वास्को डी गामा कप्पड़ पर कालीकट के निकट 20 मई 1498 ईस्वी को भारत में आया था. वह कालीकट के क्षेत्रीय राजा जमेरिन से मिला और उसके साथ वार्ता सम्पन्न की. उसने कालीकट के स्थानीय राजा से मुलाकात की. हालांकि, यह वार्ता भारतीयों के साथ व्यापारिक संबंधों की स्थापना के संदर्भ में वास्को डी गामा के लिए उपयोगी नहीं था.
सितंबर 1500 इस्वी में, पेड्रो अल्वारेज कैब्राल भारत आया और कालीकट में पहले पुर्तगाली कारखाने की स्थापना की. उसने कोचीन और कन्नानूर के शासकों के साथ कुछ उपयोगी संधियों को करने में सफलता प्राप्त की थी.
हालांकि, वह अरबों और स्थानीय लोगों के साथ कालीकट की लड़ाई में अपमानित और पराजित किया गया और जून 1501 ईस्वी में पुर्तगाल लौट गया.रहा था.
वास्को डी गामा 1502 ईस्वी में, भारत की यात्रा पर पुनः वापस आया और भारत के व्यापारियों और निवासियों के साथ नौसेना से सम्बंधित प्रतिद्वंद्विता शुरू कर दिया. इस बार के यात्रा में वह पिछली यात्रा से अधिक सफलता प्राप्त की और पुर्तगाली व्यापारियों के लिए बेहतर रियायतें पाने में सफलता प्राप्त की. वास्को डी गामा की 1524 ईस्वी में कोचीन में मलेरिया से मृत्यु हो गई.
पुर्तगालियों को नए समुद्री मार्गों की ज़रूरत क्यों थी?
कालीकट और कोचीन सहित दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापारिक केंद्र पूरी तरह से अरब व्यापारियों के एकाधिकार में था. ये व्यापारी अपने माल की आपूर्ति और व्यापार के लिए लाल सागर और फारस की खाड़ी के मार्ग का इस्तेमाल किया करते थे. इसके अलावा उन्होंने मिस्र और सीरिया के बंदरगाहों तक अपने माल को पहुंचाने के लिए भूमि मार्गों का भी इस्तेमाल किया था.
कोचीन और कालीकट अपनी व्यापारिक विविधता के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे. यहाँ की काली मिर्च और मसालों की यूरोपीय बाजारों में काफी मांग थी. और शायद यही कारण था की सभी यूरोपीय कम्पनियाँ भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापार करने मार्ग की तलाश में थे.
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