भारत में हर साल मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व बच्चों के लिए विशेष है, क्योंकि इस दिन बच्चे एक तरफ पतंगबाजी का आनंद लेते हैं, तो दूसरी तरफ गुड़ और तिल के लड्डू की मिठास का स्वाद भी चखते हैं।
यह पर्व उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि, इसके मनाने के अलग-अलग तरीके हैं और विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर हर साल मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है।
उत्तरायण के नाम से भी जानी जाती है मकर सक्रांति
हिंदू धर्म में एक महीने को दो पक्षों में बांटा गया है। इसे शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष के नाम से भी जानते हैं। वहीं, पूरे वर्ष को दो अयनों में बांटा गया है, जिसे उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है। मकर सक्रांति के दिन सूर्य की उत्तरायण गति शुरू होती है। ऐसे में इस पर्व को हम उत्तरायण भी कहते हैं।
क्यों मनाई जाती है मकर सक्रांति
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, पौष मास में सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है। वहीं, शनि सूर्य के पुत्र हैं। इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए पहुंचते हैं। वहीं, पौराणिक कथाओं पर गौर करें, तो इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों को मारकर उनके सिर को मंदार पर्वत में दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। ऐसे में इस दिन को बुराइयों और नकारत्मकता को समाप्त करने का दिन मानते हैं।
गंगा नदी का अवतरण
कथाओं के मुताबिक, मकर सक्रांति ही वह दिन है, जब धरती पर गंगा नदी का अवतरण हुआ था। ऐसे में उत्तर भारत में इस पर्व का अलग महत्त्व है।
इन राज्यों में इस नाम से जानी जाती है मकर सक्रांति
भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। तमिलनाडू में इसे पोंगल के नाम से जानते हैं, तो आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे सक्रांति के नाम से जानते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है।
सक्रांति पर पतंग उड़ाने का महत्त्व
मकर सक्रांति पर बच्चे व युवा पतंग उड़ाते हैं। इसके महत्त्व की बात करें, तो ऐसा कहा जाता है कि पौष माह में हमारा शरीर कई बीमारियों से ग्रसित होता है। उत्तराणय के समय सूरज से हमारे पास किरणों के रूप में कई औषधीय गुण पहुंचते हैं। ऐसे में पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सूरज के संपर्क में आता है, जिससे कुछ रोग खत्म हो जाते हैं।
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