आणविक आनुवंशिकी (Molecular Genetics) क्या है?

आण्विक आनुवंशिकी, आणविक स्तर पर जीनों की संरचना और कार्य से संबंधित आनुवंशिकी का एक उपखंड है. आणविक शब्दों में, एक जीन एक कार्यात्मक प्रोटीन या RNA अणु के संश्लेषण के लिए आवश्यक अनुक्रम है पूरे डीएनए का. इस लेख में आण्विक आनुवंशिकी (Molecular Genetics) के बारे में अध्ययन करेंगे.

Dec 14, 2017, 14:53 IST

जीन की रसायनिक पहचान 1944 में ऐवरी, मैक्लाउड एवं मैकारटी ने की थी. इन वैज्ञानिकों ने निमोनिया पैदा करने वाले बैक्टीरिया पर अनुसंधानों द्वारा सिद्ध किया की DNA (Deoxy ribo nucleic acid) आनुवंशिक द्रव्य (genetic material) होता है.

What is molecular genetics
Source: www.mmrl.edu.com
DNA अणु की संरचना का स्पष्टिकरण 1953 में वाट्सन एवं क्रिक ने किया था. इन वैज्ञानिकों ने DNA अणु की द्विकुंडली सरंचना (double helical structure) की प्रस्तावना की. बाद में प्रयोग द्वारा यह संरचना सत्य पाई गई और आज यह सर्वमान्य है. वाट्सन एवं क्रिक को Wilkins के साथ DNA पर खोजों के लिए 1962 में नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया. इन खोजों के परिणामस्वरुप आनुवंशिकी की एक नई शाखा, आणविक आनुवंशिकी  (molecular genetics) का जन्म हुआ.
मैक्लिंकटाक ने 1950 में मक्के में एक ऐसे जीन की उपस्थिति प्रमाणित की जो कि क्रोमोसोम में अपना स्थान बदलता रहता है तथा एक क्रोमोसोम से दुसरे क्रोमोसोम में जा भी सकता है. इसके विपरीत, सभी अन्य जीन निश्चित क्रोमोसोम में निश्चित स्थानों पर स्थित होते हैं और सामान्यता यह स्थान परिवर्तित नहीं होता है. इसलिए जीन कर पर्याय के रूप में विस्थल शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ ही होता है: ‘एक निश्चित स्थान पर स्थित’.  मैक्लिंकटाक के अध्ययन से एक नए प्रकार के जीनों का ज्ञान हुआ जो कि अपना स्थान बदलने की क्षमता रखते हैं; ऐसे जीनों को परिवर्त (transposon), परिवर्तनशील (transposable elements) अवयव अथवा जंपिंग जीन (jumping gene) कहा जाता है. इस काम के लिए मैक्लिंकटाक को 1983 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.

Molecular genetic DNA
Source: www. bio.logis.de.com

प्रेषण आनुवंशिकी (Transmission Genetics) क्या है?
मार्शल निरेनबर्ग और उनके सहकर्मियों ने 1961 में विभिन्न प्रयोगों द्वारा आनुवंशिक कोड का अर्थ ज्ञात किया. आनुवंशिक कोड (genetic code) को त्रिक्कोड भी कहते हैं, क्योंकि एक कोडान तीन क्षारकों से बना होता है. उन्होंने सर्वप्रथम यह सिद्ध किया कि दूत RNA (messenger RNA) में एक साथ तीन युरेसिल, यानी UUU फेनिल एलानीन एमिनो अम्लों के संकेत देते हैं. बाद में उन्होंने कई अन्य एमीनो अम्लों के संकेतों का पता लगाया और आज सभी 64 संभव त्रिक कोडानों के अर्थ ज्ञात हैं. निरेनबर्ग को इस कार्य के लिए 1968 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इसी वर्ष 1961 में जैक्वा एवं मोनो ने जीन क्रिया नियमन (regulation of gene action) की ओपेरान धारणा का प्रवर्तन किया. इस धारणा के अनुसार संरचनात्मक जीन (structural gene) अर्थात् वे जीन जो एंजाइम या RNA उत्पादित करते हैं या जीन समूहों की क्रिया का नियमन तीन अन्य जीन मिलकर करते हैं; इन जीनों को प्रचालक (Operator), वर्धक (Promoter) एवं नियामक (Regulator) जीन कहते हैं. ओपेरान सिद्धांत सर्वमान्य हैं और इसके लिए जैक्वा तथा मोनो को 1965 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.
बेन्जर ने 1955 एवं 1961 में एशिरकिया कोली के T4 जीवाणुभोजी (bacteriophage) के rII  जीन की सूक्ष्म संरचना का विश्लेषण किया. उन्होंने सिस्ट्रान (जीन के कार्य की इकाई), म्यूटान (जीन में उत्परिवर्तन की इकाई) एवं रिकोन (जीन में पुनर्संयोजन, recombination की इकाई) धारणाओं को जन्म दिया.

What is DNA
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ओकोआ ने 1956 में RNA का पात्र संश्लेषण किया. इसी वर्ष 1956 में कानरबर्ग ने DNA का पात्रे संश्लेषण किया. इन दोनों वैज्ञानिकों को 1959 में संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
न्यूक्लिक अम्ल के पात्रे संश्लेषण (in vitro synthesis) तथा आनुवंशिक कोड पर काम के लिए भारतीय मूल के हरगोविंद खुराना को 1968 में नोबेल पुरस्कार से विभूषित किया गया. खुराना और सहकर्मियों ने 1970 में एलानिल-स्थानांतरण RNA (alanyl-transfer RNA) के जीन का पात्रे संश्लेषण किया. बाद में उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि यह पात्रे-संश्लेषित जीन सामान्य रूप से प्रकार्य करता है.
इस लेख से यह ज्ञात होता है कि आणविक आनुवंशिकी क्या होती है, किसने इसकी खोज की थी और कब. साथ ही नए प्रकार के जीनों के बारे में ज्ञान होगा जो कि अपना स्थान बदलने की क्षमता रखते हैं आदि.
जैव रासायनिक आनुवंशिकी क्या हैं

जीन की रसायनिक पहचान 1944 में ऐवरी, मैक्लाउड एवं मैकारटी ने की थी. इन वैज्ञानिकों ने निमोनिया पैदा करने वाले बैक्टीरिया पर अनुसंधानों द्वारा सिद्ध किया की DNA (Deoxy ribo nucleic acid) आनुवंशिक द्रव्य (genetic material) होता है.

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DNA अणु की संरचना का स्पष्टिकरण 1953 में वाट्सन एवं क्रिक ने किया था. इन वैज्ञानिकों ने DNA अणु की द्विकुंडली सरंचना (double helical structure) की प्रस्तावना की. बाद में प्रयोग द्वारा यह संरचना सत्य पाई गई और आज यह सर्वमान्य है. वाट्सन एवं क्रिक को Wilkins के साथ DNA पर खोजों के लिए 1962 में नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया. इन खोजों के परिणामस्वरुप आनुवंशिकी की एक नई शाखा, आणविक आनुवंशिकी  (molecular genetics) का जन्म हुआ.

मैक्लिंकटाक ने 1950 में मक्के में एक ऐसे जीन की उपस्थिति प्रमाणित की जो कि क्रोमोसोम में अपना स्थान बदलता रहता है तथा एक क्रोमोसोम से दुसरे क्रोमोसोम में जा भी सकता है. इसके विपरीत, सभी अन्य जीन निश्चित क्रोमोसोम में निश्चित स्थानों पर स्थित होते हैं और सामान्यता यह स्थान परिवर्तित नहीं होता है. इसलिए जीन कर पर्याय के रूप में विस्थल शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ ही होता है: ‘एक निश्चित स्थान पर स्थित’.  मैक्लिंकटाक के अध्ययन से एक नए प्रकार के जीनों का ज्ञान हुआ जो कि अपना स्थान बदलने की क्षमता रखते हैं; ऐसे जीनों को परिवर्त (transposon), परिवर्तनशील (transposable elements) अवयव अथवा जंपिंग जीन (jumping gene) कहा जाता है. इस काम के लिए मैक्लिंकटाक को 1983 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.

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मार्शल निरेनबर्ग और उनके सहकर्मियों ने 1961 में विभिन्न प्रयोगों द्वारा आनुवंशिक कोड का अर्थ ज्ञात किया. आनुवंशिक कोड (genetic code) को त्रिक्कोड भी कहते हैं, क्योंकि एक कोडान तीन क्षारकों से बना होता है. उन्होंने सर्वप्रथम यह सिद्ध किया कि दूत RNA (messenger RNA) में एक साथ तीन युरेसिल, यानी UUU फेनिल एलानीन एमिनो अम्लों के संकेत देते हैं. बाद में उन्होंने कई अन्य एमीनो अम्लों के संकेतों का पता लगाया और आज सभी 64 संभव त्रिक कोडानों के अर्थ ज्ञात हैं. निरेनबर्ग को इस कार्य के लिए 1968 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

इसी वर्ष 1961 में जैक्वा एवं मोनो ने जीन क्रिया नियमन (regulation of gene action) की ओपेरान धारणा का प्रवर्तन किया. इस धारणा के अनुसार संरचनात्मक जीन (structural gene) अर्थात् वे जीन जो एंजाइम या RNA उत्पादित करते हैं या जीन समूहों की क्रिया का नियमन तीन अन्य जीन मिलकर करते हैं; इन जीनों को प्रचालक (Operator), वर्धक (Promoter) एवं नियामक (Regulator) जीन कहते हैं. ओपेरान सिद्धांत सर्वमान्य हैं और इसके लिए जैक्वा तथा मोनो को 1965 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.

बेन्जर ने 1955 एवं 1961 में एशिरकिया कोली के T4 जीवाणुभोजी (bacteriophage) के rII  जीन की सूक्ष्म संरचना का विश्लेषण किया. उन्होंने सिस्ट्रान (जीन के कार्य की इकाई), म्यूटान (जीन में उत्परिवर्जीन की रसायनिक पहचान 1944 में ऐवरी, मैक्लाउड एवं मैकारटी ने की थी. इन वैज्ञानिकों ने निमोनिया पैदा करने वाले बैक्टीरिया पर अनुसंधानों द्वारा सिद्ध किया की DNA (Deoxy ribo nucleic acid) आनुवंशिक द्रव्य (genetic material) होता है.
Source: www. mmrl.edu.com
DNA अणु की संरचना का स्पष्टिकरण 1953 में वाट्सन एवं क्रिक ने किया था. इन वैज्ञानिकों ने DNA अणु की द्विकुंडली सरंचना (double helical structure) की प्रस्तावना की. बाद में प्रयोग द्वारा यह संरचना सत्य पाई गई और आज यह सर्वमान्य है. वाट्सन एवं क्रिक को Wilkins के साथ DNA पर खोजों के लिए 1962 में नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया. इन खोजों के परिणामस्वरुप आनुवंशिकी की एक नई शाखा, आणविक आनुवंशिकी  (molecular genetics) का जन्म हुआ.
मैक्लिंकटाक ने 1950 में मक्के में एक ऐसे जीन की उपस्थिति प्रमाणित की जो कि क्रोमोसोम में अपना स्थान बदलता रहता है तथा एक क्रोमोसोम से दुसरे क्रोमोसोम में जा भी सकता है. इसके विपरीत, सभी अन्य जीन निश्चित क्रोमोसोम में निश्चित स्थानों पर स्थित होते हैं और सामान्यता यह स्थान परिवर्तित नहीं होता है. इसलिए जीन कर पर्याय के रूप में विस्थल शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ ही होता है: ‘एक निश्चित स्थान पर स्थित’.  मैक्लिंकटाक के अध्ययन से एक नए प्रकार के जीनों का ज्ञान हुआ जो कि अपना स्थान बदलने की क्षमता रखते हैं; ऐसे जीनों को परिवर्त (transposon), परिवर्तनशील (transposable elements) अवयव अथवा जंपिंग जीन (jumping gene) कहा जाता है. इस काम के लिए मैक्लिंकटाक को 1983 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.
Source: www. bio.logis.de.com
मार्शल निरेनबर्ग और उनके सहकर्मियों ने 1961 में विभिन्न प्रयोगों द्वारा आनुवंशिक कोड का अर्थ ज्ञात किया. आनुवंशिक कोड (genetic code) को त्रिक्कोड भी कहते हैं, क्योंकि एक कोडान तीन क्षारकों से बना होता है. उन्होंने सर्वप्रथम यह सिद्ध किया कि दूत RNA (messenger RNA) में एक साथ तीन युरेसिल, यानी UUU फेनिल एलानीन एमिनो अम्लों के संकेत देते हैं. बाद में उन्होंने कई अन्य एमीनो अम्लों के संकेतों का पता लगाया और आज सभी 64 संभव त्रिक कोडानों के अर्थ ज्ञात हैं. निरेनबर्ग को इस कार्य के लिए 1968 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इसी वर्ष 1961 में जैक्वा एवं मोनो ने जीन क्रिया नियमन (regulation of gene action) की ओपेरान धारणा का प्रवर्तन किया. इस धारणा के अनुसार संरचनात्मक जीन (structural gene) अर्थात् वे जीन जो एंजाइम या RNA उत्पादित करते हैं या जीन समूहों की क्रिया का नियमन तीन अन्य जीन मिलकर करते हैं; इन जीनों को प्रचालक (Operator), वर्धक (Promoter) एवं नियामक (Regulator) जीन कहते हैं. ओपेरान सिद्धांत सर्वमान्य हैं और इसके लिए जैक्वा तथा मोनो को 1965 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.
बेन्जर ने 1955 एवं 1961 में एशिरकिया कोली के T4 जीवाणुभोजी (bacteriophage) के rII  जीन की सूक्ष्म संरचना का विश्लेषण किया. उन्होंने सिस्ट्रान (जीन के कार्य की इकाई), म्यूटान (जीन में उत्परिवर्तन की इकाई) एवं रिकोन (जीन में पुनर्संयोजन, recombination की इकाई) धारणाओं को जन्म दिया.
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ओकोआ ने 1956 में RNA का पात्र संश्लेषण किया. इसी वर्ष 1956 में कानरबर्ग ने DNA का पात्रे संश्लेषण किया. इन दोनों वैज्ञानिकों को 1959 में संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
न्यूक्लिक अम्ल के पात्रे संश्लेषण (in vitro synthesis) तथा आनुवंशिक कोड पर काम के लिए भारतीय मूल के हरगोविंद खुराना को 1968 में नोबेल पुरस्कार से विभूषित किया गया. खुराना और सहकर्मियों ने 1970 में एलानिल-स्थानांतरण RNA (alanyl-transfer RNA) के जीन का पात्रे संश्लेषण किया. बाद में उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि यह पात्रे-संश्लेषित जीन सामान्य रूप से प्रकार्य करता है.
इस लेख से यह ज्ञात होता है कि आणविक आनुवंशिकी क्या होती है, किसने इसकी खोज की थी और कब. साथ ही नए प्रकार के जीनों के बारे में ज्ञान होगा जो कि अपना स्थान बदलने की क्षमता रखते हैं आदि.

तन की इकाई) एवं रिकोन (जीन में पुनर्संयोजन,
recombination की इकाई) धारणाओं को जन्म दिया.

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ओकोआ ने 1956 में RNA का पात्र संश्लेषण किया. इसी वर्ष 1956 में कानरबर्ग ने DNA का पात्रे संश्लेषण किया. इन दोनों वैज्ञानिकों को 1959 में संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

न्यूक्लिक अम्ल के पात्रे संश्लेषण (in vitro synthesis) तथा आनुवंशिक कोड पर काम के लिए भारतीय मूल के हरगोविंद खुराना को 1968 में नोबेल पुरस्कार से विभूषित किया गया. खुराना और सहकर्मियों ने 1970 में एलानिल-स्थानांतरण RNA (alanyl-transfer RNA) के जीन का पात्रे संश्लेषण किया. बाद में उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि यह पात्रे-संश्लेषित जीन सामान्य रूप से प्रकार्य करता है.

इस लेख से यह ज्ञात होता है कि आणविक आनुवंशिकी क्या होती है, किसने इसकी खोज की थी और कब. साथ ही नए प्रकार के जीनों के बारे में ज्ञान होगा जो कि अपना स्थान बदलने की क्षमता रखते हैं आदि.

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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