भारतीय इतिहास में अलग-अलग समय पर अलग-अलग साम्राज्यों का शासन रहा, जिसमें मुगल से लेकर मराठा व मगध जैसे शक्तिशाली साम्राज्य शामिल हैं। वहीं, हिंदुस्तान की जमीन पर कई शासनों के बीच युद्ध भी लड़े गए। इन सभी युद्धों में से पानीपत का युद्ध काफी प्रसिद्ध रहा है, जिसका भारत के इतिहास में अधिक योगदान बताया जाता है।
पानीपत में भी अलग-अलग समय पर अलग-अलग युद्ध हुए। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि पानीपत का दूसरा युद्ध क्यों हुआ था और किनके बीच हुआ था। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
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पानीपत में कुल कितने युद्ध हुए
सबसे पहला सवाल है कि आखिर पानीपत में कितने युद्ध हुए हैं। आपको बता दें कि भारत के इतिहास में पानीपत तीन युद्धों की भूमि रहा है। अलग-अलग समय पर यहां तीन युद्ध लड़े गए। पहला युद्ध 1526, दूसरा युद्ध 1556 और तीसरा युद्ध 1761 में लड़ा गया था।
पानीपत की दूसरी लड़ाई
पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर, 1556 में पानीपत के मैदान में उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य(हेमू) और अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था। अकबर की सेना में बैरम खान और खान जमान के लिए यह बड़ी जीत थी। उत्तर भारत में जब मुगल शासन काबुल, कंधार, पंजाब और दिल्ली के कुछ हिस्सों तक सीमित था। ऐसे में भारत में वर्चस्व को लेकर यह युद्ध लड़ा गया।
युद्ध की पृष्ठभूमि
हेमचंद्र विक्रमादित्य वर्तमान के रेवाड़ी के रहने वाले थे। उन्होंने अफगान की सेना के खिलाफ 22 युद्ध जीते थे। वह 1553 तक शेरसाह सूरी के पुत्र इस्लाम शाह का सलाहकार भी रहे थे। ऐसे में पानीपत के युद्ध के समय हुमायूं की मृत्यु हो चुकी थी और उनके पुत्र अकबर को राजा बनाया गया था, तब अकबर की उम्र उस समय 13 वर्ष थी।
हालांकि, अकबर इस युद्ध से दूर रहा था और पानीपत से करीब 5 कोस दूर एक शिविर में रूक गया था। दूसरी तरफ, हेमचंद्र की सेना करीब 30 हजार सैनिकों और हजारों हाथियों के साथ आगे बढ़ी और पानीपत के मैदान में अकबर की सेना से टकराई।
कौन जीता था पानीपत का दूसरा युद्ध
पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू की सेना जीत रही थी, लेकिन इस बीच अकबर की सेना की ओर से एक तीर हेमू की आंख में जा लगा और वह घायल हो गए। अपने सम्राट को युद्ध में हौदा(घोड़े की सीट पर बैठने के लिए गद्दी) पर न देख हेमू की सेना का मनोबल कम हो गया और हेमू की सेना हार की तरफ बढ़ गई। युद्ध खत्म होने पर हेमू को मैदान में मृत पाया गया, जिसके बाद शाह कुली खान महरम द्वारा हेमू के शव को अकबर के पास शिविर में ले जाया गया।
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