भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 15 अप्रैल 2014 को अपने ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडरों को लिंग के तीसरे श्रेणी के रूप में मान्यता प्रदान की. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि ट्रांसजेंडर सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं.
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और एके सीकरी की बेंच ने अपने फैसले में केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोजगार मुहैया कराने के लिए जरूरी कदम उठाएं.
फैसले की अन्य प्रमुख बातें
• अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय की इस बेंच ने सरकारों को इन्हें वोटर, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड और पासपोर्ट की सुविधाएं देने को भी कहा है.
• कोर्ट ने देश भर में ट्रांसजेंडरों के खिलाफ भेदभाव और उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त की है और इसलिए इसने सरकार को उपचारात्मक कदम उठाने को कहा है.
• इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारों को सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से इनके बारे में जागरूकता बढ़ाने का भी निर्देश दिया है.
क्या है मामला?
यह फैसला अक्टूबर 2012 में दायर जनहित याचिका (पीआईएल–जनहित याचिका) राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) बनाम यूनियन ऑप इंडिया एंड ओआरएस (रिट याचिका (सिविल) 2012 की संख्या 400) की सुनवाई के बाद किया गया है.
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