टाइम जोन किसी क्षेत्र का वो स्थान होता है जो कानूनी, वाणिज्यिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए एक समान मानक समय दिखाता है। यह जोन किसी भी देश के सीमा तथा उसके उपविभागों की सीमाओं का पालन करता है क्योंकि यह एक ही समय में निकट वाणिज्यिक या अन्य संचार के क्षेत्रों के लिए सुविधाजनक होता है। इस समय क्षेत्र डेलाइट को बचाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसलिए, शून्य डिग्री रेखांश जिसे अंतर्राष्ट्रीय मानक समय के रूप में चुना जाने वाला प्राइम मेरिडियन भी कहा जाता है क्योंकि यह पृथ्वी के घूर्णन (जो अनियमित है) पर आधारित है, यह वास्तव में एक कल्पित मीन सन का पालन करता है जो भूमध्य रेखा के साथ एक समान गति पर चलता है।
मानक समय क्षेत्र क्यों स्थापित किया गया है?
वैश्विक यात्रा के दौरान, यदि हम पृथ्वी के अलग स्थान पर जाते हैं तो सबका अलग अलग टाइम हो तो क्या हमारी यात्रा सुविधाजनक होगी। उदारहण के लिए- मान लीजिये हमने अपनी यात्रा को दोपहर में शुरू किया और हम किसी दूसरे स्थान पहुचेंगे तो क्या वो वही दोपहर होगा, बिलकुल नहीं। तो बस इसलिए एक मानक समय क्षेत्र का निर्धारित करना जरुरी है। वरना हम समय अंतराल में फसे रह जायेंगे।
इसलिए समय अंतराल को आसान रखने के लिए, मानक समय क्षेत्र स्थापित किए गए है: जो किसी भी स्थान पर हमेशा समान होता है। पृथ्वी को चौबीस टाइम जोन में बांटा गया है। जो एक दूसरे टाइम जोन से एक घंटे के अंतराल पर होता है।
ऐसा माना जाता है की पृथ्वी गोल है तो पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में 360 डिग्री घूमती है इसका ये मतलब हुआ की जब पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है तो प्रति घंटे में पृथ्वी पर 15 डिग्री रेखांश बदल जाती है। इसलिए 15 डिग्री की दूरी एक दूसरे टाइम जोन से परिणामस्वरूप दुनिया भर में 24 समान दूरी वाले टाइम जोन होंगे।
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क्या भारत को दो टाइम जोन की आश्यकता है?
भारत को दो टाइम जोन की आश्यकता है या नहीं उससे पहले ये समझना होगा की भारतीय मानक समय क्या है और कैसे भारत को समय सीमा में एकरूपता देता है।
मानक समय वह समय होता है, जो किसी देश या विस्तृत भू-भाग के लोगों के व्यवहार के लिये स्वीकृत होता है। यह उस देश के स्वीकृत मानक याम्योत्तर के लिये स्थानीय माध्य समय होता है। भारत का मानक समय GMT (Greenwich Mean Time) से 82.5° पूर्व है, जिसका अर्थ है कि हमारा मानक समय ग्रीनविच के मानक समय से साढ़े पाँच घंटे आगे है।
लेकिन यह याद रखना उचित है कि यह एक समय क्षेत्र संचालित करता है, डेलाइट सेविंग टाइम के लिए नहीं। दूसरे शब्दों में बोले तो भारतीय मानक समय, समय की एकरूपता तो देता है लेकिन डेलाइट सेविंग टाइम की सुविधा नहीं देता क्योंकि भारत की पूर्व-पश्चिम दूरी 2,933 किलोमीटर (1,822 मील) है जो 29 डिग्री अक्षांश से अधिक है। जिसके परिणामस्वरूप पूर्व में सूर्य जल्दी उदय हो जाता है और 2 घंटे पहले अस्त हो जाता है। इसलिए उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोग अपने घड़ियों को प्रारंभिक सूर्योदय से पहले सेट कर देते हैं ताकि दिन के उजाले के बाद ऊर्जा की अतिरिक्त खपत न हो सके।
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अगर भारत में दो टाइम जोन हो तो क्या होगा?
औपचारिक समय संकेत नई दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला के समय एवं आवृत्ति मानक प्रयोगशाला के द्वारा प्रेषित किये जाते हैं। ये संकेत परमाणु घड़ियों पर आधारित हैं जो सार्वभौमिक समन्वित समय (Coordinated Universal Time ) पर आधारित हैं। भारतीय मानक समय देश का मानक समय इसलिए हैं क्योंकि ये भारत के मध्य से गुजरता है। देश का ठीक समय आकाशवाणी और दूरदर्शन के द्वारा लोगों तक पहुँचाया जाता है।
हाल ही में, इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा जर्नल करंट साइंस ने अपने शोध में कहा है कि अगर भारत में दो टाइम जोन हो जाये तो यह न केवल डेलाइट को बचाएगा बल्कि उत्पादकता में भी वृद्धि होगी क्योंकी पूर्व में सूर्य जल्दी उदय हो जाता है और 2 घंटे पहले अस्त हो जाता है। लेकिन सर्दियों में यह स्थिति और भी खराब हो जाती है क्योंकि सर्दियों के दिन छोटी हो जाती है जिसके कारण उत्पादकता कम हो जाती है और उच्च बिजली की खपत हो जाती है। अध्ययन का अनुमान है कि अगर भारत में दो टाइम जोन हो जाये तो भारत 20 मिलियन किलोवाट वार्षिक बिजली बचा सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर मानसून का क्या प्रभाव होता है?
वही कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि भारत में दो टाइम जोन होता है तो यह बहुत सारी सेवाएं देने वाली सुविधाओ असर पड़ सकता है जैसे दो टाइम जोन रेलवे टकराव का कारण बन सकता है। इसी के जवाब में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा जर्नल करंट साइंस ने अपने शोध में कहा है की यदि पश्चिम बंगाल और असम सीमा पर अलीपुरद्वार जंक्शन में ट्रेन घड़ियों को स्विच किया जाता है, तो ऐसे टकराव से बचा जा सकता है।
अगर इसे कार्यान्वित किया जाये तो भारत को आईएसटी -2 बनाना पड़ेगा, उत्तर-पूर्वी राज्यों में से एक में आईएसटी- के लिए उत्तर-पूर्वी राज्यों में से एक में पांच सीज़ियम घड़ियों और एक हाइड्रोजन मेजर के समान प्राथमिक समय स्केल (पीटीएस) स्थापित करना पड़ेगा जो अभी फिलहाल दिल्ली में स्थित है। यही सीज़ियम घड़ी अनुनाद के आधार पर समय (या सीज़ियम के आइसोटोप की ऊर्जा स्थिति में परिवर्तन) और एक हाइड्रोजन मेजर, जो ऊर्जा राज्यों में हाइड्रोजन के अनुनाद के आधार पर समय मापती है।
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