रामकृष्ण और विवेकानंद

19 वीं सदी के धार्मिक मानवों ने न तो किसी सम्प्रदाय का समर्थन किया और न ही मोक्ष का कोई नया रास्ता दिखलाया| उन्होंने ईश्वरीय चेतना का सन्देश दिया| उनके अनुसार ईश्वरीय चेतना के आभाव में परम्पराएँ रूढ़ और दमनात्मक हो जाती है और धार्मिक शिक्षाएं अपनी परिवर्तनकारी शक्ति को खोने लगती है| 19 वीं सदी में भारत के ईश मानव रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद थे| रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का दर्शन धार्मिक सौहार्द्र पर आधारित था और इस सौहार्द्र का अनुभव व्यक्तिगत ईश्वरीय चेतना के आधार पर ही किया जा सकता है|

Jagran Josh
Nov 26, 2015, 16:13 IST

19 वीं सदी के धार्मिक मानवों ने न तो किसी सम्प्रदाय का समर्थन किया और न ही मोक्ष का कोई नया रास्ता दिखलाया| उन्होंने ईश्वरीय चेतना का सन्देश दिया|उनके अनुसार ईश्वरीय चेतना के आभाव में परम्पराएँ रूढ़ और दमनात्मक हो जाती है और धार्मिक शिक्षाएं अपनी परिवर्तनकारी शक्ति को खोने लगती है|

रामकृष्ण मिशन (1836-1886 ई.)

रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता के पास स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर के पुजारी थे| अन्य धर्मों के नेताओं के संपर्क में आने के बाद उन्होंने सभी तरह के विश्वासों की पवित्रता को स्वीकार किया| उनके समय के लगभग सभी धार्मिक सुधारक, जिनमें केशवचंद्र सेन और दयानंद भी शामिल थे, उनके पास धार्मिक चर्चाएँ करने और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आते थे| समकालीन भारतीय विद्वानों, जिनकी अपनी संस्कृति पर आस्था पश्चिम द्वारा प्रस्तुत चुनौती के कारण डगमगाने लगी थी,के मन में रामकृष्ण की शिक्षाओं के कारण पुनः अपनी संस्कृति के प्रति आस्था का भाव मजबूत हुआ| रामकृष्ण की शिक्षाओं का प्रचार करने और उन्हें व्यवहार में लाने के लिए उनके प्रिय शिष्य विवेकानंद ने 1897 ई. में रामकृष्ण मिशन  की स्थापना की थी| मिशन का उद्देश्य समाज सेवा थी क्योकि उसका मानना था की ईश्वर की सेवा करने का सबसे बेहतर तरीका मानवों की सेवा करना है| रामकृष्ण मिशन अपनी स्थापना के समय से ही जन-गतिविधियों के शक्तिशाली केंद्र के रूप में स्थापित हो गया था| इन जन-गतिविधियों में बाढ़,सूखा और महामारी जैसी आपदाओं के समय सहायता पहुँचाना,अस्पतालों की स्थापना करना और शिक्षा संस्थाओं की स्थापना जैसे कार्य शामिल थे|

विवेकानंद(1863-1902 ई.)

विवेकानंद का चरित्र अपने गुरू के चरित्र से बिल्कुल अलग था| उन्होंने भारतीय व पश्चिमी दर्शनों का अध्ययन किया लेकिन जब तक वे रामकृष्ण से नहीं मिले उन्हें मानसिक शांति नहीं प्राप्त हुई | उनका मन केवल अध्यात्म से ही नहीं जुड़ा था  बल्कि अपनी मातृभूमि की तत्कालीन परिस्थितियाँ भी उनके मन को आंदोलित करती रहती थीं|संपूर्ण भारत में भ्रमण करने के बाद उन्होंने पाया कि गरीबी,गन्दगी,मानसिक उत्साह का अभाव और भविष्य के प्रति आशान्वित न होने जैसी परिस्थितियां हर कहीं व्याप्त है|

विवेकानंद ने स्पष्ट रूप से कहा की-“अपनी सभी प्रकार की गरीबी और पतन के लिए स्वयं हम ही जिम्मेदार हैं| उन्होंने अपने देशवासियों को अपनी मुक्ति के लिए स्वयं प्रयास करने का सन्देश दिया| उन्होंने स्वयं भी अपने देशवासियों को जाग्रत करने और उनकी कमजोरियों की ओर उनका ध्यान दिलाने का दायित्व संभाला| उन्होंने उन्हें जीवन भर संघर्ष करने और मृत्यु द्वारा नया रूप धारण करने,गरीबों के प्रति दया-भाव रखने,भूखों को भोजन उपलब्ध कराने और वृहद् स्तर पर लोगों को जागृत करने के लिए प्रेरित किया|

विवेकानंद ने 1893 ई. में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सभा में भाग लिया| इनके द्वारा वहां दिए गए भाषण ने अन्य देशों के लोगों के मन को गहराई तक प्रभावित किया और विश्व की नजर में भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठा में वृद्धि की|

निष्कर्ष

रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का दर्शन धार्मिक सौहार्द्र पर आधारित था और इस सौहार्द्र का अनुभव व्यक्तिगत ईश्वरीय चेतना के आधार पर ही किया जा सकता है|

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Education Desk

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