भारत और पाकिस्तान के बीच वर्तमान में चल रहे टकराव को देखते हुए लोगो के मन में यह सवाल उठ रहा है कि दोनों देश क्या युद्ध की घोषणा कर चुके है या नहीं. अभी के लिए इसका जवाब है नहीं. पाक की सेना ने भारत के कई शहरों को टारगेट किया लेकिन भारत के S-400 डिफेन्स सिस्टम ने सभी अटैक को हवा में ही टारगेट कर उड़ा दिया. चलिए बात करते है किसी देश के खिलाफ कैसे होता है युद्ध का ऐलान और इससे जुड़ा भारत में क्या है नियम.
बताते चलें कि भारत और पाकिस्तान के बीच तीन बार औपचारिक रूप से युद्ध हो चुका है—1947-48, 1965 और 1971 में। इसके अलावा 1999 में कारगिल संघर्ष भी हुआ, जिसे पूर्ण युद्ध नहीं माना गया। इन युद्धों में से केवल 1971 में ही भारत सरकार ने संसद की मंजूरी लेकर युद्ध की औपचारिक घोषणा की थी। ऐसे में सवाल उठता है — क्या युद्ध की घोषणा के लिए संसद की अनुमति जरूरी होती है? भारत में युद्ध की घोषणा की प्रक्रिया क्या है और इसका कानूनी आधार क्या है?
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क्या होता है युद्ध की घोषणा अर्थ?
युद्ध की घोषणा एक औपचारिक और गंभीर राजनीतिक कदम होता है, जिसमें एक देश आधिकारिक तौर पर दूसरे देश के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने की मंशा जताता है। यह सरकार, राष्ट्रपति या संसद जैसे शीर्ष संस्थानों द्वारा की जाती है।
- लिखित दस्तावेज के रूप में हो सकती है,
- जिसमें युद्ध के कारण, लक्ष्य और संबंधित देश का नाम स्पष्ट किया जाता है,
- और यह दस्तावेज विरोधी देश को सौंपा जा सकता है।
भारत में क्या है युद्ध की घोषणा की प्रक्रिया:
भारत में युद्ध की घोषणा के लिए कोई स्पष्ट और बाध्यकारी संवैधानिक प्रक्रिया नहीं है।
हालांकि, संबंधित कानूनी प्रावधान आप यहां देख सकते हैं:
- अनुच्छेद 53 – राष्ट्रपति सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर होता है, लेकिन वह कार्यकारी निर्णय मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता है।
- अनुच्छेद 352 – युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है, जिसके लिए संसद की मंजूरी आवश्यक है।
- कैबिनेट की सुरक्षा समिति (CCS) – युद्ध जैसी स्थिति में निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय होता है, जो प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और विदेश मंत्री आदि से मिलकर बनता है।
भारत में युद्ध की घोषणा के लिए संसद की पूर्व अनुमति जरूरी नहीं है। प्रधानमंत्री और CCS के निर्णय के आधार पर सेना को कार्रवाई के निर्देश दिए जा सकते हैं।
भारत द्वारा कब और कैसे की गई युद्ध की घोषणाएं?
युद्ध | औपचारिक घोषणा | संसद की भूमिका | विशेष तथ्य |
1947-48 (पहला भारत-पाक युद्ध) | नहीं | कोई पूर्व अनुमोदन नहीं | तत्कालीन पीएम नेहरू ने सीधे सेना को आदेश दिया |
1962 (भारत-चीन युद्ध) | नहीं | पोस्ट-फैक्टो (बाद में) चर्चा | संसद में बहस हुई, पर पहले अनुमति नहीं |
1965 (दूसरा भारत-पाक युद्ध) | नहीं | संसद में प्रस्ताव पारित | तत्कालीन पीएम शास्त्री ने सेना को खुली छूट दी |
1971 (तीसरा भारत-पाक युद्ध) | हां | संसद में औपचारिक मंजूरी | भारत की एकमात्र विधिवत युद्ध घोषणा |
क्या होता है युद्ध की घोषणा के बाद?
- सैन्य कार्रवाई शुरू – थल, वायु और नौसेना को अलर्ट किया जाता है, सीमाओं पर तैनाती बढ़ाई जाती है।
- राजनयिक संबंधों में बदलाव – दूतावास कर्मचारी वापस बुलाए जा सकते हैं, राजनयिक संबंध तोड़े जा सकते हैं।
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया – संयुक्त राष्ट्र शांति की अपील कर सकता है, साथ ही अन्य देश मध्यस्थता की कोशिश कर सकते हैं, वहीं कुछ देश किसी एक पक्ष का समर्थन कर सकते हैं।
- कानूनी असर – युद्ध अपराध होने की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) जांच कर सकता है, जैसा रूस के राष्ट्रपति पुतिन और इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ हुआ।
भारत में युद्ध की घोषणा का निर्णय मुख्य रूप से कार्यपालिका यानी प्रधानमंत्री और कैबिनेट की सुरक्षा समिति द्वारा लिया जाता है। संसद की अनुमति का प्रावधान आपातकालीन स्थिति के लिए है, न कि युद्ध की शुरुआत के लिए।
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