कामयाबी के लिए जरूरी नहीं कि आप दूसरों को कितना बदल पाते हैं। जरूरी यह है कि बदलावों के प्रति आपकी क्या प्रतिक्रिया रहती है।
अर्नेस्ट हेमिंग्वे
आज की पलपल परिवर्तित होती दुनिया में द ओल्ड मैन एंड द सी के लेखक के ये शब्द युवाओं को नई राह दिखा रहे हैं। बदलाव की सकारात्मक प्रतिक्रिया का ही परिणाम है कि आज जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव हो रहे हैं और हमने उसी के बरक्स कदम भी बढाए हैं। हम अपने ही मुल्क को देखें तो आजादी के बाद अब तक 64 सालों में कई बडे परिवर्तनों के गवाह बने हैं। राजनीति हो या समाज, अर्थव्यवस्था हो या फिर संस्कृति, कोई भी समय की गति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है और इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण रोल यदि किसी का रहा है तो वह है युवा का। इस दौरान यदि कॅरियर के प्रति युवाओं के दृष्टिकोण की बात न की जाए तो बदलाव की ये कहानी अधूरी ही रह जाएगी। सोचिए आजादी के समय हमारे युवाओं के पास कॅरियर के कितने विकल्प मौजूद थे? प्रशासनिक सेवाएं, सेना, शिक्षा या फिर गिनी चुनी सरकारी नौकरियों के अलावा बताने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन आज इस तस्वीर में बडे बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। कॅरियर क ांसिसनेस, जॉब ऑप्शन्स, डिसीजन मेकिंग जैसी न जाने कितनी चीजें ऐसी हैं, जो पहले कभी परिदृश्य में थी ही नहीं। ऐसे में हम यहां पिछले 6 दशक के 6 सबसे बडे बदलावों की बात कर रहे हैं। ये वे अभूतपूर्व परिवर्तन हैं, जो भविष्य की शानदार इमारत की नींव रख रहे हैं।
खुद की सुन रहे हैं युवा
अपने मन की बात को मानकर यदि कोई काम किया जाता है, तो सफल होने की उम्मीद और भी बढ जाती है, क्योंकि इसे पूरा करने में व्यक्ति अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। किसी लेखक का यह कथन आज युवाओं के सिर चढकर बोल रहा है। यदि हम आजादी के बाद सबसे बडे बदलावों की बात करें, तो कॅरियर चयन के संबंध में छात्रों को आत्मनिर्णय की आजादी मिली है। पहले जहां इस संबंध में टीचर, पैरेंट्स, परिवार के अन्य सदस्यों की अहम भूमिका रहती थी, वहीं आज किस क्षेत्र में जाना है, क्या करना है, और किस तरह करना है, का निर्णय युवा अधिकांशत: स्वयं ही करते हैं। इसमें गलत भी कुछ नहीं है, आखिर जिसे अच्छे कॅरियर के लिए संघर्ष करना है, उसे इसके लिए राह चुनने की तो स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए। आज बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनके जॉब में कोई समानता नहीं हैं, लेकिन वे अपने क्षेत्रों में सफलता की नई इबारत लिख रहे हैं। इसका एकमात्र और प्रमुख कारण यह है कि उन्होंने अपनी अंतरआत्मा की बात को सुना। उस क्षेत्र का चयन किया, जिसे वे अपने लिए बेहतर समझते थे। कॅरियर विशेषज्ञ भी मानते हैं कि सफल होने के लिए जरूरी है कि उस क्षेत्र का चुनाव करें, जहां आप अपनी क्षमताओं का सर्वोत्तम उपयोग कर सकते हैं। खुद की सुनो आजादी के बाद के उन सबसे बडे बदलावों में से एक है, जिसे आज का युवा सर्वाधिक वरीयता दे रहा है और इसी मूलमंत्र के सहारे सफलता की बुलंद इमारतों का निर्माण कर रहा है।
पैसा ही नहीं, पैशन भी
आज का युवा केवल पैसा नहीं चाहता है, बल्कि ऐसा काम करना चाहता है, जिसे करने के बाद उसे संतुष्टि तो मिले ही साथ ही साथ लोग उसका अनुसरण भी करें। इसी के चलते आज काम में पैशन को खास तवज्जो मिलने लगी है। देश विदेश में कई ऐसे उदाहरण हैं, जहां लोग अपने काम में पैशन को लेकर बडे से बडा रिस्क लेने से भी नहीं चूके हैं। फ्रांस के महान चित्रकार मिलेट के पिता किसान थे, लेकिन मिलेट की रुचि बचपन से ही चित्रकारी में थी, लोग उनका मजाक उडाते, रोजी- रोटी कमाने के लिए कुछ ढंग का काम करने की नसीहतें देते, लेकिन मिलेट का मन तो केवल चित्रकारी में ही बसा था। रंगों के संसार से उन्होंने कुछ ऐसा नाता जोडा कि आज पूरी दुनिया उन्हें दुनिया के महानतम चित्रकार के तौर पर जानती है। स्वयं अपने ही देश में अलग-अलग क्षेत्र के ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जहां लोगों ने कॅरियर स्टेबिलिटी, फ्यूचर, सैलरी के मामले में रिस्क उठाते हुए अपने पैशन को वरीयता दी। जरा कल्पना कीजिए कि यदि जीवन से पैशन, कुछ अलग करने का हठ खत्म हो जाता तो दुनिया का क्या स्वरूप होता? युवा सपनों की सतरंगी इबारत कहां लिखी जाती? काम में क्या कुछ लुत्फ रहता? लेकिन यह कुछ लोगों की अपने पैशन को काम से जोडने की ललक थी कि आज भी यह दुनिया उतनी ही रंगीन है, जितनी पहले थी। आज की युवा सोच इस बात को और भी प्रमाणित करती है, क्योंकि इन दिनों वह अपने कॅरियर को दस से पांच की जॉब से बांध कर नहीं बल्कि उससे कहीं आगे बढाकर देखती है। युवा अपने प्रोफेशन में पैशन का स्कोप तलाशता है।
कॅरियर निर्धारण 10वीं बाद
हमारा कल कैसा होगा, यह निर्भर करता है कि हम आज हैं क्या और हमारी भविष्य को लेकर योजना कैसी है। यह बात आज के युवाओं के मन में बैठ चुकी है। कहते है वेल स्टार्ट हाफ डन यानि किसी भी काम की सफलता उसकी बेहतर शुरुआत पर निर्भर करती है। शायद यही कारण है कि आज युवा कॅरियर के बारे में 10 वीं कक्षा में आते ही सोचने लगता है। इस दौर में ही वह तय कर लेता है कि उसे किस दिशा में जाना है। आजादी के बाद का यह दूसरा बडा परिवर्तन है। इस परिवर्तन के परिणाम भी अच्छे ही सामने आ रहे हैं। देश के तमाम शिक्षाविद भी इसे कॅरियर की राह में विगत चार पांच दशकों का सबसे बडा बदलाव मानते हैं। आजादी के समय कॅरियर के बारे में इतनी जागरूकता नहीं थी। पैरेंट्स, स्टूडेंट्स का ज्यादा से ज्यादा जोर परंपरागत शिक्षा पर ही होता था। जिसमें गे्रजुएशन, पीजी, पीएचडी जसी शक्षिक उपलब्धियां अमूमन सबसे पसंदीदा थीं। अब तो युवा अंडर 25 में किसी कंपनी में इंजीनियर, डॉक्टर या कंपनी में टॉप लेवल पर नौकरी करते हैं।
प्राइवेट सेक्टर ने खोले द्वार
आज की तारीख में प्राइवेट व गवर्नमेंट दोनों ही सेक्टर युवा उम्मीदों को आस दे रहे हैं। कई मामलों में तो प्राइवेट सेक्टर में मिलने वाले बेहतर पैकेज, जॉब सेटिसफेक्शन जैसी चीजें सरकारी नौकरियों को भी उन्नीस साबित कर रही हैं। लेकिन पहले ऐसा बिल्कुल नहीं था। देश की आजादी के समय न तो कोई खास प्राइवेट सेक्टर था, न ही उसमें जॉब की ही बडी गुंजाइश थी। इस कारण युवा इस ओर कम ही जाते थे। नब्बे के दशक में चली उदारीकरण की बयार ने पूरी स्थिति को ही बदल दिया है। छात्रों के लिए देश-विदेश में नौकरियों के द्वार खूले। वैश्वीकरण ने इस दौर को और भी खुशनुमा बना दिया। इस दौरान तमाम विदेशी, मल्टीनेशनल कंपनियां युवाओं के लिए जॉब जंक्शन बनकर उभरीं और आजाद भारत इस भूमंडलीकरण का बडा एपीसेंटर बन कर उभरा है।
एम्लाई नहीं, एम्प्लॉयर बनने पर जोर
एशिया और पूरी दुनिया में भारत केवल उभरता हुआ देश नहीं रह गया है, भारत उभर चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का यह कथन दुनिया में भारत व भारतीयों के प्रति नजरियों में आ रहे बदलाव की एक बानगी भर है। पिछले कुछ दशकों में आया यह परिवर्तन भारतीय युवाओं कीकडी मेहनत और सराहनीय कार्यो से ही संभव हुआ है। इन्हीं क्षमताओं के बल पर हम अन्य क्षेत्रों की ही तरह स्वरोजगार की दिशा में भी बडी दूरी नाप रहे हैं। देखा भी जा रहा है कि छोटे कदम व नाममात्र की पूंजी के साथ की गई उनकी शुरुआत विभिन्न क्षेत्रों में नए कीर्तिमान रच रही है। आज उन युवाओं की कोई कमी नहीं है, जिन्होंने बडी-बडी प्रोफेशनल डिग्रियों से लैस होने के बाद भी उद्यमिता का मार्ग अपनाया है।
लीक से हटकर चल रहे हैं यंगस्टर्स
स्वयं को मात्र अपने प्रयासों से ही उत्कृष्ट बनाया जा सकता है। आप में वह असीम ऊर्जा है, जो अनगढ पत्थरों से भी राह निकाल सकती है।
लोकमान्य तिलक
(पुणे सार्वजनिक सभा पत्र) यह वह विचार है जिसके सहारे न जाने कितने क्षमतावान भारतीय युवा अपना जीवन संवार रहे हैं। ऐसे में पटना के कौशलेंद्र का जिक्र पूरी तरह से प्रासांगिक होगा। आइआइएम, अहमदाबाद जैसे संस्थान से एमबीए डिग्री हासिल करने वाले इस युवा ने जब प्रोफेशनली ही सही, सब्जी बेचने का काम हाथ में लिया तो लोगों की तीखी प्रतिक्रियाओं से उसे दो-चार होना पडा। लेकिन यदि कौशलेंद्र ने भी बाकी लोगों की तरह ही सोचा होता तो आज उसकी कहानी देश के लाखों युवाओं को प्रेरणा देने का काम न करती। उनका एक अलग काम आज पूरी दुनिया के समक्ष है। आज उनके शुद्ध सब्जी के आउटलेट इस व्यवसाय में कामयाबी के नए आयाम जोड रहे हैं। देश में लीक से हटकर काम करने वाले युवाओं की संख्या में इजाफा हो रहा है, तभी तो मुंबई के डिब्बे वाले अपनी अलग पहचान से दुनिया में ख्याति अर्जित कर रहे हैं, तो ऊंची डिग्री के बावजूद लीक से हटकर चलने की अभिलाषा में कोई सुपर थर्टी जैसे संस्थान चला रहा है, तो कोई रिक्शा पुलर का हीरो बनकर ओबामा का आतिथ्य स्वीकार कर रहा है। यह सब बताने की एकमात्र वजह यह है कि आज कंपटीशन के साथ-साथ लोगों की सोच में भी परिवर्तन आया है। आज कामयाबी का नया मूलमंत्र है कुछ नया सोचना और दूसरों से पहले सोचना। प्रसिद्ध विद्वान कर्लाइल का विश्लेषण इसी तथ्य को आगे बढाता है- जिन लोगों ने सभ्यता की नई राहें निकालीं, वे सदा पुराने रिवाजों और परंपराओं को तोडते चले आए। पुरानी रुढियों, दलीलों पर उनका कभी विश्वास नहीं रहा। बदलते हालात का ही सकारात्मक परिणाम है कि आज के विशेषज्ञ और पैरेंट्स इस तरह की सोच को आगे बढा रहे हैं। इस दौर का सबसे बडा बदलाव यह है कि युवा कॅरियर की भेडचाल में शामिल न होकर नई सोच के साथ आनेवाले समय में अवसरों के नए दरवाजे खोल रहे हैं।
एमबीए सब्जीवाला
बदले भारत की बदलती परिस्थिति का ही परिणाम है कि आइआइएम अहमदाबाद से मैनेजेमेंट की डिग्री लेने के बावूजद उन्होंने नौकरी को वरीयता न देकर सब्जी बेचने को प्राथमिकता दी और आज एमबीए सब्जीवाला के नाम से देश-विदेश में मशहूर हो रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं नालंदा के कौशलेंद्र की। सुनते हैं उनकी जुबानी, उनकी सफलता की कहानी.. बिहार के नालंदा जिले के एक गांव से प्राथमिक शिक्षा पाने वाले कौशलेन्द्र ने उच्च शिक्षा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद से हासिल की। बचपन से ही कुछ अलग सोच रखने वाले कौशलेन्द्र अध्ययन के दौरान ही उद्यमिता के प्रति आकर्षित हुए। वे विकास एवं पिछडापन के लिए समय को पैमाना मान कर किसी भी समाज को विकसित करने की दिशा में आतुर दिखते हैं। उनका सपना पिछडे बिहार को माल खपत का बाजार न बनने देकर इसे वैश्विक मानचित्र पर बेजिटेबल हब के रूप में विकसित करने का है।
सब्जी ही क्यों
नालंदा जिले में सब्जी उत्पादन काफी होने के बावजूद किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यह मैं बचपन से देख रहा था। उसी समय मन में यह बात समा गई थी कि यदि इन्हें उचित सुविधा दी जाए तो सब्जी क्रांति के बल पर देश की दशा और दिशा दोनों सुधारी जा सकती है। सब्जी के क्षेत्र में आना चैलेंजिंग था, जिसे मुझे दोगुने उत्साह से काम करने की प्रेरणा मिली। बिहार में ही अपना प्रयोग करने का महत्वपूर्ण कारण यह था कि यहां हमें सब कुछ मालूम था और यहां लोग इतने मेहनती और जुनूनी होते हैं कि यदि उन्हें सपना दिखाया जाए, तो वे कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। यह काम एक व्यक्ति नहीं, बल्कि बहुत सारे लोगों के साथ मिलकर करना ही संभव था। यही कारण है कि मैंने यहीं से शुरुआत की, लेकिन हमारा उद्देश्य एक राज्य या क्षेत्र में सीमित न होकर देश में सब्जी क्रांति लाने का है।
हमारी परिस्थितियां उद्यम को कॅरियर नहीं मानती
भारत में और खासकर बिहार का माहौल इस तरह का है कि अभी भी नौकरी उद्यम से बेहतर मानी जाती है। यहां स्वरोजगार वही करते हैं, जिन्हें नौकरी नहीं मिलती है। यदि कोई नौकरी करने वाला व्यक्ति स्वरोजगार की बात करता है, तो उनकी बातों की हंसी उडाई जाती है। हमारे साथ भी इस तरह की कठिन परिस्थितियां आई और शुरुआती स्तर पर किसी ने हमें सहयोग नहीं दिया। प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पडा, लेकिन यदि आप सही हैं और विजन स्पष्ट है, तो देर-सबेर सहयोगी मिल ही जाते हैं। यही मेरे साथ हुआ।
यदि आप चुनें यह डगर
यदि खुद की सुनना है, तो लोगों की बातों को नकारना ही होगा। लीक से हटकर काम करने वालों के लिए यह बहुत जरूरी है। शुरुआत में पूंजी के अलावा लीगल जानकारी जरूर प्राप्त कर लें। आप यह सोचकर आगे बढें कि कुछ नया करने के लिए दो चार कदम अकेले चलना ही पडेगा। क्योंकि आपके साथ लोग तभी जुडेंगे, जब आपका विजन उन्हें समझ में आएगा और आप उस रास्ते से गुजर चुके होंगे। टीम बनाते समय योग्यता नहीं, बल्कि यह देखना चाहिए कि टीम मेंबर भी आपका सपना देख रहा है। क्योंकि योग्यता हासिल की जा सकती है, लेकिन सपने नहीं। असफलता शब्द अपने दिमाग से हटा दें। इससे आप तब तक प्रयास करते रहेंगे, जब तक आप सफल नहीं हो जाते हैं। समाज आपको नकारेगा लेकिन आप अडिग खडे रहें। बार-बार मुझे इस काम को पूरा करना है, का ध्यान रखें।
जेआरसी टीम
बदलते भारत की बदलती तस्वीर
कामयाबी के लिए जरूरी नहीं कि आप दूसरों को कितना बदल पाते हैं जरूरी यह है कि बदलावों के प्रति आपकी क्या प्रतिक्रिया रहती है
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