राज्य के महाधिवक्ता

अनुच्छेद 165 राज्य के महाधिवक्ता और अनुच्छेद 177 सदनो के सम्मान में मंत्रियों तथा महाधिवक्ता के अधिकारों के साथ संबंध रखता है। महाधिवक्ता राज्य का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है। वह सभी कानूनी मामलों में राज्य सरकार की सहायता के लिए जिम्मेदार है। वह राज्य सरकार के हितों का बचाव और रक्षा करता है| राज्य के महाधिवक्ता का कार्यालय भारत के अटॉर्नी जनरल के कार्यालय से समान होता है |

Dec 17, 2015, 18:21 IST

अनुच्छेद 165 राज्य के महाधिवक्ता और अनुच्छेद 177 सदनो के सम्मान में मंत्रियों तथा महाधिवक्ता के अधिकारों के साथ संबंध रखता है। महाधिवक्ता राज्य का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है। वह सभी कानूनी मामलों में राज्य सरकार की सहायता के लिए जिम्मेदार है। वह राज्य सरकार के हितों का बचाव और रक्षा करता है| राज्य के महाधिवक्ता का कार्यालय भारत के अटॉर्नी जनरल के कार्यालय से समान होता है।

नियुक्ति और कार्यालय की अवधि

राज्यपाल, राज्य के महाधिवक्ता को नियुक्त करता है। जो व्यक्ति (महाधिवक्ता) नियुक्त किया जाता है उसे उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को नियुक्त करने की योग्यता होनी चाहिए। इसका मतलब, वह भारत का नागरिक होना चाहिए और दस साल के लिए एक न्यायिक कार्यालय में कार्यरत होना चाहिए या दस साल के लिए एक उच्च न्यायालय के एक वकील के रूप में कार्यरत होना चाहिए।

संविधान महाधिवक्ता को निश्चित अवधि प्रदान नहीं करता है। इसलिए, वह संबंधित राज्य के राज्यपाल की मर्ज़ी तक कार्यालय में कार्यरत रहता है। उसे किसी भी समय राज्यपाल द्वारा हटाया जा सकता है| उसे हटाने के लिए संविधान में कोई भी  प्रक्रिया या आधार नहीं है।

महाधिवक्ता वही पारिश्रमिक प्राप्त करता है जो राज्यपाल निर्धारित करता है| संविधान के महाधिवक्ता का पारिश्रमिक निर्धारित नहीं किया है।

कर्तव्य और कार्य

महाधिवक्ता के कार्य व कर्तव्य निम्न दिये गए है:

(1) वह कानूनी मामलों पर राज्य सरकार को सलाह देता है जो राज्यपाल द्वारा उसे भेजे या आवंटित किए जाते हैं|

(2) वह राज्यपाल द्वारा भेजे या आवंटित किए गए कानूनी चरित्र के अन्य कर्तव्यों का प्रदर्शन करता है।

(3) वह संविधान के द्वारा या किसी अन्य कानून के तहत उस पर सौंपे गए कृत्यों का निर्वहन करता है।

अधिकार

महाधिवक्ता के अधिकार निम्नलिखित हैं:

(1) अपने सरकारी कर्तव्यों के निष्पादन में, उसे राज्य में किसी भी अदालत में सुनवाई का अधिकार है।

(2) उसे राज्य विधानसभा के कार्यवाही में बात करने या हिस्सा लेने का अधिकार रखते हैं परंतु उसे वोट करने का अधिकार नहीं है|

(3) उसे राज्य विधानसभा जिसमें उसे सदस्य के रूप में नामांकित किया गया है, बात करने या किसी भी समिति की बैठक में हिस्सा लेने का अधिकार है लेकिन वह वोट करने का अधिकार नहीं रखता है|

(4) वह सभी विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षाओं को प्राप्त कर सकता है जो राज्य विधानसभा के एक सदस्य के लिए उपलब्ध हैं|

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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