राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की ओर से अयोध्या में 'राम मंदिर' निमार्ण स्थल के 2,000 फीट नीचे एक 'टाइम कैप्सूल' रखा जाएगा। इस टाइम कैप्सूल में राम जन्मभूमि का विस्तृत इतिहास होगा। ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल के अनुसार, भविष्य में राम मंदिर को लेकर किसी भी विवाद से बचने के लिए टाइम कैप्सूल को मंदिर के निर्माण स्थल के हजारों फीट नीचे रखा जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी 5 अगस्त 2020 को मंदिर के लिए भूमि पूजन करेंगे।
एएनआई के अनुसार, कामेश्वर चौपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से चल रहे राम जन्मभूमि मामले के लिए किया गया संघर्ष वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक है। राम मंदिर निर्माण स्थल पर जमीन में लगभग 2,000 फीट नीचे एक कैप्सूल रखा जाएगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि भविष्य में मंदिर के इतिहास के बारे में अध्ययन करने वालों को राम जन्मभूमि से संबंधित तथ्य मिलें और कोई नया विवाद उत्पन्न ना हो।
टाइम कैप्सूल में आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या संदेश होगा?
टाइम कैप्सूल अयोध्या, भगवान राम और उनके जन्म स्थान के बारे में आने वाली पीढ़ियों को बताएगा। मंदिर से जुड़ी सभी जानकारी संस्कृत भाषा में दी जाएगी। टाइम कैप्सूल निर्माण स्थल के नीचे रखने से पहले एक तांबे की प्लेट या 'ताम्र पात्र' के अंदर रखा जाएगा। चौपाल के अनुसार, संस्कृत भाषा को इसलिए चुना गया है क्योंकि इसमें बड़े वाक्यों को चंद शब्दों में लिखा जा सकता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि भूमि पूजन के दिन टाइम कैप्सूल नहीं रखा जाएगा क्योंकि इसे बनाने में समय लगेगा। न्यूनतम संभव शब्दों में सटीक सामग्री लिखने के लिए विशेषज्ञों से संपर्क किया गया है।
टाइम कैप्सूल क्या है?
टाइम कैप्सूल भविष्य की पीढ़ियों के साथ संवाद करने का एक ऐतिहासिक ज़रिया है। यह पुरातत्वविदों, मानवविज्ञानी और इतिहासकारों को एक साइट के बारे में अध्ययन करने में भी मदद करता है। आमतौर पर, टाइम कैप्सूल को इमारतों की नींव में रखा जाता है। टाइम कैप्सूल में संदेश के साथ-साथ उस समय की चीज़ों को भी दफनाया जा सकता है। टाइम कैप्सूल के ज़रिए भविष्य की पीढ़ियां किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकती हैं।
टाइम कैप्सूल का निर्माण
ये एल्यूमीनियम, स्टेनलेस स्टील या तांबे जैसे धातुओं से बनाया जाता है और संदेश को एसिड-मुक्त पेपर पर लिखा जाता है, जिससे हज़ारों साल बाद भी कागज़ गलता-सड़ता नहीं है। टाइम कैप्सूल का कंटेनर 3 फुट लंबा होता है और इसे ज़मीने के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है।
भारत में अब तक के टाइम कैप्सूल की सूची
भारत में पहले भी कई अवसरों पर टाइम कैप्सूल को रखा जा चुका है। भारत के साथ-साथ अन्य देश भी टाइम कैप्सूल का इस्तेमाल करते हैं।
1- भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी ने लाल किले के एक द्वार के बाहर एक टाइम कैप्सूल रखा था। राजनीतिक विरोध के बीच 15 अगस्त 1972 को भारत की स्वतंत्रता के बाद के इतिहास वाले टाइम कैप्सूल को 'कल्पात्रा' नाम दिया गया। इस टाइम कैप्सूल को 1000 साल बाद खोला जाएगा।
2- भारत की पहली और एकमात्र महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की उपस्थिति में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के सभागार के पास 6 मार्च 2010 को एक टाइम कैप्सूल रखा था।
3- 2010 में, गांधीनगर के महात्मा मंदिर में एक टाइम कैप्सूल रखा गया है, जो मंदिर की नींव के 50 वर्षों को चिह्नित करता है।
4- वर्ष 2014 में, एलेक्जेंड्रा गर्ल्स एजुकेशन इंस्टीट्यूशन, मुंबई ने एक टाइम कैप्सूल रखा था, जिसे स्कूल की द्वि-शताब्दी वर्षगांठ के अवसर पर 1 सितंबर 2062 को खोला जाएगा।
5- एलपीयू द्वारा आयोजित '106 वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस' के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के परिसर में एक टाइम कैप्सूल रखा गया है। इस टाइम कैप्सूल में 100 अलग-अलग आइटम हैं जो उस समय भारत में प्रौद्योगिकी के क्रॉस-सेक्शन का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अगले 100 वर्षों के बाद खोला जाएगा। इस टाइम कैप्सूल को तीन प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार विजेताओं- हंगरी मूल के इज़राईली जैव रसायनज्ञ अवराम हर्शको, ब्रिटिश मूल के अमेरिकी भौतिक विज्ञानी एफ डंकन एम हल्दाने और जर्मन-अमेरिकी जैव रसायनज्ञ थॉमस क्रिश्चियन सुदहोफ ने रखा था।
सबसे पुराना टाइम कैप्सूल
30 नवम्बर 2017 को तकरीबन 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल स्पेन के बर्गोस में यीशू मसीह की मूर्ति के अंदर मिला था। इस टाइम कैप्सूल में 1777 दशक के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सूचना थी। जानकारों के अनुसार, ये अब तक का सबसे पुराना टाइम कैप्सूल है।
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