नेपाली राष्ट्रपति की भारत यात्रा
नेपाल में माओवादी सरकार के शासनकाल के दौरान चीन का काफी प्रभाव बढ़ गया था और नेपाल और भारत में विभिन्न मुद्दों पर टकराव की स्थिति पैदा हुई थी। लेकिन प्रचंड के नेतृत्व वाली माओवादी सरकार के पतन के बाद से एक बार फिर से दोनों देशों के मध्य रिश्तों में गर्माहट आई है।
भारत के साथ रिश्तों को नया आयाम देने के उद्देश्य से नेपाली राष्ट्रपति रामबरन यादव ने चार दिवसीय भारत यात्रा की। उनकी इस यात्रा का दौरान 16 फरवरी, 2010 को दोनों देशों के मध्य कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये जिससे दोनों देशों की सीमा पर पांच क्षेत्रों में रेल नेटवर्क काफी बढ़ जाएगा।
एक अन्य समझौते के तहत दोनों देशों के बीच नई हवाई सेवा शुरू करने को सहमति दोनों देशों में हुई। दो अन्य हस्ताक्षरित समझौतों में से एक के तहत नेपाल-भारत मैत्री पॉलीटेक्निक की स्थापना की जाएगी, जबकि चौथा समझौता बीरगंज, नेपाल में नेपाल-भारत मैत्री सभागृह बनाने के लिए था।
आर्थिक सहयोग पर जोर
नेपाली प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने उन्हें नेपाल में आर्थिक विकास के लिए भारत का भरपूर सहयोग देने का आश्वासन दिया। साथ ही उन्होंने नेपाल के लिए 25 करोड़ डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट की पेशकश भी की। साथ ही नेपाल में खाद्यान्न संकट को देखते हुए उसे खाद्यान्न सहायता देने का आश्वासन भी दिया गया।
भारत-नेपाल संबंध का इतिहास
आरंभ से ही भारत-नेपाल के संबंध काफी करीबी रहने के साथ-साथ भौगोलिक स्थिति, अर्थव्यवस्था आदि की वजह से कठिनाईयों से भी भरे रहे हैं। सांस्कृतिक रूप से दोनों देशों में काफी हद तक समानता है। दोनों देशों के संबंधों में उस समय एक नया अध्याय जुड़ा जब 31 जुलाई, 1950 को भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए गये। इस संधि के प्रावधान निम्नलिखित थे:
- दोनों देशों के बीच मुक्त आवागमन की सुविधा।
- दोनों देशों के नागरिकों के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
- दोनों देशों के नागरिकों के बीच मुक्त व्यापार सुविधा।
- रक्षा व विदेशी मामलों में दोनों देशों के बीच सहयोग।
- दोनों देश मिलकर किसी भी तरह के बाहरी सुरक्षा संबंधी खतरे से निपटेंगे।
21वीं शताब्दी में संबंध: 2001 में राजा ज्ञानेंद्र के शासक बनने के बाद दोनों देशों के संबंधों में गिरावट शुरू हो गई। राजा ज्ञानेंद्र का झुकाव चीन की ओर था जिसे भारत किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकता था। 2008 में नेपाल में राजशाही का पतन हो गया और लोकतंत्र की स्थापना हुई। प्रचंड के नेतृत्व में माओवादी सरकार ने सत्ता संभाली जिसने भारत विरोधी रुख अपनाते हुए चीन के साथ पींगे बढ़ाना शुरू कर दिया। माओवादी 1950 की शांति और मैत्री संधि के पूरी तरह से खिलाफ थे। हर स्तर पर उन्होंने भारत का विरोध किया। अब भारत के लिए राहत की बात है कि माओवादी सरकार का पतन हो चुका है और एक लोकतांत्रिक सरकार का वहां शासन है जो भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने की इच्छुक है। नेपाल में नए संविधान का गठन होना है जिसमें भारत ने हर प्रकार के सहयोग का वादा किया है।
Comments
All Comments (0)
Join the conversation