रटें नहीं, समझें इतिहास को

Feb 11, 2009, 03:50 IST

तथ्यों और घटनाओं को समझने और उनका वर्तमान संदर्भो में विश्लेषण करने का विषय है इतिहास। स्पेशल गाइडेंस के इस खास कॉलम गुरु मंत्र में दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में इतिहास के प्रवक्ता रतन लाल बता रहे हैं इस विषय के सक्सेस मंत्र..

इतिहास को एक नीरस और मृत विषय नहीं कह सकते, क्योंकि इसके जरिए न केवल हम वर्तमान को समझते हैं, बल्कि भविष्य के लिए रोड-मैप भी तैयार होता है। इसलिए यदि इस विषय को रुचि के साथ पढा जाए, तो इसमें हमेशा जीवंतता नजर आएगी। बारहवीं तक जिन स्टूडेंट्स ने यह विषय पढा है, उनमें से अधिकतर छात्र इसे केवल तथ्यों और घटनाओं को रटने वाला सब्जेक्ट मानते हैं। यदि आप स्नातक स्तर पर इतिहास पढ रहे हैं, तो आपको सबसे पहले रट्टाफिकेशन की आदत छोडनी होगी।

बदलें स्टडी का स्टाइल

हिस्ट्री के स्टूडेंट्स से स्नातक स्तर पर यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं को महज एक घटना नहीं, बल्कि उसे वर्तमान संदर्भो से इंटर-लिंक्ड करते हुए पढेंगे। उदाहरण के लिए यदि विद्यार्थी सन् 1857 का स्वतंत्रता संग्राम पढ रहे हैं, तो उनको इसे केवल एक क्रांतिकारी घटना के रूप में ही नहीं देखना चाहिए, बल्कि वे इसे इस संदर्भ में भी देखें कि किस तरह यह भारत की आजादी और वर्तमान भारत के बुनियाद के सतत प्रक्रिया की शुरुआत थी। यदि आप सब्जेक्ट को इस तरह ब्रॉड-पर्सपेक्टिव में पढेंगे, तो किसी भी टॉपिक को रटने की जरूरत ही नहीं पडेगी।

समझें विषय के दायरे को

यूं तो हर बीती हुई घटना इतिहास है, लेकिन इस विषय के स्टूडेंट्स को सबसे पहले अपने सिलेबस के दायरे को समझ लेना चाहिए। सामान्य तौर पर स्नातक स्तर पर विद्यार्थियों को भारत के इतिहास के साथ-साथ प्राचीन यूरोप से लेकर आधुनिक यूरोप तक के इतिहास का विस्तृत अध्ययन भी करना होता है। इसलिए आपके सिलेबस में इनसे संबंधित जिन टॉपिक्स को रखा गया है, उन्हें अच्छी तरह समझ लें।

जरूरी है नोट्स बनाना

इतिहास का कैनवास बहुत बडा है, इसलिए जो पढें, उसे लिखें भी। नोट्स बनाते समय इन बातों पर ध्यान दें :

नोट्स निबंधनात्मक शैली में बनाएं। उसमें परिचय, मुख्य भाग और निष्कर्ष जरूर हो।

लिखते समय किसी इतिहासकार के साथ कोई विशेषण न जोडें।

लूज शीट पर नोट्स बनाएं, ताकि आवश्यकतानुसार उनमें नए पृष्ठ जोडे जा सकें।

सरल और सहज भाषा-शैली अपनाएं। -इतिहास में लच्छेदार भाषा की गुंजाइश ही नहीं होती।

बुक्स को बनाएं बेस

किताबें विषय को समझने की बुनियाद होती हैं। इसलिए इतिहास को भी जानने के लिए आप इस विषय पर लिखी कुछ बेहतर किताबों को जरूर देखें। इनके नाम हैं :

शूद्राज इन ऐंसिएंट इंडिया : आर.एस.शर्मा

अशोका ऐंड द डिक्लाइन ऑफ मौर्याज-रोमिला थापर

अद्भुत भारत : ए.एल.वासन

कल्चर ऐंड सिविलाइजेशन इन ऐंसिएंट इंडिया : डी.डी.कोशांबी

मिडिवल इंडिया : पार्ट वन और पार्ट टू-सतीश चंद्रा

भारत का स्वतंत्रता संग्राम : विपिन चंद्र

आधुनिक भारत : सुमित सरकार

व‌र्ल्ड सिविलाइजेशन : राल्थ ऐंड ब‌र्न्स 

यूरोप सिंस नेपोलियन : डेविड थॉमसन

आधुनिक पश्चिम का उदय : पार्थसारथी गुप्ता

ऐज ऑफ रेवॉल्यूशन : ऐरिक हॉब्सवॉम

अंतिम सत्य नहीं है इतिहास

इतिहास कभी भी अंतिम सत्य नहीं होता। इसमें हमेशा सब्जेक्टिविटी होती है और व्याख्याएं असीमित। इसीलिए किसी घटना विशेष को एक ही नजरिए से देखना उचित नहीं। उसके संदर्भ में जितने भी इतिहासकारों के दृष्टिकोण उपलब्ध हों, उनका विश्लेषणात्मक रूप में अध्ययन जरूर करें। इससे आप तथ्यों और घटनाओं को टोटेलिटी में समझ पाएंगे। वैसे, इतिहास के विद्यार्थियों को देसी और विदेशी साहित्य भी जरूर पढना चाहिए।

क्या करें, क्या न करें

नियमित रूप से क्लास अटेंड करें।

प्राध्यापकों से सारगर्भित प्रश्न पूछें।

अंग्रेजी भाषा जानें, क्योंकि इस विषय पर अधिकतर किताबें अंग्रेजी में उपलब्ध हैं।

समय-समय पर म्यूजियम जरूर जाएं।

इतिहास पर होने वाली कार्यशालाओं और संगोष्ठियों में अपनी भागीदारी बढाएं।

नेट से लें मदद

इतिहास विषय पर अध्ययन सामग्री और अन्य उपयोगी जानकारियों के लिए आप इन वेबसाइट्स  पर विजिट कर सकते हैं : 

www.eyewitnesstohist ory.com

www.historychannel.com

www.historynet.com

www.buckyogi.com/footnotes

www.history-journals.de

मैगजींस/जर्नल

बिबलियो, इंडियन हिस्टोरिकल रिव्यू, साक्ष्य, सब-अल्टर्न स्टडीज, इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस की प्रोसीडिंग्स 

दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में इतिहास के प्रवक्ता रतन लाल से मुनमुन प्रसाद श्रीवास्तव की बातचीत पर आधारित

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