अक्सर भारतीय छात्र करते हैं इन प्रॉब्लम्स का सामना

Oct 22, 2019, 17:57 IST

हमारे देश में कॉलेज स्टूडेंट्स को अपने कॉलेज के दिनों में कई किस्म की प्रॉब्लम्स से जूझना पड़ता है. हॉस्टल मेस के खाने से लेकर अपने भावी करियर के बारे में चिंता करने के साथ ही पार्ट टाइम जॉब, ट्यूशन क्लासेज और ट्यूटोरियल्स के साथ एडजस्टमेंट करना, पीर-प्रेशर और जाने क्या-क्या.....इस आर्टिकल में कुछ प्रमुख प्रॉब्लम्स पर चर्चा की जा रही है.

Problems that every Indian student can relate to
Problems that every Indian student can relate to

कॉलेज की सपनीली दुनिया की कल्पना से अलग वास्तव में हमारे देश में कॉलेज लाइफ इतनी चुनौतियों और प्रॉब्लम्स से भरी हुई है कि शुरू-शुरू में कॉलेज स्टूडेंट्स खुद को ‘आसमान से गिरे, खजूर पर अटके’ वाली स्थिति में पाते हैं अर्थात स्कूल लाइफ की ड्रेस, एक के बाद एक लगातार लगने वाले पीरियड्स,  PT, टर्म एग्जाम्स, फाइनल एग्जाम्स प्रैक्टिकल्स और डिसिप्लिन से तो वे बच जाते हैं लेकिन कॉलेज में इन स्टूडेंट्स को एक नई ही दुनिया मिलती है. अधिकतर स्टूडेंट्स अपने घर-परिवार, दोस्तों और शहर से दूर एक अजनबी शहर में, अजनबी लोगों के बीच अपनी ग्रेजुएशन या पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने के लिए रहने चले जाते हैं. कॉलेज में लेक्चरर्स, प्रोफेसर्स और अजनबी क्लासमेट्स और बैचमेट्स के साथ एडजस्ट करना अपने-आप में किसी चुनौती से कम बिलकुल भी नहीं होता है.

यूं तो कॉलेज के दिन हर किसी की जिंदगी के सबसे यादगार दिन होते हैं. यह वह समय होता है जब आप के पास अपने आस-पास की चीजों के बारे में पता लगाने और प्रयोग करने की ज्यादा आजादी होती है. लेकिन यह हरेक की जिंदगी का सबसे अहम फेज भी होता है क्योंकि इस समय ही आप यह फैसला करते हैं कि आप अपने जीवन में आगे चलकर कौन-सा करियर अपनाना चाहते हैं. हालांकि, भारत में कॉलेज जाने पर स्टूडेंट्स यह मानने लगते हैं कि वे अब बड़े हो गए हैं लेकिन उनके पेरेंट्स उन्हें अभी भी बच्चे समझ कर ही उनसे व्यवहार करते हैं. उनपर अभी भी बहुत रोक-टोक रहती है. ऐसा भी हो सकता है कि बहुत बार स्टूडेंट्स को कॉलेज में अपनी पसंद का सब्जेक्ट भी पढ़ने न दिया जाए. कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि, ‘भारत में पहले स्टूडेंट्स इंजीनियर बनते हैं उसके बाद फैसला करते हैं कि वे अपने जीवन में क्या करना चाहते हैं?’........और यह एक कड़वी सच्चाई ही तो है. भारत में कॉलेज स्टूडेंट्स कई समस्याओं से जूझते हैं जो उनको शारीरिक और मानसिक तौर पर खोखला कर देती हैं. प्रत्येक भारतीय छात्र से जुड़ी ऎसी ही कुछ कॉमन प्रॉब्लम्स के बारे में पता लगाने के लिए आइये यह आर्टिकल आगे पढ़ें:

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करियर फील्ड होती है पहले से निर्धारित

जैसाकि हालिया ब्लॉक बस्टर ‘थ्री इडियट्स’ में देखा गया है, हमारे समाज में करियर के संबंध में बच्चे की किस्मत उसके जन्म लेते ही तय हो जाती है. अभी आपका नाम भी ठीक से नहीं रखा गया होता है और पूरा संसार आपके लिए उपयुक्त करियर के बारे में सोचना शुरू कर देता है. जैसे ही आप स्कूल जाने लगते हैं, आपके सामने सिर्फ एक ही राग अलापा जाता है कि आपको एक डॉक्टर या एक इंजीनियर बनना होगा या किसी IIM से MBA करनी होगी. ज्यादातर मामलों में कोई आपसे यह पूछना भी जरुरी नहीं समझता है कि आप को क्या पसंद है या फिर आप अपने जीवन में बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं?

रटना बन चुका है लर्निंग का अभिन्न हिस्सा

एक और रोचक कारक यह है कि स्कूल के वर्षों के दौरान, किसी बच्चे की बुद्धि को नापने का पैमाना यह होता है कि वह बच्चा/ बच्ची क्लास में पढ़ाये गए विषयों को कैसे रटता/ रटती है. हम 5 वीं क्लास में पढ़ते समय भी रात-रात भर जाग कर अपनी पढ़ाई करते थे. क्यों? सिर्फ इसलिय कि अगले दिन हमारा सामाजिक विज्ञान का एग्जाम होता था. लेकिन, उन बेचारे स्टूडेंट्स के बारे में आप क्या कहेंगे जिनका दिमाग बहुत तेज़ होता था और वे एक शब्द भी समझे बिना किसी टॉपिक को रटने के बजाय उस टॉपिक के बेसिक्स समझने में ज्यादा मग्न रहते थे? वे सभी को बेवकूफ लगते थे और ऐसा दिमाग न मिलने के कसूरवार माने जाते थे जो दिमाग बेकार की चीजों या टॉपिक्स को रट नहीं सकता था.  

इवनिंग ट्यूशन क्लासेज 

लर्निंग के सबसे बढ़िया तरीके के बारे में किसी शिक्षाविद से पूछें. नि:संदेह, उनका जवाब स्व-अध्ययन या सेल्फ स्टडी होगा. जब तक बच्चा स्कूल से घर आकर खुद 1-2 घंटे नहीं पढ़ता, स्कूल में सीखी हुई आधी से ज्यादा चीजें भूल जाता है. लेकिन स्व-अध्ययन के बजाय हमें कोचिंग क्लासेज और ट्यूशन पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है. टेक्स्ट बुक्स से पढ़ने या स्कूल और ट्यूशन के टीचर्स के द्वारा दिए गए नोट्स को रटने के बाद हमारे पास स्व-अध्ययन करने के लिए समय ही नहीं बचता था.

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फैमिली, फ्रेंड्स और रिलेटिव्स रखते हैं काफी उम्मीदें

परीक्षा परिणाम निकलने के समय आपके फ़ोन पर सभी की कॉल आने लगती थी. यहां तक कि आपके वे अंकल और आंटियां जिनसे आपने कभी बात नहीं की थी, आपसे पूछते थे, ‘बेटा नंबर कैसे आये?’ सबसे इंटरेस्टिंग तो यह है कि आप किसी चीज़ में कितने भी अच्छे क्यों न हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. जिस बात से फर्क पड़ता है वह है आपकी एकेडमिक परफॉरमेंस. अगर आप इंजीनियरिंग या मेडिकल लाइन से अलग किसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो इससे लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी स्पोर्ट्स या किसी एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटी में कितने अच्छे हैं?

मेस फ़ूड लगता है टेस्टलेस  

हॉस्टल्स और PGs में रहने वाले छात्रों की सबसे बड़ी शिकायत मेस फ़ूड को लेकर होती है. एक तरफ हॉस्टल की फीस और PG के किराये बेतहाशा बढ़ रहे हैं लेकिन मेस फ़ूड अभी भी पहले की तरह ही स्वादहीन और फीका होता है. मैगी और घर के बने स्नैक्स ऐसे समय में हॉस्टलर्स को जान बचाने वाले लगते हैं और अगर संभव हो तो वे इन दोनों के लिए कॉलेज की अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा सकते हैं. मजेदार बात तो यह है कि जो बच्चे पहले घर के खाने से दूर भागते थे वे अब कॉलेज में अपने घर के खाने के लिए तरसते हैं. ‘मां के हाथ का खाना’ एक ऐसी चीज़ होती है जो वे हर बार अपनी लंबी छुट्टी पर घर वापस आने पर ढूंढते हैं.

पार्ट टाइम जॉब भी बन सकती है मुसीबत

भारतीय छात्र जो एक और गंभीर समस्या झेलते हैं वह है बहुत ज्यादा तनाव जो वे हरदम महसूस करते हैं. पेरेंट्स की उम्मीदों और सहकर्मियों के प्रेशर के बीच वे अपनी पसंद और सपनों को तो भूल ही जाते हैं और फिर, दुनिया की भीड़ में शामिल हो जाते हैं. पूरे देश में अच्छे क्लासेज में सीट सुरक्षित करने के लिये जान-लेवा प्रतियोगिता कई स्टूडेंट्स को निराश और विषादपूर्ण बना देती हैं और वे इनसे बचने के लिए गलत तरीके अपनाने पर मजबूर हो जाते हैं. छात्र लगातार निगरानी रखे जाने के कारण और अपनी गतिविधियों पर नजर रखे जाने की वजह से निराश हो जाते हैं और कोई भी काम शुरू करने पर जल्दी ही उस काम को करने में उनकी रूचि नहीं रहती है.

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