नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग (NIOS) भारत का एकमात्र मंच है जहां ऐसें छात्र एडमिशन लेते हैं जो शिक्षा निजी मोड में पूरी करना चाहते हैं. NIOS बोर्ड के माध्यम से छात्र अपनी शिक्षा पूरी कर बाकी शिक्षा बोर्ड के छात्रों की तरह अपनी आगे की पढ़ाई कर सकते है और अपना करियर बना सकते है. NIOS बोर्ड, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) द्वारा शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य समाज के ग्रामीण या पिछड़े वर्ग के बच्चो व युवाओं को शिक्षा प्रदान करना था जो स्कूलों के बिना ही सीख और पढ़ सकते हैं.
दिव्यांगों/ विकलांगों को रोजगारपरक शिक्षा देने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए एनआईओएस (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन लर्निंग) ने शिक्षा प्रणाली में बदलाव किए हैं. नोएडा स्थित एनआईओएम मुख्यालय से लेकर देशभर में फैले केंद्रों पर कोर्स के नए प्रारूप की शुरुआत की गई है. इन्हें दिव्यांगों के हित को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है.
एनआईओएस के चेयरमैन प्रो. चंद्रभूषण शर्मा ने बताया कि एनआईओएस दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयासरत है. देश की आबादी का बड़ा हिस्सा दिव्यांगों की श्रेणी में आता है. इनकी बेहतरी देश की बेहतरी है. हम अपने विभिन्न कोर्स के जरिये इस तरह से शिक्षा देने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई असर न पड़े. साथ ही दिव्यागों के लिए शिक्षा प्राप्त करना आसान हो. शारीरिक और मानसिक परेशानियों से लड़ रहे दिव्यागों के लिए को ध्यान में रखते हुए कोर्स डिजाइन किए गए हैं.
जैसे जिन छात्रों को सुनने में परेशानी होती है, उन्हें पहले अन्य बच्चों की तरह हिंदी या अंग्रेजी में विषय पढ़ाए जाते हैं. उन्हें पढ़ाने के लिए साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता था. ऐसे में कई बार छात्रों को शब्दों को समझने में दिक्कत होती थी. जैसे यदि उन्हें महात्मा गांधी के लिए कोई सिंबल समझाया गया है, लेकिन किसी ने महात्मा गांधी के लिए बापू शब्द इस्तेमाल किया है तो बच्चे भ्रम में पड़ जाते थे. ऐसी समस्याओं को ध्यान में रखकर एनआईओएस ने सुनने में परेशानी वाले छात्रों के लिए साइन लैंग्वेज में ही हर विषय पढ़ाने के लिए अलग कोर्स तैयार किया है. यह कोर्स वीडियो के जरिये संचालित किए जा रहे हैं.
वहीं, नेत्रहीन छात्रों को कंप्यूटर की शिक्षा देने के लिए कीबोर्ड पर स्थित बटनों में से कुछ में उभार बना होता है. ऐसे बटनों की पहचान कराकर उन्हें टाइपिंग सिखाई जाएगी, ताकि उनके लिए कंप्यूटर के क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकेंगे.
एनआईओएस चेयरमैन प्रो. चंद्र भूषण शर्मा ने बताया कि ऑटिज्म के कई स्तर होते हैं. इसके शिकार बच्चों के पास विभिन्न योग्यताएं और परेशानियों दोनों ही मौजूद रहती हैं. ऑटिज्म से परेशान छात्र सामान्य बच्चों की तरह ही बेहतर गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, कोई भी विषय सीख सकते हैं, लेकिन उन्हें शिक्षा देने का तरीका कई बार सामान्य बच्चों से अलग अपनाना पड़ता है. ऑटिज्म से परेशान छात्र कई बार नए लोग शिक्षक को देखकर या परीक्षा के समय बहुत अधिक बेचैन या आक्रामक हो सकते हैं. ऐसे में इन छात्रों के लिए जरूरत पड़ने पर हम घर में जाकर परीक्षा लेने का इंतजाम भी कर रहे हैं, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता में समझौता न हो साथ ही, इन छात्रों को भी थोड़ी सुविधा मिल सके.
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