संविधान से पूर्व पारित अधिनियम

Sep 9, 2014, 11:59 IST

ब्रिटिश सरकार ने संविधान के निर्माण से पूर्व भारत में कई कानूनों और अधिनियमों को पारित कर दिया था.

ब्रिटिश सरकार ने संविधान के निर्माण से पूर्व भारत में कई कानूनों और अधिनियमों को पारित कर दिया था. इन अधिनियमों के पास होने के बाद भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों से अलग-अलग प्रतिक्रियाओं भी आई हुई थी. भारतीय समाज ने इसके निर्माण में अहम् भूमिका का निर्वहन किया था. इन अधिनियमों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण और परिणामी कार्यों का जिक्र नीचे सूचीबद्ध हैं:

1773 ईस्वी का रेगुलेटिंग एक्ट

यह भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के मामलों को विनियमित करने के लिए ब्रिटिश सरकार का पहला हस्तक्षेप था.

• यह बंगाल के गवर्नर के निर्माण और 'बंगाल के गवर्नर जनरल' की कार्यकारी परिषद की सहायता के लिए बनाया गया था.
• प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स था. इस क़ानून नें कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट के गठन के लिए अधिकारिता भी प्रदान की थी
• इस अधिनियम ने कंपनी पर ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण को अधि मजबूत और प्रभावी बनाया.

1784 ईस्वी का पिट्स इंडिया अधिनियम

इस अधिनियम नें कंपनी के वाणिज्यिक और राजनीतिक कार्यों के बीच एक रेखा खींची. इसलिए 'निदेशकों की कोर्ट' वाणिज्यिक मामलों का प्रबंधन करने के लिए और ' बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल ' सैन्य और नागरिक सरकार और ब्रिटिश संपत्ति को विनियमित करने के लिए था.

1833 ईस्वी का चार्टर अधिनियम

यह अधिनियम अपने केंद्रीकृत  प्रयासों के लिए जाना जाता है.

• बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा गया था.
• इस अधिनियम नें गवर्नर जनरल को बंबई और मद्रास के गवर्नर सहित पूरे भारत में विधायी अधिकार प्रदान किया.
• इस अधिनियम नें ईस्ट इंडिया कंपनी के वाणिज्यिक गतिविधियों को समाप्त कर दिया.

1853 ईस्वी का चार्टर अधिनियम

यह चार्टर अधिनियम गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी और कार्यकारी कार्यों को अलग-अलग कर दिया.

• नागरिक सेवाओं को भारतीयों के लिए सुलभ बना दिया गया.
• केंद्रीय विधान परिषद में 4 सदस्यों को स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया.

1858 ईस्वी का भारत सरकार अधिनियम

यह अधिनियम 1857 के विद्रोह के ठीक बाद प्रभाव में  आया था.

• यह कंपनी शासन को समाप्त कर डाला और कमपनी की शक्तियां पूरी तरह से ब्रिटिश क्राउन के अधीन हो गईं.
• गवर्नर जनरल को भारत के वायसराय के नाम से जाना गया जोकि एक ब्रिटिश क्राउन का प्रमुख प्रतिनिधि था.
• बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स को समाप्त कर दिया गया.
• भारत सचिव के एक नए पद का सृजन किया गया और उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक  परिषद को बनाया गया था.

1861 ईस्वी का भारतीय परिषद अधिनियम

• कुछ भारतीयों को गैर सरकारी सदस्यों के रूप में परिषद में वायसराय द्वारा नामांकित किया गया.
• कुछ विकेन्द्रीकृत शक्तियों को वापस बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी को लौटा दिया गया.
• बंगाल, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत और पंजाब के लिए नई विधान परिषदों का निर्माण किया गया.
• वायसराय को व्यापारिक गतिविधियों में लेनदेन के लिए नियम बनाने और परिषद के द्वारा अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्रदान किया गया था.

1892 ईस्वी का भारतीय परिषद अधिनियम

• गैर सरकारी सदस्यों की संख्या को दोनों केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में वृद्धि की गई थी.
• विधान परिषद की शक्तियों में वृद्धि की गयी ताकि वे बजट पर खुलेआम चर्चा कर सकें और कार्यकारिणी से प्रश्न पूछ सकें.

1909 ईस्वी का भारतीय परिषद अधिनियम

यह अधिनियम मॉर्ले-मिंटो सुधारों के रूप में भी जाना जाता था.

• केन्द्रीय और प्रांतीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या को बढ़ा दिया गया था.
• एक भारतीय सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा को पहली बार वायसराय की कार्यकारी परिषद में शामिल किया गया था.
• मुसलमानों को पृथक निर्वाचन दिया गया था.

1919 ईस्वी का भारत सरकार अधिनियम

इस अधिनियम को मान्तेग्यु-चेम्सफोर्ड सुधारों के रूप में भी जाना जाता था.

• विधायिका में केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूचियों को पेश किया गया.
• प्रांतीय विषयों को बाद के दिनों में हस्तांतरित और आरक्षित विषयों में विभाजित किया गया, जिसे द्वैध शासन व्यवस्था कहा गया.
• विधान परिषद को ऊपरी सदन (राज्य की परिषद) और निचले सदन (विधान सभा) में विभाजित किया गया था.
• पृथक निर्वाचन सिख, ईसाई, एंग्लो इंडियंस और अंग्रेजो के लिए भी विस्तारित किया गया था.

1935 ईस्वी का भारत सरकार अधिनियम

• केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों को संघीय सूची, प्रांतीय सूची और समवर्ती सूची के रूप में विभाजित किया गया.
• द्वैध शासन प्रांतों में समाप्त कर दिया गया था.
• केंद्र में द्वैध शासन के अंतर्गत विषयों को हस्तांतरित  और आरक्षित विषयों के रूप में अपनाया गया था.
• बंगाल, बम्बई, मद्रास, बिहार, असम और संयुक्त प्रांत की विधायिका को द्विसदनीय कर दिया गया.
• भारतीय रिजर्व बैंक के गठन को स्वीकृति प्रदान की गयी.

1947 ईस्वी का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम

इस अधिनियम नें 3 जून 1947 को माउंटबेटन योजना को स्वीकृति प्रदान की.

• ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और 15 अगस्त 1947 से भारत को एक स्वतंत्र देश के रूप में घोषणा की गयी.
• भारत के विभाजन के लिए अवसर को उपलब्ध कराया.
• वायसराय के कार्यालय को समाप्त कर दिया गया था और दो गवर्नरों के अधीन दो उपनिवेश बनाये गए.
• दोनों उपनिवेशों की संविधान सभाओं को उनके संबंधित प्रदेशों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया.
• रियासतों को इन उपनिवेशों से जुड़े रहने या स्वतंत्र रहने के बारे में फैसला करने का अधिकार दिया गया.

Jagran Josh
Jagran Josh

Education Desk

    Your career begins here! At Jagranjosh.com, our vision is to enable the youth to make informed life decisions, and our mission is to create credible and actionable content that answers questions or solves problems for India’s share of Next Billion Users. As India’s leading education and career guidance platform, we connect the dots for students, guiding them through every step of their journey—from excelling in school exams, board exams, and entrance tests to securing competitive jobs and building essential skills for their profession. With our deep expertise in exams and education, along with accurate information, expert insights, and interactive tools, we bridge the gap between education and opportunity, empowering students to confidently achieve their goals.

    ... Read More

    आप जागरण जोश पर भारत, विश्व समाचार, खेल के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समसामयिक सामान्य ज्ञान, सूची, जीके हिंदी और क्विज प्राप्त कर सकते है. आप यहां से कर्रेंट अफेयर्स ऐप डाउनलोड करें.

    Trending

    Latest Education News