, नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा 1784 में बनवाया गया था। यह एक वास्तुशिल्प चमत्कार है, जो अपने केंद्रीय हॉल के लिए प्रसिद्ध है, जिसे बिना किसी सहारे वाली बीम वाला सबसे बड़ा मेहराबदार निर्माण कहा जाता है। बड़ा इमामबाड़ा मुगल और अवधी शैलियों का मिश्रण है और शहर के इतिहास की खोज करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक दर्शनीय स्थल है।

छोटा इमामबाड़ा: "रोशनी के इमामबाड़े" के रूप में जाना जाने वाला, छोटा इमामबाड़ा एक और आश्चर्यजनक स्मारक है जो नवाबी युग की भव्यता को दर्शाता है। नवाब मुहम्मद अली शाह द्वारा 1837 में निर्मित, यह खूबसूरत इमारत झूमरों और जटिल सजावट से सुसज्जित है।

रूमी दरवाज़ा: जिसे अक्सर "तुर्की द्वार" कहा जाता है, रूमी दरवाज़ा नवाब आसफ-उद-दौला के शासनकाल में निर्मित एक भव्य प्रवेश द्वार है। यह लखनऊ का एक प्रमुख प्रतीक है और मुगल वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है।

रेजीडेंसी: रेजीडेंसी लखनऊ का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है, क्योंकि यह 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान एक प्रमुख युद्ध का स्थल था। रेजीडेंसी के खंडहर आज भी ब्रिटिश और भारतीय संघर्ष की कहानी को ताज़ा करते हैं, जो शहर के ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ाते हैं।

नवाबों के शहर की संस्कृति

लखनऊ का सांस्कृतिक प्रभाव गहरा है, जिसे मुख्यतः नवाबों ने आकार दिया है। नवाबी संस्कृति मुगल परंपराओं और स्वदेशी प्रथाओं का एक सम्मिश्रण थी, जिसने एक अनूठी सांस्कृतिक पहचान के विकास को बढ़ावा दिया।

भोजन

लखनऊ अपने समृद्ध और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, जो इसके शाही अतीत को दर्शाता है। नवाबों द्वारा प्रचलित अवधी पाक शैली में कबाब, बिरयानी और मुगलई करी जैसे व्यंजन शामिल हैं। 

संगीत और नृत्य

नवाब संगीत और नृत्य के महान संरक्षक थे, और लखनऊ शास्त्रीय संगीत, कविता और प्रदर्शन कलाओं का केंद्र बन गया। इस शहर ने शास्त्रीय संगीत के कई प्रसिद्ध घरानों (शैलियों) को जन्म दिया, और नवाबों के संरक्षण में कथक जैसी शास्त्रीय नृत्य शैलियां फली-फूलीं। कथक नृत्य का "लखनऊ घराना" अपनी सुंदर मुद्राओं और जटिल पदचापों के लिए जाना जाता है।

भाषा और साहित्य

लखनऊ के नवाबों के शासनकाल में उर्दू कविता का खूब विकास हुआ और इस दौरान कई कवियों और लेखकों ने अपनी छाप छोड़ी। यह शहर अपनी भाषा के लिए जाना जाता था और उर्दू की अवधी बोली को शालीनता का प्रतीक माना जाता था। मिर्ज़ा ग़ालिब, सौदा और अन्य साहित्यिक हस्तियों के योगदान ने इस शहर को उर्दू साहित्य का केंद्र बना दिया है।

Mahima Sharan
Mahima Sharan

Sub Editor

Mahima Sharan, working as a sub-editor at Jagran Josh, has graduated with a Bachelor of Journalism and Mass Communication (BJMC). She has more than 3 years of experience working in electronic and digital media. She writes on education, current affairs, and general knowledge. She has previously worked with 'Haribhoomi' and 'Network 10' as a content writer. She can be reached at mahima.sharan@jagrannewmedia.com.

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