केंद्रीय सूचना आयोग

केंद्रीय सूचना आयोग एक संवैधानिक संस्था नहीं है, लेकिन एक स्वतंत्र निकाय है जो सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों के तहत आने वाले कार्यालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, वित्तीय संस्थाओं आदि से संबंधित शिकायतों और अपीलों पर गौर करती है या देख-रेख करती है। सूचना के अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना 2005 में भारत सरकार द्वारा की गयी थी। केंद्रीय सूचना आयोग शासन की प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Dec 16, 2015, 16:57 IST

सूचना के अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना 2005 में भारत सरकार द्वारा की गयी थी। केंद्रीय सूचना आयोग शासन की प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो लोकतंत्र के लिए जरूरी है। इस तरह की पारदर्शिता भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, उत्पीड़न और दुरुपयोग या अधिकार के दुरुपयोग की जांच करने के लिए आवश्यक है।

केंद्रीय सूचना आयोग की संरचना

केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त और दस से अधिक सूचना आयुक्त होते हैं। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति की सिफारिश के बाद की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री के अलावा, लोक सभा में नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री शामिल रहते हैं।

उक्त सदस्य एक ऐसा व्यक्ति होने चाहिए जिन्हें सार्वजनिक जीवन में ख्याति प्राप्त हो। इसके साथ-साथ उनके कानून की जानकारी, प्रबंधन, पत्रकारिता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, प्रशासन व शासन, मास मीडिया और सामाजिक सेवा का अनुभव होना चाहिए।

उक्त सदस्य किसी भी राज्य या संघ शासित प्रदेश की विधान सभा का सदस्य नहीं होने चाहिए। वह किसी भी राजनीतिक दल या किसी भी व्यवसाय के साथ जुड़ा नहीं होने चाहिए तथा उसके  पास कोई लाभ का पद नहीं होना चाहिए या उनके पास कोई अन्य लाभ का पेशा नहीं होना चाहिए।

केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य और शक्तियां

केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य और शक्तियां निम्नलिखित हैं:

a. यदि किसी मामले में कोई उचित आधार होता है तो आयोग किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।

b. आयोग के पास लोक प्राधिकरण द्वारा अपने फैसले के अनुपालन को सुरक्षित करने की शक्ति है।

c. यदि लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है तो आयोग उन कदमों को उठाने की सिफारिश कर सकता है जो इस तरह के समानता को बढ़ावा देने के लिए लिये जाने चाहिए।

d. यदि किसी भी व्यक्ति द्वारा शिकायत प्राप्त होती है यह आयोग का कर्तव्य है कि वह उस प्राप्त शिकायत की पूछताछ करे ।

i. निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर कौन अपनी अनुरोधित जानकारी का जवाब प्राप्त नहीं कर सका है।

ii. वह यह तय करता है कि दी गई जानकारी, अधूरी, भ्रामक या गलत है और प्राप्त जानकारी किसी अन्य मामले से संबंधित है।

iii. एक जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति के अभाव में कौन व्यक्ति एक सूचना अनुरोध प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हो पाया है;

iv. वह यह तय करता है कि शुल्क के रूप में ली जा रही फीस अनुचित है;

v. किसने उस जानकारी देने से मना कर दिया था जिसका अनुरोध किया गया था।

e. एक शिकायत की जांच के दौरान आयोग उस किसी भी रिकार्ड की जांच कर सकता है जो किसी भी लोक प्राधिकरण के नियंत्रण में है और इस तरह के रिकॉर्ड पर किसी भी आधार पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। दूसरे शब्दों में जांच के दौरान सभी सार्वजनिक विवरणों को जांच के लिए आयोग के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।

f. जांच होने के दौरान, आयोग के पास एक सामान्य अदालत की शक्तियां हैं।

g. आयोग को इस अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के आधार पर केंद्र सरकार को एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है। केंद्र सरकार को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करना होता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) इसलिए पारित किया गया था ता कि  मांगी जा रही जानकारी बहुत सरल, आसान, समयबद्ध और सुगम हो सके जो इस कानून को सफल शक्तिशाली और प्रभावी बनाता है। जानकारी देने के लिए आयोग के पास केवल सीमित शक्तियां हैं और यदि कोई विसंगतियां पायी भी जाती हैं आयोग के पास कार्रवाई करने तक का अधिकार नहीं है। आयोग के पास कम कर्मचारी हैं और इसके पास बहुत सारे मामलों का बोझ है। आयोग में समय पर रिक्त पदों नहीं भरे जा रहे हैं। इन कारणों की वजह से आयोग के पास विशाल मात्रा में पिछला कार्य बकाया है।

सूचना का अधिकार अधिनियम केवल सरकारी संस्थानों पर लागू होता है और यह निजी उद्यमों पर लागू नहीं होता है। यहां तक कि कुछ सार्वजनिक संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं आना चाहती हैं। जैसे- भारतीय क्रिके़ट बोर्ड (बीसीसीआई)। यहां तक कि राजनीतिक दल अपने धन के बारे में जानकारी देने तथा अन्य गतिविधियों को जनता के साथ साझा करने की अनिच्छुक रही हैं।

निष्कर्ष

इसलिए, आयोग में रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाना चाहिए। आयोग को कुशलता से चलाने के लिए आयोग के पास जरूरी लोगों की संख्या हो, इसके लिए एक महत्वपूर्ण समीक्षा जरूर होनी चाहिए। सभी सार्वजनिक संस्थानों को आरटीआई अधिनियम के तहत जनता के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। लोगों को राजनैतिक दलों से जानकारी लेनी चाहिए ताकि वो और अधिक जिम्मेदार बन सके और उनके वित्त पोषण के स्रोत और अधिक पारदर्शी हो सके। इसे चुनावों में काले धन के उपयोग की भी जांच करनी चाहिए। इसके अलावा, उन निजी कंपनियों को भी इस अधिनियम के दायरे में आना चाहिए जो सार्वजनिक कार्यों में शामिल हैं।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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