भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रमुख की बात करें, तो यह राष्ट्रपति हैं। राष्ट्रपति देश का प्रमुख नागरिक होता है। साथ ही, यह देश का प्रथम नागरिक भी होता है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति भारतीय सस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर होता है। भारत में अभी तक 14 राष्ट्रपति हो चुके हैं। इसके अलावा 3 कार्यवाहक राष्ट्रपति भी रहे हैं। आपने भारत के अलग-अलग राष्ट्रपति के बारे में पढ़ा और सुना होगा। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत में एक राष्ट्रपति ऐसे भी रहे हैं, जिन्हें अजातशत्रु भी कहा जाता है। कौन-से हैं यह राष्ट्रपति, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
कौन है अजातशत्रु
अजातशत्रु के अर्थ की बात करें, तो इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति, जिसका कोई शत्रु न हो। इतिहास में अजातशत्रु हर्यंक वंश का एक शक्तिशाली शासक और मगथ का सम्राट था, जो कि बिम्बिसार का पुत्र था। उन्होंने मगध सम्राज्य का विस्तार किया था। अजातशत्रु का शासनकाल 492 ईसा पूर्व से लेकर 460 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
अजातशत्रु ने ही गंगा और सोन नदी के तट पर एक सैनिक छावनी बनवाई थी, जो कि आगे चलकर पाटलीपुत्र और आज का पटना बनी। अजातशत्रु को उनके युद्ध कौशल के लिए जाना जाता था, जिसमें वह महाशिलाकंटक और रथमूसल तकनीक का इस्तेमाल करते थे। महाशिलाकंटक में बड़े-बड़े पत्थरों को गुलेल जैसे माध्यम से दुश्मनों पर फेंका जाता था।
वहीं, रथमूसल तकनीक में रथ में बड़े-बड़े गदे या ब्लेड लगे होते थे, जो कि रथ चलने पर दुश्मनों पर हमला करते थे। इस तकनीक को फिल्म बाहुबली में भी दिखाया गया है।
किस अनुच्छेद में राष्ट्रपति का जिक्र
भारतीय संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 52 से 62 तक भारत के राष्ट्रपति, उनकी शक्तियों और निर्वाचन के बारे में जिक्र किया गया है। संविधान का अनुच्छेद 52 यह स्पष्ट करता है कि भारत में एक राष्ट्रपति का पद होगा और यह पद कभी खाली नहीं रह सकता है।
किस राष्ट्रपति को कहा जाता है अजातशत्रु
अब हम यह जान लेते हैं कि भारत में किस राष्ट्रपति को अजातशत्रु भी कहा जाता है। आपको बता दें कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अजातशत्रु भी कहा जाता है।
क्यों कहा जाता है अजातशत्रु
डॉ. राजेंद्र प्रसाद को उनके सौम्य व्यक्तित्त्व और विनम्र स्वभाव के लिए जाना जाता था। उनका स्वभाव ऐसा था कि उनसे जो भी व्यक्ति मिलता था, वह उनका प्रशंसक बन जाता था। वह बहुत ही साधारण जीवन जीने और अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते थे। वह राजनीति में रहते हुए भी किसी भी विवाद से दूर रहे। ऐसे में उनके आलोचक भी उनके प्रशंसक रहते थे।
उन्होंने 1934 में बिहार में भूकंप के दौरान लोगों के बीच उतरकर काम किया। साथ ही, 1917 के चंपारण सत्याग्रह में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हें उनके सौम्य व्यवहार के लिए अजातशत्रु कहा जाता है, जिसका कोई शत्रु न हो।
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