भारतीय मौद्रिक नीति (Indian Monetary Policy)
भारतीय मौद्रिक नीति के दो स्पष्टï उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(I) आर्थिक विकास को तेज करना; और
(II) मुद्रास्फीतिकारी दबावों को नियंत्रित करना
भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति को लागू करने की मुख्य एजेंसी है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा स्थिर मौद्रिक नीति प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त किए उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं-
बैंक दर
यह वो दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक विनिमय के बिलों पर दोबारा कमीशन लेता है व्यवहार्यत:, यह वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक अन्य वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है। अत: यह मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था के एक संकेत के रूप में कार्य करती है।
आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सी आर आर)
प्रत्येक वाणिज्यिक बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास (या तो नकदी अथवा बही शेष) अपनी माँग और आवधिक देयताओं (जमा) का कुछ प्रतिशत रखना अपेक्षित होता है। भारतीय रिज़र्व बैंक को 3 से 15 प्रतिशत के बीच सी आर आर निर्धारित करने का अधिकार है।
सावधिक चलननिधि अनुपात (एस. एल. आर.)
वाणिज्य बैंकों द्वारा अपनी कुल माँग और आवधिक देयताओं (एन. डी. सी. एल.) का कुछ प्रतिशत (सी आर आर के अतिरिक्त) नकद, सोना और अनुमोदित प्रतिभूतियों की अवस्था में नकद (लिक्विड) परिसम्पत्तियों के रूप में रखना भी अपेक्षित होता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक
भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत 1 अप्रैल, 1935 को हुई थी और एक जनवरी, 1949 को इसका राष्टï्रीयकरण किया गया। रिज़र्व बैंक के उद्देश्य इस प्रकार हैं-बैंक नोट जारी करने का एकमात्र अधिकार, देश का विदेशी मुद्रा भंडार रखना, मुद्रा और ऋण प्रणाली का परिचालन करना ताकि देश में मुद्रा की स्थिरता बनी रहे और देश के आर्थिक व सामाजिक उद्देश्यों और नीतियों को ध्यान में रखते हुए देश के वित्तीय ढाँचे का सुदृढ़ तरीके से विकास करना। रिज़र्व बैंक भारत सरकार, राज्य सरकारों, वाणिज्यिक बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों और कुछ वित्तीय संस्थाओं के बैंकर के रूप में कार्य करती है।
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