जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुना दिया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5-न्यायाधीशों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने वाले 2019 के भारत सरकार के फैसले को सही ठहराया है.
सुप्रीम कोर्ट ने आज 2019 के राष्ट्रपति के आदेश की वैधता पर अपना फैसला दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 5 अगस्त 2019 का निर्णय वैध था जो जम्मू कश्मीर के एकीकरण के लिए जरुरी भी था. कोर्ट ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद 5 सितंबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.
केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को निरस्त करने में कोई "संवैधानिक धोखाधड़ी" नहीं हुई थी.
We have held that Article 370 is a TEMPORARY PROVISION: Chief Justice of India. #Article370 pic.twitter.com/21jewviXdP
— All India Radio News (@airnewsalerts) December 11, 2023
5 न्यायाधीशों की बेंच ने सुनाया फैसला:
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 न्यायाधीशों की बेंच ने जम्मू-कश्मीर पर यह विशेष फैसला सुनाया है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा इस बेंच में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने क्या कहा?
सीजेआई ने अपने फैसले में कहा कि जम्मू कश्मीर राज्य पर केंद्र द्वारा लिया गया फैसला हर चुनौती के अधीन नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि अराजकता और अनिश्चितता पैदा होगी और राज्य का प्रशासन ठप हो सकता है. सीजेआई ने जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग भी बताया.
जम्मू कश्मीर में जल्द चुनाव पर दिया जोर:
5 न्यायाधीशों की बेंच ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल करने की बात कही है. वहीं शीर्ष अदालत ने आयोग 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए भारतीय चुनाव आयोग को कदम उठाने के लिए भी कहा है.
I welcome the Honorable Supreme Court of India's verdict upholding the decision to abolish #Article370.
— Amit Shah (@AmitShah) December 11, 2023
On the 5th of August 2019, PM @narendramodi Ji took a visionary decision to abrogate #Article370. Since then peace and normalcy have returned to J&K. Growth and development…
याचिकाकर्ताओं की क्या थी मांग:
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि अनुच्छेद 370 अस्थायी नियम है और इसे बदला नहीं जा सकता है.
इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन: याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारतीय संघ के साथ एक अनोखा रिश्ता है और जम्मू-कश्मीर का भारत में कोई विलय विलय नहीं हुआ था बल्कि इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किये गए थे.
अनुच्छेद 370 के तहत संघ द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बनाने की सीमाओं की भी बात करते हुए अपील की थी कि जम्मू-कश्मीर पर कानून बनाना इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन के दायरे में नहीं था.
याचिकाकर्ताओं ने राज्यपाल की शक्तियों की सीमा पर भी सवाल उठाये थे, उनका कहना था कि बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के राज्यपाल ऐसे कोई फैसला नहीं कर सकते है. अपील में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर विधानसभा के भंग किए जाने पर भी सवाल खड़ा किया गया था.
साल 2018 में लगा था राष्ट्रपति शासन:
19 दिसंबर 2018 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा की थी. इसको जनवरी 2019 में संसद के दोनों सदनों की ओर से मंजूरी दे दी गयी थी. जम्मू-कश्मीर पर राष्ट्रपति शासन 2 जुलाई 2019 को समाप्त होने वाला था लकिन 3 जुलाई 2019 से इसे छह महीने के लिए बढ़ा दिया था.
5 अगस्त 2019 को आया था ऐतिहासिक फैसला:
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को संसद में पेश किया गया था. उस समय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में इस विधेयक को पेश किया था. 6 अगस्त 2019 को इसे लोकसभा से भी पास कर दिया गया और 9 अगस्त 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी थी. जिसके बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया था.
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