लोहड़ी भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है. यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है. रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और उत्सव मानते हैं.
• रेवड़ी और मूंगफली अग्नि को भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी लोगों को बाँटी जाती हैं. घर लौटते समय ‘लोहड़ी’ में से दो चार कोयले प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की भी प्रथा है.
• लोहड़ी मुख्यत: पंजाब का पर्व है.
• लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि ऐतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुडी हुई हैं. दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है.
• उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में ‘खिचड़वार’ और दक्षिण भारत के ‘पोंगल’ पर भी ‘लोहड़ी’ के समीप ही मनाए जाते हैं.
ऐतिहासिक संदर्भ
किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था. उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ था. उसने दोनों लड़कियों, 'सुंदरी एवं मुंदरी', को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं. इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया. दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया. कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी.
जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका सो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया. भावार्थ यह है कि डाकू हो कर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई. यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है.
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