अम्बेडकर जयंती 2021: डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता माना जाता है. उनकी जयंती 14 अप्रैल को मनायी जाती है और इसे "भीम जयंती" के रूप में भी जाना जाता है. 1990 में, उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था.
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के अनमोल विचार (Quotes)
1. "मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है."
2. "मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है."
3. "शिक्षित बनो, संगठित रहो और उत्तेजित बनो."
4. "एक विचार को प्रसार की उतनी ही आवश्यकता होती है जितना कि एक पौधे को पानी की आवश्यकता होती है."
5. "पानी की बूंद जब सागर में मिलती है तो अपनी पहचान खो देती है."
6. "बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए."
7. "जो धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है, वही सच्चा धर्म है."
8. "महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्य नहीं है."
9. "संविधान केवल वकीलों का दस्तावेज नहीं है बल्कि यह जीवन जीने का एक माध्यम है."
10. "अच्छा दिखने के लिए नहीं, बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ."
11. "जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच बताये वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड़यंत्र है."
12. "आप स्वाद को बदल सकते हैं परन्तु जहर को अमृत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है."
13. "हमें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए जितना हो सके लड़ना चाहिए। इसलिए अपने आंदोलन को आगे बढ़ाएं और अपनी सेनाओं को संगठित करें। शक्ति और प्रतिष्ठा संघर्ष के माध्यम से आपके पास आएगी."
14. "भारत का इतिहास और कुछ नहीं बल्कि बौद्ध और ब्राह्मणवाद के बीच एक नश्वर संघर्ष का इतिहास है."
15. "एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग है कि वह समाज का नौकर बनने के लिए तैयार है."
16. "मैं एक समुदाय की प्रगति महिलाओं द्वारा हासिल उपलब्धियों में मापता हूं."
17. "उदासीनता एक ऐसे किस्म की बिमारी है जो किसी को प्रभावित कर सकती है."
18. "जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिए."
19. "यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए."
20. "शिक्षा वो शेरनी है। जो इसका दूध पिएगा वो दहाड़ेगा."
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी किताबों की सूची
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के भाषण (Speeches)
1. 26 जनवरी, 1950 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा। उसकी स्वतंत्रता का भविष्य क्या है? क्या वह अपनी स्वतंत्रता बनाए रखेगा या उसे फिर खो देगा? यह बात नहीं है कि भारत कभी एक स्वतंत्र देश नहीं था। विचार बिंदु यह है कि जो स्वतंत्रता उसे उपलब्ध थी, उसे उसने एक बार खो दिया था। क्या वह उसे दूसरी बार खो देगा? यह तथ्य मुझे व्यथित करता है कि न केवल भारत ने पहले एक बार स्वतंत्रता खोई है, बल्कि अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण ऐसा हुआ है। क्या इतिहास स्वयं को दोहराएगा? चिंता और भी गहरी हो जाती है कि जाति व धर्म के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अतिरिक्त हमारे यहां विभिन्न और विरोधी विचारधाराओं वाले राजनीतिक दल होंगे.
2. हमें हमारे राजनीतिक प्रजातंत्र को एक सामाजिक प्रजातंत्र भी बनाना चाहिए। सामाजिक प्रजातंत्र एक ऐसी जीवन पद्धति है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करती है. सामाजिक धरातल पर भारत में बहुस्तरीय असमानता है, कुछ को विकास के अवसर और अन्य को पतन के. कुछ लोग हैं, जिनके पास अकूत संपत्ति है और बहुत लोग घोर दरिद्रता में जीवन बिता रहे हैं. मुझे उन दिनों की याद है, जब राजनीतिक रूप से जागरूक भारतीय ‘भारत की जनता'- इस अभिव्यक्ति पर अप्रसन्नता व्यक्त करते थे. उन्हें ‘भारतीय राष्ट्र' कहना अधिक पसंद था. हजारों जातियों में विभाजित लोग कैसे एक राष्ट्र हो सकते हैं, जितनी जल्दी हम यह समझ लें कि इस शब्द के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अर्थ में हम अब तक एक राष्ट्र नहीं बन पाए हैं, हमारे लिए उतना ही अच्छा होगा, क्योंकि तभी हम एक राष्ट्र बनने की आवश्यकता को ठीक से समझ सकेंगे. यदि हमें वास्तव में एक राष्ट्र बनना है तो इन कठिनाइयों पर विजय पानी होगी, क्योंकि बंधुत्व तभी स्थापित हो सकता है जब हमारा एक राष्ट्र हो.
3. स्वतंत्रता आनंद का विषय है, पर स्वतंत्रता ने हम पर बहुत जिम्मेदारियां डाल दी हैं. स्वतंत्रता के बाद कोई भी चीज गलत होने पर ब्रिटिश लोगों को दोष देने का बहाना समाप्त हो गया है. अब यदि कुछ गलत होता है तो हम किसी और को नहीं, स्वयं को ही दोषी ठहरा सकेंगे. समय तेजी से बदल रहा है। लोग जनता ‘द्वारा‘ बनाई सरकार से ऊबने लगे हैं। यदि हम संविधान को सुरक्षित रखना चाहते हैं, जिसमें जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा बनाई गई सरकार का सिद्धांत प्रतिष्ठापित किया गया है तो हमें प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि ‘हम हमारे रास्ते में खड़ी बुराइयों की पहचान करने और उन्हें मिटाने में ढिलाई नहीं करेंगे।' देश की सेवा करने का यही एक रास्ता है. मैं इससे बेहतर रास्ता नहीं जानता.
4. मैं व्यक्तिगत रूप से समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों धर्म को इस विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार के रूप में दी जानी चाहिए ताकि पूरे जीवन को कवर किया जा सके और उस क्षेत्र पर अतिक्रमण से विधायिका को रोक सके. सब के बाद, हम क्या कर रहे हैं के लिए इस स्वतंत्रता? हमारे सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए हमें यह स्वतंत्रता हो रही है, जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरा है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करते?
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