गुरु तेगबहादुरजी का 400वां प्रकाशपर्व: जानिए नौवें सिख गुरु के इतिहास के बारे में

नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाशोत्सव को धूमधाम से मनाने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में अप्रैल 2021 में इस उत्सव को यादगार बनाने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है. आइये इसके बारे में और श्री गुरु तेग बहादुर जी के बारे में अध्ययन करते हैं.

Nov 4, 2020, 14:09 IST
Guru Tegh Bahadur
Guru Tegh Bahadur

हाल ही में केंद्र सरकार ने गुरु तेग बहादुर के 400 वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है. इस समिति में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह सहित कई केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और देश भर के गणमान्य लोगों को सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी,डी वी सदानंद गौड़ा, निर्मला सीतारमण, नरेंद्र सिंह तोमर, एस जयशंकर, रमेश पोखरियाल निशंक, प्रकाश जावडेकर, प्रहलाद सिंह पटेल और हरदीप पुरी को भी समिति का सदस्य बनाया गया है.

 समिति का कार्य 

इस समिति का कार्य श्री गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षा और विचारों का देश और दुनिया में प्रचार- प्रसार करना, नीति और योजना बनाना और साथ ही इसके लिए कार्यक्रमों को भी अनुमोदित करना. 400 वीं वर्षगांठ से जुड़े समारोह और स्मरणोत्सव का पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन भी यह समिति करेगी. इसके लिए  विस्तृत कार्यक्रम के लिए निश्चित तारीखें भी समिति तय करेगी.

ऐसा फैसला भी लिया गया है कि एक कार्यकारी समिति भी बनाई जाएगी जो कि उच्च स्तरीय समिति द्वारा लिए गए फैसलों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगी.

श्री गुरु तेग बहादुर के बारे में 

- श्री गुरु तेग बहादुर साहब सिख धर्म के नौवें गुरु थे.

- वे 17 वीं शताब्दी (1621-1675) के दौरान रहे और प्रचार किया.

- वे दसवें गुरु, गोबिंद सिंह के पिता भी थे.

- गुरु के रूप में उनका कार्यकाल 1665 से 1675 तक रहा.

- उन्होंने मुगल साम्राज्य के अन्याय के लिए आवाज़ उठाई थी.

- उन्होंने निर्दोष नागरिकों के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया.

श्री गुरु तेग बहादुर साहब का प्रारंभिक जीवन

श्री गुरु तेग बहादुर साहब का  मूल नाम त्याग मल था. उन्होंने अपना बचपन अमृतसर में बिताया था.

अपने शुरुआती वर्षों में उन्होंने भाई गुरदास से गुरुमुखी, हिंदी, संस्कृत और भारतीय धार्मिक दर्शन सीखा और बाबा बुड्ढा (Baba Budha) से धनुर्विद्या और घुड़सवारी की, जबकि उनके पिता गुरु हरगोबिंद जी, मिरि के गुरु और पीरी ने उन्हें तलवार चलाना सिखाया था.

गुरु हरगोबिंद ने सिख धर्म के सैन्यीकरण की प्रक्रिया शुरू की थी. इसलिए, युवा त्याग  मल ने धार्मिक शिक्षाओं के साथ-साथ मार्शल कौशल भी सीखना शुरू किया था.

केवल 13 साल की उम्र में, त्याग मल ने पिता से युद्ध में उनका साथ देने के लिए कहा था. वे बहुत बहादुर थे इसलिए उनका नाम त्याग मल से तेग बहादुर  रखा गया.

- 7 वें गुरु 1664 से 1661 तक गुरु हर राय थे.

- 8 वें गुरु 1661 से 1664 तक गुरु हरकृष्ण थे.

- मार्च 1664 में, 8 साल के गुरु हर कृष्ण जी की चेचक से मृत्यु हो गई और उसके बाद तेग बहादुर, जो अपने पैतृक गाँव में एक साधारण जीवन व्यतीत कर रहे थे को 9वें गुरु के रूप में चुना गया. उनका गुरु का कार्यकाल 1665 से 1675 तक था. 

गुरु तेग बहादुर जी ने काफी यात्राएं की तकरीबन पूरा उत्तर भारत और पूर्वी भारत उन्होंने विजिट किया.  लगभग 1665 और 1666 के दौरान, उन्होंने गुरु नानक के उपदेशों का प्रचार करने के लिए पंजाब और पूर्वी भारत की यात्रा की. उनकी यात्रा के स्थानों में उत्तर परदेश, बिहार, असम, बंगाल और वर्तमान बांग्लादेश शामिल थे. गुरु तेग बहादुर जी की पूर्व की यात्रा का एक कारण गुरु नानक द्वारा पिछली यात्रा से जुड़े विभिन्न स्थानों पर जाना और उन्हें श्रद्धांजलि देना था. 1666 के आस पास उन्होंने आनंदपुर शहर कि स्थापना की. 

1666-70 - बंगाल और असम का दौरा किया

1670 - पंजाब लौटे

1673 - मालवा का दूसरा दौरा

1675 - कश्मीरी पंडितों की याचिका

1675 -  गुरगद्दी बेटे को सौंपी गई

1675 - उपरोक्त याचिका के कारण शहादत

उन्होंने मुग़ल शासक औरंगज़ेब द्वारा हिंदू कश्मीरी पंडितों के जबरन धर्म परिवर्तन का विरोध किया और फलस्वरूप इसके लिए उन्हें सताया गया.

मुगल शासन से संघर्ष

सिख इतिहासकारों का कहना है कि गुरु तेग बहादुर मुस्लिम शासन और सम्राट औरंगजेब के लिए एक सामाजिक-राजनीतिक चुनौती बन गए थे.
गुरु तेग बहादुर ने मुगल अधिकारियों द्वारा कश्मीरी ब्राह्मणों के धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने का फैसला किया.

उन्होंने कश्मीर से हिंदू पंडितों को सहायता और आश्रय दिया जिन्होंने इस्लाम स्वीकार करने का आदेश मिलने  के बाद उनकी मदद मांगी थी.

श्री गुरु तेग बहादुर जी को  गिरफ्तार किया गया और 1675 के आसपास दिल्ली ले जाया गया. उन्हें चमत्कार करने के लिए कहा गया, यातनाएं दी गईं और इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए भी कहा गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. यह भी कहा जाता है कि उनके तीन सहयोगियों को जो उनके साथ गिरफ्तार किये गए थे को उनके सामने मौत के घाट उतार दिया गया था. नवंबर 1675 को उन्हें मार दिया गया.

सिख जिसने फाँसी की घटना को देखा, वे तेग बहादुर के सिरहीन शरीर को दिल्ली के बाहर अपने घर ले आया. बिना किसी संदेह के शव का अंतिम संस्कार करने के लिए पूरे घर को जला दिया. गुरुद्वारा रकाबगंज इसी जगह को चिह्नित करता है. एक वफादार सिख गुरु के सिर को वापस आनंदपुर ले गया.

गुरु तेग बहादुर ने अपने अनुयायियों के विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया.

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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