भारत का पहला सोलर पैनल से चलने वाला रेलवे स्टेशन किस शहर में है?

Sep 18, 2025, 16:35 IST

वाराणसी रेलवे पटरियों के बीच हटाने वाले सोलर पैनल लगाने वाला भारत का पहला शहर बन गया है। इस पहल की शुरुआत बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW) ने की है। यह इनोवेटिव प्रोजेक्ट पटरियों के बीच की खाली जगह का उपयोग करके नवीकरणीय ऊर्जा पैदा करता है। यह भारत के 2070 तक नेट-जीरो के लक्ष्य को पूरा करने में भी मदद करेगा। साथ ही, यह भारतीय रेलवे के टिकाऊ भविष्य के लिए एक ऐसा पर्यावरण-अनुकूल मॉडल पेश करता है जिसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है।

which indian city was the first to install solar panels on railway tracks
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भारत नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को पाने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस लक्ष्य को 2070 तक पूरी तरह और 2030 तक 70% हासिल करना है। भारतीय रेलवे ने इस लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।

हाल ही में, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) रेलवे पटरियों के बीच हटाने वाले सोलर पैनल लगाने वाला भारत का पहला शहर बन गया है।

इस पहल की शुरुआत बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW) ने की है। यह प्रोजेक्ट भारत में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा तो देता ही है, साथ ही यह पटरियों के बीच की खाली जगह का भी इस्तेमाल करता है। इससे जमीन खरीदने की जरूरत भी नहीं पड़ती।

रेलवे पटरियों के बीच हटाने वाले सोलर पैनल लगाने वाला भारत का पहला शहर कौनसा है?

18 अगस्त, 2025 को वाराणसी (उत्तर प्रदेश) रेलवे पटरियों के बीच हटाने वाले सोलर पैनल लगाने वाला भारत का पहला शहर बन गया।

प्रोजेक्ट की खास बातें

स्थान: यह बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW), वाराणसी में स्थित है।

प्रोजेक्ट का प्रकार: यह रेलवे पटरियों के बीच लगाया गया भारत का पहला हटाने वाला सोलर पैनल सिस्टम है।

इंस्टॉलेशन की लंबाई: लगभग 70 मीटर

पैनलों की संख्या: इसमें 28 पैनल हैं।

क्षमता: इसकी क्षमता 15 kWp है।

पावर डेंसिटी: इसकी पावर डेंसिटी 240 kWp/किलोमीटर है।

ऊर्जा उत्पादन: ~960 यूनिट प्रति किलोमीटर प्रति दिन

संभावित उत्पादन: 3.5 लाख यूनिट प्रति किलोमीटर प्रति साल

सोलर पैनल की तकनीकी खासियतें क्या हैं?

सोलर पैनल की तकनीकी खासियतें

इस्तेमाल की गई टेक्नोलॉजी: हाफ-कट मोनो-क्रिस्टलाइन PERC बाइफेशियल सेल

कुशलता (Efficiency): 20.15%

वोल्टेज (mp): 41.78 V

करंट (mp): 13.24 A

टिकाऊपन: रखरखाव और मौसमी बदलावों के लिए हटाने लायक डिजाइन

जंक्शन बॉक्स: IP68 (वाटरप्रूफ और डस्टप्रूफ)

पायलट प्रोजेक्ट की तकनीकी जानकारी

पैरामीटर

जानकारी

कवर की गई ट्रैक की लंबाई

70 मीटर

पैनलों की संख्या

28

कुल क्षमता

15 kWp

पावर डेंसिटी

240 kWp/km

रोजाना ऊर्जा उत्पादन

960 यूनिट/किमी/दिन

सालाना ऊर्जा की क्षमता

3.5 लाख यूनिट/किमी

रेलवे पटरियों के बीच इन सोलर पैनलों का क्या महत्व है?

जमीन खरीदने की जरूरत नहीं: यह पटरियों के बीच की मौजूदा जगह का इस्तेमाल करता है।

पर्यावरण के लिए अच्छा: यह जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) पर निर्भरता कम करता है।

बड़े पैमाने पर लागू होने वाला मॉडल: भारत में 1.2 लाख किलोमीटर रेलवे ट्रैक होने के कारण, इसकी बहुत बड़ी संभावना है।

नेट-जीरो लक्ष्य में सहायक: यह भारतीय रेलवे के 2030 के लक्ष्य की ओर एक कदम है।

इनोवेटिव डिजाइन: आसानी से रखरखाव के लिए हटाने वाले सोलर पैनल।

निष्कर्ष

नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को पाने के लिए, भारत वाराणसी में हटाने वाले सोलर पैनल लगाकर कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह भारतीय रेलवे के लिए एक ऐतिहासिक पहली घटना है। अगर इस मॉडल को पूरे देश में लागू किया जाता है, तो यह भारत में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में क्रांति ला सकता है। इससे रेल परिवहन ज्यादा साफ और टिकाऊ बन जाएगा।


Mahima Sharan
Mahima Sharan

Sub Editor

Mahima Sharan, working as a sub-editor at Jagran Josh, has graduated with a Bachelor of Journalism and Mass Communication (BJMC). She has more than 3 years of experience working in electronic and digital media. She writes on education, current affairs, and general knowledge. She has previously worked with 'Haribhoomi' and 'Network 10' as a content writer. She can be reached at mahima.sharan@jagrannewmedia.com.

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