सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा

Nov 29, 2018, 16:17 IST

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने अलग-अलग राय व्यक्त की. तीन सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता शामिल थे.

Supreme Court upholds constitutional validity of death penalty
Supreme Court upholds constitutional validity of death penalty

सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवम्बर 2018 को मृत्युदंड की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा हैं. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने अलग-अलग राय व्यक्त की. तीन सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता शामिल थे. जजों की टिप्पणियों से साफ है कि देश में मृत्युदंड की सजा बनी रहेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने छन्नू लाल वर्मा को सुनाई गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. छन्नू लाल वर्मा को दो महिलाओं सहित तीन लोगों की हत्या को लेकर मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी. तीनों न्यायाधीशों में मृत्युदंड के क्रियान्वयन को लेकर मतभेद थे लेकिन वे छन्नू लाल वर्मा की मौत की सजा को बदलने पर एकमत थे.

मौत की सजा पर न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के विचार:

न्यायमूर्ति जोसेफ ने फैसले की घोषणा करते हुए मृत्युदंड लागू किए जाने के संबंध में अपना विचार पढ़ा. न्यायमूर्ति जोसेफ ने विधि आयोग की 262वीं रिपोर्ट का जिक्र किया और कहा की हमारा मानना कि वह समय आ गया है जहां हम सजा के तौर पर मृत्युदंड की आवश्यकता, खासकर इसके उद्देश्य और अमल पर विचार करें.

न्यायमूर्ति जोसेफ ने पीठ की ओर से फैसला लिखा. उन्होंने कहा कि अदालत के समक्ष हर मृत्युदंड का मामला मानव जीवन से संबंधित है जिसे कुछ संवैधानिक संरक्षण प्राप्त हैं. यदि जीवन लिया जाना है, तो सख्त प्रक्रिया तथा उच्चतम संवैधानिक मानकों का पालन करना होगा. न्यायाधीश के रूप में हमारा विवेक, जो संवैधानिक सिद्धांतों से निर्देशित है, उससे कुछ भी कम की अनुमति नहीं दे सकता.

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता द्वारा दिए गए फैसले:

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने मृत्युदंड लागू किए जाने के संबंध में न्यायमूर्ति जोसेफ के विचारों से अलग राय दी. उन्होंने कहा कि 1980 में पंजाब राज्य बनाम बचन सिंह मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मौत की सजा की संवैधानिक वैधता को पहले ही बरकरार रखा था. उन्होंने कहा कि संविधान पीठ ने मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा है, ऐसे में इस चरण में इस पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है.

भारत में मौत की सज़ा:

भारत में मौत की सज़ा कुछ गंभीर अपराधों के लिए दी जाती है. भारत के उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1995 के बाद 5 घटनाओं में मौत की सज़ा दी है. जबकि वर्ष 1991 से अब तक इसकी कुल संख्या 26 है.

मिथु बनाम पंजाब राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 303 के तहत आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे किसी व्यक्ति को आवश्यक रूप से मौत की सज़ा देने को गैरकानूनी माना है.

भारत में वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद मौत की सजा प्राप्त लोगों की संख्या विवादित है; अधिकारिक सरकारी आँकड़ों के अनुसार स्वतंत्रता के बाद अब तक केवल 52 लोगों को फाँसी की सजा दी गयी है. यद्यपि पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के एक शोध के अनुसार यह संख्या बहुत अधिक है और इसके अनुसार केवल वर्ष 1953 से वर्ष 1963 के दशक में ही यह संख्या 1422 है.

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के एक शोध के अनुसार भारत में वर्ष 2000 से अब तक नीचली अदालतों द्वारा कुल 1617 कैदियों को मौत की सज़ा सुनाई जा चुकी है. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के अनुसार वर्ष 1947 से अब तक भारत में कुल 755 लोगों को मृत्यु दण्ड दिया जा चुका है.

दिसम्बर 2007 में, भारत ने मौत की सजा पर रोक के संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प के विरुद्ध मतदान किया था. नवम्बर 2012 में, मौत की सजा को प्रतिबन्धित करने के लिए रखे गये संयुक्त राष्ट्र महासभा के मसौदे के विरुद्ध मतदान करते हुये अपने फैसले को बरकरार रखा.

विधि आयोग ने 31 अगस्त 2015 को सरकार को एक प्रतिवेदन सौंपा जिसमें देश्द्रोह अथवा आतंकी अपराधों के अतिरिक्त अन्य अपराधों के लिए मौत की सजा को समाप्त करने की सिफारिश की. इस प्रतिवेदन में मौत की सजा को समाप्त करने के लिए विभिन्न कारकों को उद्धृत किया गया है जिसमें 140 अन्य देशों में इसकी समाप्ति का भी उल्लेख है. भारतीय दण्ड संहिता के साथ-साथ भारतीय संसद द्वारा कानूनों की नयी शृंखला अधिनियमित की गयी जिनमें मौत की सजा का प्रावधान है.

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