UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : धातु तथा अधातु पार्ट-IV

Nov 29, 2018, 12:11 IST

UP Board कक्षा 10 वीं विज्ञान अध्याय 12; धातु तथा अधातु के चौथे'भाग का स्टडी नोट्स यहाँ हम उपलब्ध करा रहें हैं| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है| नोट्स के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें|

UP Board Class 10 Science Notes
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आज हम यहाँ आपको  UP Board कक्षा 10 वीं विज्ञान अध्याय 12; धातु तथा अधातु के चौथे'भाग का स्टडी नोट्स उपलब्ध करा रहें हैं| इस नोट्स में सभी टॉपिक को बड़े ही सरल तरीके से समझाया गया है और साथ ही साथ सभी टॉपिक के मुख्य बिन्दुओं पर समान रूप से प्रकाश डाला गया है|यहां दिए गए नोट्स यूपी बोर्ड की कक्षा 10 वीं विज्ञान बोर्ड की परीक्षा 2018 और आंतरिक परीक्षा में उपस्थित होने वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित होंगे| इसलिए, छात्रों को इस अध्याय को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए। यहां दिए गए नोट्स यूपी बोर्ड की कक्षा 10 वीं विज्ञान बोर्ड की परीक्षा 2018 और आंतरिक परीक्षा में उपस्थित होने वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित होंगे। इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:

1. बेसेमर परिवर्तन

2. विधुत भट्टियाँ

3. कॉपर के मुख्य अयस्क तथा सूत्र

4. पाइराइड अयस्क से कॉपर का निष्कर्षण

5. अयस्क का सांद्रण

6. भर्जन क्रिया

7. प्रगलन

8. बेसेमरीकरण या बेसेमराइजेशन

9. फफोलेदार कॉपर का शोषण

10. विधुत- अपघतनी विधि

बेसेमर परिवर्तन- यह लोहे का बना एक पात्र होता है| जिसके बगल में एक द्वार होता है जिसमें वायु का एक तेज़ झोंका भेजा जाता है| परिवर्तक में पिघला हुवा अयस्क रख कर वायु प्रवाहित की जाती है| इसके फलसवरूप अप्द्रव्यों का ओक्सीकरण होता है तथा ऊष्मा उत्पन्न होती है| बेसेमर का उपयोग तम्बा तथा लोहे के निष्कर्षण में किया जाता है|

besemar reactions process

विधुत भट्टियाँ- विधुत भट्टियों का उपयोग वहन पर किया जाता है जहाँ पर विधुत सस्ती होती है तथा जहाँ उच्च ताप की आवश्यकता होती है| विधुत भट्टियाँ कई प्रकार की होती हैं; जैसे- आर्क भट्टी, प्रतिरोध भट्टी  तथा प्रेरण भट्टी|

(i) प्रतिरोध भट्टी- इस भट्टी में विधुत धारा के प्रवाह में प्रतिरोध होने के कारण उच्च ताप (3000-40000C) उत्पन्न होता है| ये भट्टियाँ दो प्रकार की होती हैं-

(a) प्रत्यक्ष प्रतिरोध भट्टी- जिनमें घान (charge) सवयं चालक का कार्य करता है और विधुत धारा के प्रवाह में प्रतिरोध उत्पन्न करता है जिससे उच्च ताप उत्पन्न होता है|

(b) अप्रत्यक्ष प्रतिरोध भट्टी- जिसमें एक अल्प विधुत चालक की छड़ विधुत धारा के प्रवाह में प्रतिरोध उत्पन्न करती है जिससे उच्च ताप उत्पन्न होता है|

(ii) आर्क भट्टी- इस भट्टी में दो कार्बन इलेक्ट्रोडों के बीच विधुत धारा प्रवाहित कर के विधुत आर्क उत्पन्न किया जाता है| आर्क भट्टी में 30000C से 35000 C तक ताप उत्पन्न होता है| इसका उपयोग सबसे अधिक होता है|

metals and non metals diagram 1

(iii) प्रेरण भट्टी- इस भट्टी में घान को प्रेरण धाराओं की सहायता से गर्म किया जाता है|

UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : धातु तथा अधातु पार्ट-I

कॉपर के मुख्य अयस्क तथा सूत्र :

1. कॉपर पाइराइट या कैलकोपाइराइट-CuFeS2 या Cu2S.Fe2S3

2. मैलेकाइट- Cu2CO3. Cu(OH)2

flow chart of metals

second flow chart of metals

पाइराइड अयस्क से कॉपर का निष्कर्षण:

कॉपर पाइराइड कॉपर का सबसे महत्वपूर्ण अयस्क है| इससे लगभग 34% कॉपर प्राप्त होता है| यह कॉपर तथा लोहे का संयुक्त सल्फाइडहोता है तथा इसका सूत्र CuFeS2 होता है| इस अयस्क के कॉपर का निष्कर्षण करने में एक विशेष कठिनाई आती है| साधारनतया सल्फाइड अयस्क भर्जित किये जाने पर ऑक्साइड में बदल जाते हैं, परन्तु कॉपर पाइराइड में कॉपर और लोहे दोनों के सल्फाइड होते हैं और कॉपर की बंधुता ऑक्सीजन के लिए लोहे की अपेक्षा कम और सल्फर के लिए लोहे से अधिक होती है; अतः जब तक सम्पूर्ण आयरन को ओक्सीकृत कर के पृथक नहीं कर दिया जाता है, कॉपर को ऑक्साइड के रूप में प्राप्त करना मुश्किल होता है| अयस्क के भर्जन में कॉपर सल्फाइड का कुछ भाग ऑक्साइड में बदल जाता है, लेकिन बाद में वह आयरन सल्फाइड के क्रिया करके फिर आयरन ऑक्साइड और कॉपर सल्फाइड देता है|

कॉपर पाइराइड से कॉपर का निष्कर्षण विगलन विधि से निम्नलिखित पदों में किया जाता है-

1. अयस्क को पिसना

2. अयस्क का सांद्रण

3. भर्जन क्रिया

4. प्रगलन

5. बेसेमरिकरण

6. कॉपर का शोषण

1. अयस्क को पीसना- अयस्क को एकत्रित करके इसके बड़े-बड़े टुकड़ों को क्रशर्स में पीसा जाता है| पिसे हुए अयस्क को बाल मिल में डालकर महीन चूर्ण में परिवर्तित कर लेते हैं|

2. अयस्क का सांद्रण- बारीक़ पिसे हुए सल्फाइड अयस्क का सांद्रण झाग पल्वन विधि द्वारा किया जाता है| इस विधि में पिसे हुएअयस्क को पानी से भरे हुए एक टैंक में दाल दिया जाता है| टैंक में थोड़ी मात्रा में चिड का तेल और सोडियम एथिल जैन्थेट मिलकर हवा की तेज़ धारा में प्रवाहित करते हैं|हवा की तेज़ धारा के कारण मिश्रण में झाग उत्पन्न हो जाते हैं| सल्फाइड अयस्क झाग के साथ द्रव्य की सतह के ऊपर एकत्रित हो जाते हैं| अयस्क में उपस्थित जल में अविलेय अशुद्धियाँ टैंक के पेंदी पर बैठ जाती हैं|सांद्रित अयस्क को एकत्रित कर के सुखा कर पिस लिया जाता है| इस विधि में 0.6% तक कॉपर का अयस्क सांद्रित किया जाता है|

UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : धातु तथा अधातु पार्ट-II

3. भर्जन क्रिया- सांद्रित अयस्क का एक परावर्तनी भट्टी में उसके गलनांक के निचे वायु की नियंत्रित मात्रा में भर्जन किया जाता है| भर्जन क्रिया में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं-

(i) अयस्क में उपस्थित मुक्त सल्फर SO2 में ऑक्सीकृत होकर बाहर निकल जाती है|

Earning action for metals

4. प्रगलन- भर्जित अयस्क में सिलिका और कोक मिलाकर मिश्रण को एक छोटी वात्या भट्टी में प्रगलित किया जाता है|

इस भट्टी में भर्जित अयस्क में निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-

metals non metals equations

धातुमल द्रवित सल्फाइड से हल्का होने के कारण उपरी सतह पर तैर कर बाहर बह जाता है| निचली सतह पर क्युपरस सल्फाइड और फेरस ऑक्साइड और थोड़ा फेरस सल्फाइड का गलित मिश्रण होता है|इस गलित मिश्रण को मैट कहते हैं| मैट को निकास द्वार से बाहर निकल कर एकत्रित कर लिया जाता है|

5. बेसेमरीकरण या बेसेमराइजेशन- द्रवित मैट को थोड़ी सिलिका के साथ मिलकर बेसेमर परिवर्तक में भर देते हैं| गर्म द्रवित मैट और सिलिका के मिश्रण में वायु की तीव्र धारा प्रवाहित  करने पर होने वाली विभिन्न अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं-

besemers converters reactions

besemers converters second reaction

क्रिया समाप्त होने पर परिवर्तक को उलट कर पिघली हुई धातु को सिलिका की बनी हुई टंकी में पलट देते हैं| जैसे-जैसे पिघला हुवा कॉपर ठंडा होता है, उसमें SO2 गैस के बुलबुले निकलने लगते हैं और धातु की सतह फफोले पद जाते हैं| इस प्रकार प्राप्त कॉपर धातु को फफोलेदार कॉपर कहते हैं|

फफोलेदार कॉपर का शोषण- इसका शोषण निम्नलिखित दो विधियों द्वारा किया जाता है-

(i) हरी लकड़ियों की बल्लियों से,

(ii) विधुत अपघटनी विधि से|

(i) हरी लकड़ियों की बल्लियों से- फफोलेदार कॉपर को सिलिका का अस्तर लगी हुई परावर्तनी भट्टी में पिघलाकर वायु की धारा प्रवाहित की जाती है| सल्फर का SO2 तथा आर्सेनिक का वाष्पशील आर्सेनिक ऑक्साइड में ओक्सीकारण हो जाता है| लोहा तथा कुछ अन्य धातु ओक्सइडों में बदल जाते हैं और सिलिका के साथ संयुक्त होकर धातुमल के रूप में बाहर निकल दिए जाते हैं| इस प्रकार से शोधित धातु में क्युपरस ऑक्साइड की अशुद्धि रहती है| इसको दूर करने के लिए पिघली हुई धातु को हरी लकड़ी की बल्लियों से अच्छी तरह से हलाया जाता है| इस क्रिया को पोलिंग खा जाता है|

हरी बल्लियों से प्राप्त हाइड्रोकार्बन  बुलबुलों के रूप में तेज़ी से निकलते हैं जो क्युपरस ऑक्साइड को कॉपर में अपचायित कर देते हैं| इस प्रकार से प्राप्त कॉपर 99.5% शुद्ध होता है और इसको टफ-पिच कॉपर भी कहते हैं|

(ii) विधुत- अपघतनी विधि- अत्यंत शुद्ध कॉपर प्राप्त करने के लिए पोलिंग विधि द्वारा प्राप्त कॉपर को विधुत अपघतनी विधि के द्वारा किया जाता है| इस विधि में पोलिंग विधि द्वारा प्राप्त अशुद्ध तांबे की प्लेटें एनोड का कार्य करती हैं और कैथोड शुद्ध कॉपर की प्लेटें होती हैं| विधुत-अपघट्य कॉपर सल्फेट का अम्लीय विलयन होता है| विधुत धारा प्रवाहित करने पर शुद्ध कॉपर कैथोड पर जमा हो जाता है| एनोड के निचे कुछ अशुद्धियाँ जिनमें सिल्वर, गोलग आदि धातुएं जमा होजाती हैं, इन्हें एनोड मड कहते हैं| शेष अशुद्धियाँ घोल में सल्फेट के रूप में आ जाती हैं; जैसे निकिल, आयरन, जिंक आदि|

the electrolytic method

UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : धातु तथा अधातु पार्ट-III

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