साइंस पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में सूखे या अनावृष्टि की घटना ऐतेहिसक रूप से अल-नीनो के साथ जुड़ी हुई है.
इसमें यह भी कहा गया है कि भारत में ग्रीष्म-मानसून काल के समय गैर अल-नीनो वर्ष में पड़ने वाले लगभग 10 में से 6 सूखे या अनावृष्टि की घटनाओं के लिए रॉस्बी धाराएं जिम्मेदार हो सकती हैं.
ऐसा भी बताया गया है कि रॉस्बी धाराएं अटलांटिक क्षेत्र में होने वाली वायुमंडलीय गड़बड़ी से उत्पन्न होती हैं.
रॉस्बी तरंगे क्या हैं?
रॉस्बी तरंगें स्वाभाविक रूप से घूर्णन तरल पदार्थों (Rotating Fluids) में होती हैं. पृथ्वी के महासागर और वायुमंडल के भीतर, ये तरंगें मौसम को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. रॉसबी तरंग, मौसम विज्ञान में, बड़े क्षैतिज वायुमंडलीय उच्छेदन जो पोलर-फ्रंट जेट स्ट्रीम से जुड़े हैं और गर्म उष्णकटिबंधीय हवा से ठंडे ध्रुवीय वायु को अलग करते हैं.
इन तरंगों की पहचान सबसे पहले कार्ल-गुस्ताफ अरविद रॉस्बी (Carl-Gustaf Arvid Rossby) द्वारा की गई थी. इन्होने पहली बार उन्हें पहचाना और उनके मूवमेंट के बारे में बताया.
इसको ऐसे भी समझा जा सकता है; उत्तरी अटलांटिक महासागर के असामन्य ठंडे जल के ऊपर गहरे चक्रवाती संचरण पर उपरी वायुमंडलीय पवनों के प्रभाव के कारण जो हवा की लहरें उत्पन्न होती हैं उनको रॉस्बी धाराएं, लहरें या तरंगे कहा जाता है.
ये लहरें या तरंगें उत्तरी अटलांटिक से मुड़कर तिब्बत के पठार से टकराकर अगस्त माह के मध्य तक भारतीय उपमहाद्वीप से टकराती है. ये ही लहरें मानसून के आने में रुकावट बनती हैं और वर्षा को रोकने का काम भी करती हैं. पश्चिम से पूर्व की और ये हवाएं बहती हैं. इतना ही नहीं ये हवाएं भूमध्य रेखा की और नहीं बहती हैं. इन तरंगों को प्लेनेटरी वेव्स (Planetary Waves) भी कहा जाता है.
पृथ्वी के वायुमंडल और महासागरों में ये तरंगे प्राक्रतिक रूप से पायी जाती हैं. ये लहरें घूर्णन करते हुए तरल पदार्थ जैसे कि जल में प्राक्रतिक रूप से उपस्थित होती हैं. पृथ्वी के घूर्णन के कारण ही ये तरंगें उत्पन्न होती हैं और साथ ही पृथ्वी के मौसम और जलवायु को भी प्रभावित करती हैं.
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रॉस्बी तरंगें कैसे बनती हैं?
जब ध्रुवीय हवा भूमध्य रेखा की ओर बढ़ती हैं, जबकि उष्णकटिबंधीय हवा ध्रुवीय की और गतिमान होती है, तो रॉस्बी तरंगें बनती हैं. सौर विकिरण की मात्रा में अंतर के कारण भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच तापमान में अंतर के कारण ऊष्मा निम्न से उच्च अक्षांशों तक प्रवाहित होती है; यह इन हवाओं के मूवमेंट् के द्वारा ही आंशिक रूप से पूरा होता है.
रॉस्बी तरंगें फेरल परिसंचरण (Ferrel circulation) का एक प्रमुख घटक हैं. उष्ण कटिबंधीय वायु ऊष्मा को ध्रुवीय की और ले जाती है, और भूमध्य रेखा की ओर बढ़ने पर ध्रुवीय वायु ऊष्मा को अवशोषित करती है. इन तरंगों का अस्तित्व कम दबाव वाली कोशिकाओं (चक्रवातों) और उच्च दबाव वाली कोशिकाओं (एंटीसाइक्लोन) की व्याख्या करता है जो मध्य और उच्च अक्षांशों के मौसम के उत्पादन में महत्वपूर्ण हैं.
रॉस्बी तरंगें या धाराएं कितने प्रकार की होती हैं?
ये धाराएं या तरंगे दो प्रकार की होती हैं:
- महासागरीय रॉस्बी तरंगें या धाराएं
- वायुमंडलीय रॉस्बी तरंगें या धाराएं
आइये अब महासागरीय रॉस्बी तरंगें या धाराओं के बारे में अध्ययन करते हैं.
महासागरों में ये लहरें कई अलग-अलग आकारों में आती हैं. धीमी गति से चलने वाली समुद्री रॉसीबी लहरें समुद्र की सतह की लहरों से मूलभूत रूप से भिन्न होती हैं.
तट के किनारे टूटने वाली तरंगों के विपरीत, रॉस्बी लहरें विशाल या बड़ी होती हैं, समुद्र के हिलते हुए मूवमेंट जो पश्चिम दिशा में सैकड़ों किलोमीटर तक पूरे ग्रह में क्षैतिज रूप से फैलते हैं. वे इतने बड़े पैमाने पर होते हैं कि वे पृथ्वी की जलवायु स्थितियों को बदल सकते हैं.
बढ़ते समुद्र के स्तर के साथ, किंग टाइड्स, और अल नीनो के प्रभाव, समुद्री रॉस्बी लहरें दुनिया के कुछ क्षेत्रों में उच्च ज्वार और तटीय बाढ़ में योगदान करती हैं.
वायुमंडलीय रॉस्बी तरंगें या धाराओं के बारे में
राष्ट्रीय मौसम सर्विस (National Weather Service) के अनुसार, वायुमंडलीय रॉस्बी तरंगें मुख्य रूप से पृथ्वी के भूगोल के परिणामस्वरूप बनती हैं. या इन तरंगों का निर्माण प्राथमिक रूप से पृथ्वी की भौगोलिक संरचना के कारण होता है.
वायुमंडलीय रॉस्बी तरंगें ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ध्रुवों की और ऊष्मा का संचार और ध्रुवों से ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की और ठंडी हवाओं का संचार करती हैं.
वे जेट स्ट्रीम का पता लगाने और सतह के कम दबाव प्रणालियों के ट्रैक को चिह्नित करने में भी मदद करती हैं. इन तरंगों की धीमी गति का परिणाम अक्सर लंबे, लगातार मौसम के पैटर्न में भी होता है. यानी ये लहरें मौसम के पैटर्न को भी प्रभावित करती हैं.
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