हड़प्पा सभ्यता: कला और वास्तुकला एक नज़र में

भारतीय कला और वास्तुकला विकास पर निर्भर करती है और इसके पीछे कई कहानियां है| इस लेख में हड़प्पा सभ्यता की कला और वास्तुकला के बारे में जानेंगे और देखेंगे की कैसे इन कलाओं का उदभव हुआ, कहा से हुआ आदि |

Feb 27, 2017, 14:45 IST

भारतीय कला और वास्तुकला विकास पर निर्भर करती है और इसके पीछे अपनी एक कहानी है | जैसे की महान साम्राज्यों का उद्धभव और पतन , शासको का आक्रमण , विभिन्न शैल्लियों का संगम और ये सब कला और वास्तुकला को ही तो जन्म देते है |

Ancient History architecture

पश्चिम भारत के विशाल भाग में, तीसरी शताब्दी के इसा पूर्व में सिन्धु नदी के तट पर एक समुद्र सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ जिसे हड़प्पा या सिन्धु घाटी  सभ्यता के रूप में जाना जाने लगा |यहा की विशिष्ट सभ्यता, कला अनेकानेक मूर्तियां, मोहरें, मृदभांड और आभूषणों से पता चलता है | उधारण के लिए मोहनजोदड़ों और हड़प्पा जो कि नगरीय सभ्यता है|

सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल और पुरातात्विक प्राप्तियां इस प्रकार है|

Architecture_of_Indus_Valley_Civilisation

Source: www.indianetzone.com

-    धौलावीरा (गुजरात) : विशाल जलाशय , स्टेडियम , बांध और तटबंध आदि |

-    लोथल (गुजरात) : इसे सिन्धु घाटी सभ्यता का मानचेस्टर कहाँ जाता है| धन की भूसी , घोड़े और जहाज की टेराकोटा आक्रति आदि|

-    हड़प्पा (वर्तमान पाकिस्तान) : मातृदेवी की मूर्ति , गेहूं और जौ, पासा ,ताम्र तुला और दर्पण , लाल बलुआ पत्थर आदि |

-    मोहनजोदड़ों (वर्तमान पाकिस्तान) : वृहत स्नानागार, वृहत अन्नागार , दाढ़ी वाले पुजारी की मूर्ति आदि |

-    कालीबंगा (राजस्थान) : चूड़ी कारखाना , अलंकृत ईंटें आदि |

-    बनावली (हरियाणा) : खिलौना हल , जौ, अंडाकार की बस्ती आदि |

-    सुर्कोटदा (गुजरात) : घोड़े की हड्डियों का पहला वास्तविक अवशेष |   

-    रोपड़ (पंजाब)

-    राखीगढ़ी (हरयाणा)

-    अलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश)

सिन्धु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) का संक्षिप्त विवरण

अब हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला के बारे में देखते है :

हड़प्पा और मोहनजोदड़ों में जो अवशेष पाए गए है वो नगर नियोजन के बारें में बताते है | जैसे कि वहा के नगर अयातकार ग्रिड पैटर्न पर आधारित थे | सड़कें उत्तर–दक्षिण और पूर्व–पश्चिम दिशा में जाती थीं और एक-दुसरे को समकोण पर काटती थी | नगर को अनेक खण्डों में विभाजित करती थी बड़ी सड़कें और छोटी सड़कें अलग-अलग घरों और बहुमंजिला इमारतों को जोड़ने में|

उत्खनन स्थलों में मुख्य रूप से तीन भवन पाए गए है – निवास ग्रह , सार्वजनिक भवन और सार्वजानिक स्नानागार |हड़प्पा के लोग निर्माण के लिए पकी हुई ईंटों का प्रयोग करते थे और इन ईंटों की परत बिछाकर उनको गारे से जोड़ा जाता था | नगर दो भागों में विभाजित था – गढ़ और निचला नगर | पश्चिमी भाग में अन्नागार , प्रशासनिक भवन , स्थम्भों वालें भवन और आंगन पाए गए है | अन्नागारों को वायुसंचार वाहिकाओं और उचें चबूतरों के साथ डिजाईन किया गया था |

सार्वजनिक स्नानागारों का प्रचलन हड़प्पा नगरों की एक प्रमुख विशेषता थी और इसका सबसे अच्छा उधाहरण मोहनजोदड़ों का वृहत स्नानागार है |

हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता उन्नत जल निकास व्यवस्था थी | हर घर से निकलने वाली छोटी नालियां मुख्य सड़क के साथ –साथ बड़ी नालियों से जुड़ी थी और साफ –सफाई का ध्यान रखते हुए इन्हें ढका गया था और तो और थोड़ी –थोड़ी दूरी पर मलकुंड (सिसपिट) बनाएं गए थे|

हड़प्पा सभ्यता की मूर्तियां :

Indus Valley Civilisation sealss

Source: www.s-media-cache-ak0.pinimg.com

यहाँ से सबसे ज्यादा मोहरें, कास्यं मूर्तियां और मृदभांड प्राप्त हुए है |

  1. मोहरें : पुरातत्वविदों को उत्खन्न वाली जगहों पर अलग –अलग प्रकार की मोहरें मिली है जैसे कि वर्गाकार, त्रिकोणीय, आयातकर आदि | और इन मोहरों को बनाने में मुलायम पत्थर स्टेटाइट का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता था | अधिकांश मोहरों पर चित्राक्षर लिपि (पिक्टोग्राफिक स्क्रिप्ट) में मुद्रलेख भी है, पर इन्हें अभी तक पढ़ा नही जा सका है | मुद्रालेख को दाई से बाई और लिखा गया है | इन पर कई पशुओं की आक्रति भी पाई गई है जैसे बैल, गेंडा, हाथी आदि पर गाय का कोई साक्ष्य नही मिला है |मोहरों का मुख्य रूप से वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता था और हो सकता है कि इनका प्रयोग शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता होगा | उदाहरण के तौर पर पशुपति की मोहर , यूनिकॉर्न वाली मोहर आदि |
  2. कास्य की मूर्तियां : व्यापक स्तर पर देखे तो हडप्पा सभ्यता कासें की ढलाई की प्रथा की साक्षी थी | जैसे कि मोहनजोदड़ों की कासें की नर्तकी, कालीबंगा का कांसे का बैल आदि |
  3. टेराकोटा : पकी हुई मिट्टी से टेराकोटा की मूर्तियां बनाई जाती थी| अधिकांश्त: ऐसी मूर्तियां गुजरात और कालीबंगा के स्थलों से मिली है | उदाहरण मातृदेवी, सींग वाले देवता का मुखौटा आदि |
  4. मृदभांड : जो मृदभांड उत्खन्न स्थल से मिले है उनको दो भागों में वर्गीक्रत किया जा सकता है – सादे मृदभांड और चित्रित मृदभांड| चित्रित मृदभांड को लाल व काले मृदभांडों के रूप मे भी जाना जाता है| वृक्ष, पक्षी, पशुओं की आक्रतियाँ और ज्यामितीय प्रतिरूप चित्रों के आवर्ती विषय थे |
  5. आभूषण : हड़प्पा के लोग मूल्यवान धातुओं और रत्नों से लेकर हड्डियों और यहाँ तक कि पकी हुई मिट्टी जैसी सामग्री का इस्तेमाल किया करते थे आभूषण बनाने के लिए | उदाहरण अंगूठियाँ, बाजूबंद इत्यादि आभूषण पुरुष एवम महिलाएं पहनते थे | पर करधनी, झुमके और पायल केवल महिलाएं ही पहनती थी | कर्निलीयन , नीलम , क्वार्टज, स्टेटाइट आदि से बने हुए मनके भी काफी लोकप्रिय थे और बढ़े पैमाने पर इनका निर्माण किया जाता था | इस बात का साक्ष्य चंदहुदड़ों और लोथल में मिले कारखानों से स्पष्ट है| सर्वश्रेष्ठ उदाहरण में दाढ़ी वाले पुजारी की अर्द्ध – प्रतिमा सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्राप्त हुई है |  

क्या आप जानते है कि वास्तुकला और मूर्तिकला मे क्या अंतर होता है ?

Art and architecture of Harappa

Source: Mc Graw Hill education

हडप्पा सभ्यता की वास्तुकला और कला के अध्ययन से पता चला है कि इस सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी “नगर योजना”थी, यहाँ दुर्ग थे, इस सभ्यता के लोग कपास का उत्पादन किया करते थे, बड़े पैमाने में गेहूं और जौ का उत्पादन करते थे, यहाँ पर मोहरें कैसी थी आदि |

भारतीय स्थापत्य कला और मूर्तिकला

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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