देश में हर साल हजारों ग्रेजुएट कॉलेजों से निकलते हैं। उनके सामने नौकरियों के तमाम विकल्प जरूर होते हैं, लेकिन इन्हें इस बात की ठीक-ठीक जानकारी नहीं होती कि इनमें से कौन-सा विकल्प चुनना उनके लिए बेहतर होगा? कारण साफ हैं। इन छात्रों के पास कोई अनुभव नहीं होता। वे कोरी स्लेट के समान होते हैं, जिस पर कुछ भी लिखा जा सकता है। वैसे, एक बात माननी पडेगी कि आज के स्टूडेंट्स बेहद प्रतिभाशाली हैं। उन्हें अपनी जमीन तैयार करने के लिए बस एक अवसर की तलाश होती है और जब भी उन्हें वह अवसर मिलता है, तो वे अपनी काबिलियत को किसी न किसी रूप में साबित कर ही देते हैं। लेकिन किसी भी क्षेत्र में कदम रखने से पहले यदि नीचे दी गई बातों पर ध्यान दिया जाए, तो शायद ऐसे फे्रशर किसी भी संस्थान में अपनी पहचान के साथ-साथ अपनी ठोस बुनियाद भी तैयार कर सकेंगे ..।
क्या, कब और कितना बोलें
जब आप किसी संस्थान में नए हों, तो हर बात को बडा तोल-मोल के कहें, क्योंकि आपकी एक छोटी-सी भूल से आपकी छवि पल भर में नकारात्मक बन सकती है। ऐसे में पहले दिन से ही उस संस्थान के तौर-तरीकों को सीखने की कोशिश करें। आप जितनी जल्दी उन तौर-तरीकों को सीख लेंगे, वहां आपकी उपयोगिता उतनी ही जल्दी बढ जाएगी। यहां सबसे पहले तो यह सीखें कि क्या बोलें, कितना बोलें और कब बोलें? यह भी महत्वपूर्ण है कि वे बातें किस अंदाज में बोलें?
बनाएं पहचान
प्राय: लोग अपने काम से ही पहचाने जाते हैं। वे जिस स्तर का काम करते हैं, उसी स्तर की उनकी पहचान भी बनती जाती है। इसलिए अपने काम को न केवल पूरी मेहनत से करें, बल्कि उसमें परफेक्शन लाने की लगातार कोशिश भी करते रहें। याद रहे, किसी भी काम में आप जितनी मेहनत करेंगे, उस काम को आप उतना ही ज्यादा सीखेंगे। कुछ ही दिनों बाद आपको उस काम को करने में मजा भी आने लगेगा। धीरे-धीरे उसमें नयापन लाने के लिए आप अपनी तरफ से प्रयोग भी करने लगेंगे। जब ये प्रयोग धीरे-धीरे सफल होने लगेंगे, तो उस काम से आपका नाम जुडता चला जाएगा और एक दिन उस संस्थान में आप खुद-ब-खुद जगह बनाने में सफल हो जाएंगे। इस तरह आपकी एक अलग पहचान भी बन जाएगी।
सफलता की पहली सीढी
अच्छा व्यवहार सफलता की पहली सीढी है। याद रहे, किसी भी इंस्टीट्यूट में जब आप शुरुआत करते हैं, तो वहां के कर्मचारियों के बीच आपकी पहचान आपके अच्छे व्यवहार के कारण ही बनती है। इससे आपको बहुत मदद मिलती है, क्योंकि पुराने कर्मचारी उस इंस्टीट्यूट के तौर-तरीकों से भलीभांति परिचित होते हैं। इतना ही नहीं, उन्हें वहां की पॉलिसी का भी सम्यक ज्ञान होता है, जिसे जानने के बाद, गलतियों की गुंजाइश नहीं के बराबर रह जाती है। ऐसी स्थिति में आपका अच्छा व्यवहार बहुत कम समय में आपको बहुत कुछ सिखा जाता है।
क्या आप पंक्चुअल हैं?
पंक्चुअल व्यक्ति किसी भी संस्थान में सम्माननीय होते हैं। यदि आप पंक्चुअल हैं, तो लोगों के बीच आपकी सकारात्मक छवि बनने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। अन्यथा शुरुआत में ही आपकी छवि नकारात्मक बन जाएगी, जिससे भविष्य में आपको मुश्किलों का सामना भी करना पड सकता है!
काम में दिखाएं उत्साह
कभी-कभी ऐसे बोरिंग असाइनमेंट्स भी दिए जाते हैं, जिन्हें करने में किसी की रुचि नहीं होती। लेकिन यदि इन असाइनमेंट्स को आप पूरा कर लें, तो निश्चित ही सभी के बीच आपकी एक अलग छवि बन जाएगी। इसके अलावा, अगर आप अतिरिक्त काम को एक निश्चित अवधि में पूरा कर देते हैं, तो रातोंरात सम्मान के पात्र बन जाएंगे। काम को खत्म करने के लिए जब आप दफ्तर में जल्दी आएंगे, तो इससे साफ हो जाएगा कि आप अपने काम में कितनी रुचि ले रहे हैं! हेनरी फोर्ड, न्यूटन, आइंस्टीन, अब्राहम लिंकन आदि ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने न केवल एक-एक क्षण का मूल्य समझा, बल्कि इन्होंने जीवन के हर पल का अच्छी तरह से सदुपयोग भी किया। फलत: इन्हें सफलता मिली और नाम अमर हो गया। श्री परमहंस ने भी कहा है कि जैसा हमारा लक्ष्य होगा, वैसा ही हमारा जीवन भी होगा।
गलतियों को गुरु मानें
ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं, जिससे गलती न होती हो, लेकिन जरूरी है कि आप उन गलतियों से सबक लें। गलतियों को गुरु मानें और उनसे कुछ सीखें। गलतियों को जितना सुधारेंगे, आप में उतनी ही पूर्णता आती जाएगी। सफलता का सफर तय करते वक्त आप प्रतिदिन नए अनुभव हासिल करें और उनसे सबक लेते हुए पुरानी गलतियों को लगातार सुधारते चले जाएं। याद रहे, व्यक्ति हार कर ही कुछ सीख पाता है। हारने के बाद ही उसे पता चलता है कि उसने कहां-कहां, किस-किस रूप में गलतियां कीं? इसलिए वह और ज्यादा साहस और जुनून के साथ उस काम को अंजाम देने में जुट जाता है। उसे सफलता भी मिलती है। हो सकता है, शुरू-शुरू में प्रयास करते वक्त आपके पैर कांप जाए, आंखों से गंगा-जमुना भी बह जाए, लेकिन फिर भी प्रयास करते रहें। आपका एक गंभीर प्रयास ही आपको सफलता की ऊंचाई तक ले जा सकता है।
अंतर पर ध्यान दें
इस बात को हम डिक्शनरी के दो शब्दों से समझ सकते हैं। पहला शब्द है हियर जिसका मतलब होता है, सुनना और दूसरा शब्द है, लिसन। इसका मतलब भी सुनना ही होता है, लेकिन दोनों शब्दों में एक बारीक-सा अंतर है। अगर आप पहले शब्द, यानी हियर की बात करें, तो वहां पर सुनने का अभिप्राय केवल इतना होता है कि आपने कोई बात सुन ली। अब इससे कोई फर्क नहीं पडता कि वह बात आपने ध्यान से सुनी या नहीं! कुल मिलाकर आप यह कह सकते हैं कि इस अवस्था में आप अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते हैं। वहीं यदि दूसरे शब्द लिसन की बात करें, तो वहां पर आप बातों को ध्यान से सुनते हैं और साथ ही साथ समझने की कोशिश भी करते हैं। यहां पर इस बात को कहने की इसलिए जरूरत पडी, क्योंकि आपको संस्थान में जब कोई निर्देश दिया जाए, तो उसे पूरी एकाग्रता के साथ सुनें और उसे समझते हुए उस पर अमल भी करें।
संयम व निष्ठा जरूरी
किसी भी प्रोफेशन में सफलता अर्जित करने के लिए बेहद जरूरी यह है कि आप उस क्षेत्र में सतत प्रयास करते रहें, क्योंकि किसी भी क्षेत्र से जुडी बात को एक ही दिन में नहीं सीखा जा सकता। याद रहे, संयम ही सफलता की कुंजी है, जिसे पाने के बाद आप सफलता का कोई भी ताला आसानी से खोल सकते हैं। यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। हडबड का काम गडबड -- धैर्य का दूसरा नाम है यह। कहने का तात्पर्य यही है कि असफलता का स्वाद चखने के बाद भी अपने साहस, मनोबल, उत्साह आदि को तरोताजा बनाए रखने की कोशिश करें। उन्हें चोट न पहुंचाएं। फिर से लक्ष्य भेदने की कोशिश करें।
मिथ्या सुरक्षा भाव को तोडें
निष्ठा हमारी सबसे बडी सुरक्षा है। निष्ठा ही हमारे बीच सम्पूर्णता लाती है। इसलिए हमेशा याद रखें कि मिथ्या सुरक्षा भाव हमारी और आपकी सफलता को आगे नहीं बढने देता। सफलता तब हासिल होती है, जब व्यक्ति अपनी सुरक्षा के घेरे को तोड कर निष्ठा व विश्वास के साथ आगे बढने की कोशिश में लगा रहता है। और इस तरह वह अपने लक्ष्य यानी सफलता को एक न एक दिन प्राप्त कर ही लेता है।
nirmalendu@jagran.com
निर्मलेंदु
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