850 ईस्वी के पश्चात चोल स्थापत्य कला अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुँची| सबसे महत्वपूर्ण भवन जो की इस काल में बने वो अधिकांश रूप से मंदिरों के रूप में थे|
चोल स्थापत्य कला की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- भारत के सभी मंदिरों में सबसे बड़ा व ऊँचा तँजौर का शिव मंदिर इसी काल में निर्मित हैI
- चोलों के मंदिरों मण्डपों के प्रवेश द्वार पर द्वारपाल का होना इनकी एक विशेषता थी|
- मंदिरों का निर्माण पूर्णतया द्रविण शैली मे किया गया है|
- मंदिरों में गनों की उपस्थिति इनका एक अविस्मरणीय तथ्य है|
विजय चोलिस्वर के काल मे निर्मित कुछ मंदिरों की विशेषताएँ :
विजयलय चोल के काल में निर्मित नर्थमलाई का मंदिर भगवान शिव को समर्पित है|
श्रिनिवसनल्लुर में कोरांगनाता मंदिर पर्तन्क चोल प्रथम द्वारा कावेरी नदी के तट पर निर्मित मंदिर है| काल्पनिक पशु याज़ी इन भवनों की ख़ासियत है जिसे मंदिरों के आधार पर बनाया गया है| बृहदेश्वर मंदिर या पाेरुउडययर मंदिर या राजराजेश्वर मंदिर पूर्णतया ग्रेनाइट से निर्मित है, इसका निर्माण राज राज चोल प्रथम द्वारा बनवाया गया विश्व का एक मात्र संपूर्ण ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित मंदिर है इसके साथ ही इसे यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में भी स्थान प्राप्त है| यह तँजौर में स्थित है|
गंगाईकोंडचोलपुरम का बृहदेस्वर मंदिर राज राज के पुत्र राजेंद्र प्रथम द्वारा निर्मित है| राजेंद्र प्रथम की चलुक्य, गंग, पाल व कॅलिंग विजय के बाद गंगाईकोंडचोलपुरम चोलों की नयी राजधानी थी|
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