स्कूल का चुनाव करते समय ज़रूर रखें इन बातों का ख़याल

Mar 6, 2018, 12:08 IST

स्कूल बदलने से माता-पिता व छात्रों को काफ़ी सोंच विचार करना पड़ता हैं| कौनसा स्कूल पढ़ाई, वातावरण, सुविधाओं और extracurricular में सर्वश्रेष्ठ है इसका अनुमान यहाँ बताई गयें पैरामीटर्स से लगाया जा सकता हैं| यहाँ पढ़िये और जानिए की किन-किन चीजों से हम सहीं स्कूल का चयन कर सकतें हैं|

Image Source: A cup of Karachi
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स्कूल बदलने की कई कारण हो सकते हैं| जिसमे स्कूल की पढ़ाई, वातावरण, सुविधाएं, एवं शिक्षक के पढ़ाने का तरीका जैसे कारण होते है| अधिकतर छात्र 9व़ी कक्षा के बाद स्कूल बदलते हैं ताकि उन्हें 10व़ी व 12व़ी कक्षा की पढ़ाई में परेशानी न हों| लेकिन स्कूल बदलने से पहले छात्रों और उनके माता-पिता को काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है| स्कूल का चयन करने से पहले अगर यहाँ बताई गयी बातों का ख़याल रखा जाये तो छात्रों और उनके माता-पिता स्कूल चुनने में काफ़ी आसानी होगी|

जानिए स्कूल का चयन करने के लिए किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  • टाइम और डिस्टेंस – सबसे पहले हमे यह देखना चाहिए की घर से स्कूल की दूरी कितनी हैं ताकि छात्रों को घर से स्कूल आने-जाने में परेशानी न हो और उनका समय भी ख़राब ना हों| अगर छात्रो के आने-जाने में समय की ज्यादा बर्बादी होगी तो उनका पढ़ाई का समय ख़राब होगा और स्ट्रेस भी बढ़ेगा जिससे उन्हें पूरी तरह से परेशानी होगी| इसलिए स्कूल का चयन करने में दूरी और समय का खासतौर से ख़याल रखा जाना चाहिए|
  • स्टूडेंट्स की सुरक्षा – माता-पिता अपने बच्चों की सुरक्षा को सबसे पहली प्राथमिकता देते हैं हालांकि स्कूलों में छात्रों को किसी भी तरीके का नुक्सान होना लगभग असंभव हैं लेकिन जब कभी स्कूल में छात्रों के साथ होने वाली ख़राब खबरें आती है तो अभिभावक चिंतित हो जाते है| उन्हें भी अपने बच्चो की सुरक्षा के बारे में सोंच कर तनाव हो जाता हैं| ऐसें में माता-पिता के लिए यह जरुरी है कि वे अपने बच्चो के लिए हर तरह से सुरक्षित स्कूल चुने जैसे की स्कूल में कैमरा होना, अंजान लोगों का स्कूल में आना असंभव हो और सिर्फ इतना ही नहीं बच्चों की सेहत, बीमारियों का संक्रमण ना हो ऐसा ध्यान रखा जाये|
  • स्कूल और बोर्ड की जानकारी – इस बात का पूरा ख़याल रखा जाये की स्कूल राज्य या राष्ट्रीय एजुकेशन बोर्ड से संभंधित व मान्यता प्राप्त होना चाहिए| जो स्कूल बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन से मान्यता प्राप्त होते है उनकी करिकुलम बाकी सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों से मिलता हैं| अगर पिछला स्कूल सीबीएसई से मान्यता प्राप्त था तो स्कूल बदलने पर ऐसा ही स्कूल चुने जिसे सीबीएसई से मान्यता प्राप्ति हैं ताकि छात्रों को करिकुलम बदलने से पढ़ाई में दिक्कत न आए|
  • स्कूल कोर करिकुलम – एजुकेशन बोर्ड के curriculum के अलावा स्कूल अपना खुदका curriculum होता है जिसे वह अपने तरीके से बच्चो को सिखाते हैं| तो स्कूल चुनने से पहले यह देख लिया जाये की स्कूल का रोजाना का टाईमटेबल किस तरह का हैं और स्कूल में छात्रों को अनुशासन, इंटरपर्सनल स्किल्स, और भाषाओं का उपयोग करना जैसी चीजों का कैसा ख़याल रखा जाता हैं|

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  • स्कूल की व्यवस्था – बच्चे अपने दिन सबसे अधिक समय स्कूल में बिताते हैं इसीलिए स्कूल में छात्रों के लिए एजुकेशन, मनोरंजन, व extracurricular के लिए कैसी व्यवस्था हैं इस बात पर पूरा ध्यान देना चाहिए| स्कूल में कंप्यूटर लैब लाइब्रेरी, ऑडिटोरियम, प्लेग्राउंड, स्विमिंग पूल, इंडोर गेम्स, और बेसिक सुविधाय जैसे वाशरूम/टॉयलेट, पानी व मेडिकल रूम होना चाहिए|
  • छात्र: शिक्षक ratio – बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि हर क्लास में कितने बच्चें है और उनकें लिए कितनें शिक्षकों का इंतज़ाम हैं| अगर क्लास में ज्यादा छात्र होंगे तो टीचर्स भी हर एक स्टूडेंट पर ठीक से ध्यान नहीं दे सकेंगे| MHRD ने राईट टू एजुकेशन (RTE) के अंतर्गत यह सूचना जारी की है कि प्राइमरी लेवल के लिए 30:1 का ratio होना चाहए, उप्पर प्राइमरी के लिए 35:1, व secondary और higher secondary के लिए 30:1 का student:teacher ratio होना चाहिए|
  • लर्निंग और असेसमेंट की तकनीक – इसमें शिक्षकों के पढ़ाने का तरीका, छात्रों को सिखाने का तरीका, और छात्रों की लर्निंग को टेस्ट करना आदि देखना चाहिए| स्कूल छात्रों को स्कूलवर्क, होमवर्क, व प्रोजेक्टवर्क कितना और कैसे देता हैं|
  • स्टाफ वैल्यू – स्कूल में अगर टीचर्स, सुपरवाइजर/सहायकों का वेतन अच्छे से मिलता है तो वे स्कूल में छात्रों का ख़याल भी अच्छे से रखते हैं| कई बार स्कूल कम सैलरी में ऐसे टीचर रख लेते है जो छात्रों को पढ़ाने योग्य नहीं होते| भले ही योग्य शिक्षक हो लेकिन अगर उन्हें सैलरी कम दी जाएगी तो वे भी छात्रों को अच्छी तरह से नहीं पढ़ाएंगे| इसके लिए माता-पिता टीचर्स से किसी तरह बात करके पता लगा सकते हैं की स्कूल अपने स्टाफ का किस तरह से ख़याल रखता हैं जिससे उनके बच्चों की अच्छी शिक्षा मिलेगी या नहीं इसका अनुमान लगाया जा सके|
  • एक्स्ट्रा करीकुलर बैलेंस – स्कूल में बच्चे केवल सब्जेक्ट्स में अच्छे अंक लाने नहीं जाते इसलिए पढ़ाई के साथ साथ एक्स्ट्रा करीकुलर भी छात्रों के लिए जरुरी है ताकि उनका पूरी तरह से विकास हो| छात्रों के मानसिक व शारीरिक विकास के लिए स्कूल में स्पोर्ट्स/फिजिकल एक्टिविटीज़, ड्रामा, म्यूजिक, एंटरटेनमेंट, डिबेट, कविताएँ या कहानियाँ जैसी एक्टिविटीज extracurricular में होनी चाहिए|

Conclusion: इन सभी बातोँ का ख़याल रखते हुए छात्रों और उनके माता-पिता को अच्छे स्कूल का चयन करने में आसानी होगीं| अभिभावक स्कूलों की एक सूची तैयार करके उसमे इन् सब चीजों का ध्यान रखते हेतु अपने बच्चो के अगले स्कूल का सही चयन कर सकते हैं|

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