केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) ने मई 2011 के तीसरे सप्ताह में निर्णय दिया कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के तहत जानकारी देने से मना नहीं कर सकता है. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के मुताबिक सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के तहत सूचना देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय बाध्य है, चाहे आवेदक के पास अदालत के नियमों के तहत सूचना पाने के अन्य विकल्प क्यों न हों.
ज्ञातव्य हो कि केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने व्यवस्था दी थी कि यदि किसी संगठन में सूचना मुहैया कराने के लिए कोई कानून और नियम है तो सूचना मांगने वाले को उनका उपयोग करना चाहिए, न कि सूचना का अधिकार अधिनियम का. पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने अपने निर्णय में यह बताया था कि सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI: Right to Information Act) की धारा 22 के अनुसार, वर्तमान कानूनों पर पारदर्शी आरटीआइ कानून तब ही प्रभावी होगा जब दोनों कानून के बीच भिन्नता हो.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अपनी अपील में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) को यह बताया था कि उसके नियमों के तहत न्यायिक प्रक्रिया और दस्तावेजों के बारे में सूचना मुहैया कराने के लिए पहले से ही व्यवस्था है. ऐसे में सूचना का अधिकार कानून (RTI: Right to Information Act) के तहत जानकारी नहीं दी जा सकती क्योंकि दोनों कानून में कोई भिन्नता नहीं है. पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला सर्वोच्च न्यायालय की इस दलील से सहमत थे, लेकिन वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी सर्वोच्च न्यायालय के इस तर्क से सहमत नहीं है.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की दलीलों को खारिज करते हुए मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने निर्णय दिया कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के तहत मांगी गई सूचना देने से इंकार नहीं कर सकता. निर्णय में यह बताया गया कि सूचना का अधिकार (RTI: Right to Information Act) कानून के अस्तित्व में आने के पहले से ही सूचना मुहैया कराने के कई उपाय हों तो भी नागरिक सूचना हासिल करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI: Right to Information Act) के प्रावधानों का उपयोग कर सकता है. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के निर्णय में यह बताया गया कि उस व्यवस्था का चयन करना नागरिक का विशेषाधिकार है जिसके तहत उसे सूचना चाहिए.
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC: Central Information Commission) के मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि जिस तरह सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के नियमों को न्यायालय ने लागू किया है और उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता, उसी तरह सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI: Right to Information Act) संसद ने पारित किया है और उसे निलंबित नहीं किया जा सकता.
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