One Nation One Election: लंबे समय से चर्चाओं के बाद एक देश-एक चुनाव बिल को लोकसभा में पेश किया जा रहा है। इसे स्वीकार करने पर संसद में दोबारा वोटिंग हो रही है। विपक्ष ने इसे संविधान पर प्रहार बताया है। ऐसे में इस पर सियासी तनाव भी पैदा हो गया है। यदि यह पास होता है , तो यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर इस बिल से कितना फायदा और कितना नुकसान हो सकता है।
एक देश-एक चुनाव क्या है
एक देश-एक चुनाव के तहत भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की योजना है। वहीं, समिति ने अपनी रिपोर्ट में अगले 100 दिनों में नगर निकायों के चुनावों को भी इसमें शामिल करने की सिफारिश की है।
एक देश-एक चुनाव कराने के फायदे
राजकोष की बचत
एक देश-एक चुनाव कराने से केंद्र के राजकोष की बचत होगी। क्योंकि, हर पांच साल में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनावों का भी आयोजन किया जाता है। वहीं, देश में हर साल अलग-अलग समय पर विधासनभा चुनाव होते हैं। इसकी जिम्मेदारी भारतीय निर्वाचन आयोग की होती है। एक ही समय पर चुनाव होने पर राजकोष की बचत होगी।
विकास कार्यों में नहीं होगी रूकावट
चुनाव के समय राज्यों में आचार संहिता लागू हो जाती है और यह परिणाम जारी होने तक लागू रहती है। ऐसे में इससे विकास परियोजनाओं में देरी होती है। एक देश-एक चुनाव में ऐसा नहीं होगा।
कालेधन पर लगाम
चुनाव के दौरान अक्सर जांच एजेंसियों द्वारा कालेधन के उपयोग को लेकर आरोप लगते हैं। ऐसे में एक देश-एक चुनाव होने पर इस तरह की घटनाओं पर रोक लगेगी।
संसाधनों की बचत
चुनाव के समय देशभर में फोर्स से लेकर विभिन्न सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी लगती है। इससे उनके सरकारी काम में भी व्यवधान होता है। ऐसे में साल में एक ही बार में इस तरह की आवश्यकता पड़ेगी।
एक देश-एक चुनाव के नुकसान
वोटिंग पैटर्न पर असर
भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं। यदि एक ही चुनाव होता है, तो इससे वोटिंग पैटर्न का मुद्दा बदलेगा और इससे स्थानीय पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ेगा।
छोटी पार्टियों के अस्तित्व पर खतरा
भारत में कई छोटी पार्टियां हैं, जो कि क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ती हैं। ऐसे में एक देश-एक चुनाव में छोटी पार्टियों के अस्तित्व पर खतरा है, जबकि राष्ट्रीय पार्टियों को इससे फायदा होगा।
अधिक संसाधन की जरूरत
यदि पूरे देश में एक साथ चुनाव होते हैं, तो इसमें एक साथ अधिक संसाधन की जरूरत पड़ेगी। उदाहरण के तौर पर एक बार में अधिक फोर्स व ईवीएम और वीवीपैट मशीन की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए सरकार को अपना बजट बढ़ाना पड़ेगा।
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