किसी भी अधिनियम के संचालन को निलंबित करने का अधिकार बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 के माध्यम से प्राप्त हुए हैं. बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 भारत के सभी क्षेत्रों में विस्तृत है. इस अधिनियम के अलावा जो भी बैंकिंग से जुड़े अधिनियम हैं वे सभी एक पूरक अधिनियम के रूप में कार्य करते हैं. जैसे नेगोसिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (negotiable instrument act), कम्पनी एक्ट 1956( Companies Act 1956) जिसे बैंकिंग कम्पनी एक्ट 1949 के रूप में पास किया गया था. उल्लेखनीय हैं की यह अधिनियम 16 मई 1949 को पारित किया गया था. और यही अधिनियम 01 मार्च 1966 को बैंकिंग नियंत्रण अधिनियम (Banking Regulations Act 1949) के रूप में प्रकाश में आया. ध्यातव्य है कि यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर में वर्ष 1956 में प्रभावी हुआ था.
अधिनियम के संचालन को निलंबित करने के लिए निम्नलिखित प्रावधान हैं:
(1) केन्द्रीय सरकार, यदि रिजर्व बैंक इसका प्रतिनिधित्व कर रहा है, तो केन्द्रीय सरकार और यह केंद्रीय सरकार यदि इसके कार्यों से संतुष्ट है तो यह इस अधिनियम को साठ दिनों तक के लिए सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से ऐसी अवधि के लिए निलंबित कर सकती हैं. कम्पनी के कानून सभी क्षेत्रों में में सामान्य ढंग से लागू होता है.
(2) विशेष आपात की स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, या उसकी अनुपस्थिति में उसके द्वारा नामित भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर जिसे की भारत सरकार के द्वारा नियुक्त किया गया है अपने लिखित आदेश द्वारा, गवर्नर की शक्तियों का प्रयोग उप-धारा (1) के तहत कर सकता है. और यदि यह निलंबन की अवधि तीस दिन से अधिक नहीं (आपात की स्थिति) है तो, गवर्नर या डिप्टी गवर्नर केन्द्र सरकार को इस मामले रिपोर्ट करेगा. और तत्काल अपने आदेश को भारत के राजपत्र में प्रकाशित करेगा.
(3) केन्द्रीय सरकार उप-धारा (1) या उपधारा (2) के माध्यम से शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर निलंबन की अवधि का विस्तार कर सकती है. लेकिन यह अवधि एक समय में साठ दिन से अधिक नहीं हो सकती है. इस तरह से कुल अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं हो सकती है.
(4) उप-धारा (2) के तहत जारी की गयी अधिसूचना की एक प्रति [संसद] के पटल पर जितना जल्दी हो सके रखी जाएगी.
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